9 फ़र॰ 2009

मनविंदर जी से प्रेरित हो कर पुनर्प्रकाशन


मनविंदर जी ने कहा कि
मित्रों मुझे भी नारी के लिए लिखी पंक्तियाँ याद आयीं

तुम् औरत हों तुम् केवल अनुगमन करो.....!
तुम् को हक नहीं धर्म के उपदेश देने का ।
जीने के सन्देश देने का ।
तुम् केवल औरत हों तुम् केवल अनुगमन करो.....!
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तुम,और तुम्हारी सुन्दरता हमारी संपदा .... !
तुम से हमारी सत्ता प्रूफ़ होती है !
तुम सत्ता में गयीं तो आती है आपदा ....!
तुम केवल स्वपन देखो शयन करो ........
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तुम पद प्रतिष्ठा से दूर रहो ....
कामनी वामा रमणी के रूप में बिखेरो
हमारे लिए लटें अपनी मध्य रात्री में...
अल्ल-सुबह की धूप में ...!
तुम हमारे लिए केवल सौन्दर्य - सृजन करो .....
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तुम काम और काम के लिए हों
तुम मेरी तृप्ति और मेरे मान के लिए हों.....!
तुम धर्म की ध्वजा हाथ में मत उठाओ
हमको अयोग्य मत ठहराओ.....!
तुम् वस्तु थीं वस्तु हों और वस्तु ही रहोगी .....!!
रमणी सुकोमल शैया पर सोने वाली मठों में रहोगी.......?
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मैं आगे चलूँगा सदा तुम केवल मेरा अनुगमन करो ....!
मेरी अंक शयना मेरे स्वपन लिए सेज पर प्रतीक्षा रत रहो !

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!