22 अप्रैल 2012

0.082 पैसा प्रतिदिन की दर से खुशियां बांटते है आपस में

साभार: सदभावना-दर्पण
 पेशनर एसोसिएशन
के अध्यक्ष
श्री एल.एल. रजक
सेवा निवृत्त रेल-गार्ड
क़दीम कस्बों में कैसा सुक़ून होता है 
थके थकाए हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं...!!


          बेशक़  बुज़ुर्गों के हालात को बयां करता बशीरबद्र साहब का ये शेर से शुरु होती है पेंशन याफ़्ता बुज़ुर्गों की आज़ की दास्तां परसाई जी वाले भोला राम के जीव की क्रांतिकारी दास्तां हो..ऐसा नहीं है.. अब भोलाराम भी जाग चुका है और जाग चुकी है व्यवस्था. जबलपुर के डी.एम.यानी कलेक्टर सा’ब  ने सेंट्रल और स्टेट के पेंशनर्स के लिये अपने दफ़्तर में जगह मुहैया करा दी है वहीं जमा होते हैं ये हर महीने की 17 तारीख को यहां अगर किसी भोलाराम की विधवा,अविवाहित आश्रित संतान पेंशन के सिलसिले में आ रही दिक्क़तों को निपटाने के लिये मदद मांगने आतें हैं तो जानतें हैं क्या सुलूक़ करते हैं ये लोग..अर्र ग़लत न समझें बहुत सम्वेदित भाव से सुनतें हैं अपने हाथों से उसका कागज़ पत्तर भर के दाखिल-ए-दफ़तर भी कर देतें हैं.
  बता रहे हैं रजक दादा कि गूंगी बहरी आश्रित लड़की जब उनके दफ़्तर में आई.. साथियों ने उसका फ़ारम वारम भरा डी.आर.एम. ने हफ़्ते भर बाद आश्रित बिटिया को रुपये सवा लाख का  चैक भेजा . चैक मिलते ही पेशनर भवन में आई रेल-कर्मी की आश्रिता के भाई ने आभार के साथ कुछ देने की पेशकश की तो रजक जी ने कहा -"ज़रूर दो पर हमारी मांग कुछ अज़ीब है दे सकोगे ?"
"कोशिश करूंगा बताएं दादा जी "
"बेटा, तुम्हारे जैसा कोई परेशान परिवार हो तो उसे हमारे आफ़िस का पता बता देना यही है हमारे काम की फ़ीस."
 पेशनर्स-एसोशिएशन के लोग केवल तीस रुपए सालाना चंदा जमा करते हैं. यानी  0.082 पैसा प्रतिदिन और हर 17 तारीख को जमा होते हैं जहां किसी के दिवंगत होने का शोक मनाते हैं तो कभी किसी का जन्म दिन अरे हां एक बात बताना तो भूल ही गया राज्य और केंद्रीय सरकार के आदेशों की सायक्लो-स्टायल की गई कापी भी बांटते है सेक्रेट्री का काम होता है मींटिंग में उसका ज़ोर-ज़ोर से वाचन करना.ताक़ी कम उनने वाले भी सुन पाएं उनकी बात.  है न सबसे कम दरों पर खुशियां बांटने की कोशिश..
                                                                       आज सुबह सवेरे आए थे बाबूजी से मिलने पेशनर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री एल.एल. रजक सेवा निवृत्त रेल-गार्ड हैं. चार बरस का चंदा नेहीं ले पाए थे बाबूजी से. पर केवल इसी बरस का चंदा मांगा बाबूजी न माने  दे दिया चार बरस का चंदा       
शायद आपके शहर में भी ऐसे कोई समाज सेवी संगठन हो मेरा सलाम कहिये उनको भी

3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!