मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
26 जुल॰ 2007
23 जुल॰ 2007
aato graph pl...z
"१७ वर्षीय आभास खुद को संगीत की साधना में लगाए रखा ज़ी० टी ० वी ० लिटिल चैम्पियन बनने
के बाद.... उसे सच कर दिखानी थी नेपाली लड़कों की, जिन्होंने 5 वर्ष की उम्र में aato grapf उससे कहा था:- "तुम पक्का नामी सिंगर बनोगे हमें यकीन है..हम दुनियां को बताएँगे हमने तो इनको बचपन में ही
सुना ख़ूब सुना सामने बैठ के सुना...!"---------कौन जाने ये ब्लॉग वो नेपाल में बैठे देख रहे हों.। आपमें से कोई हो तो मुझे मेल कीजिये........रविन्द्र जोशी {आभास के पापा}..... नहीं हम सब उन भविष्य वक्ताओं का आभार व्यक्त तो करना है...!
22 जुल॰ 2007
vote फ़ॉर आभास जोशी OM SHRI SAI RAM
As u know that “ABHAS” is in
FINAL/TOP 12
of
"AMUL STAR VOICE OF INDIA"
आभास जोशी been consistently doin' well there by God's grace & ur blessings!!!!
Now he needs more blessings,love & support from you through ur precious votes,as from now onwards the number of votes casted to him will decide his fate in "VOI"
"THE VOTING STARTS FROM FRIDAY "
ie 27/07/2007"You can vote
through SMS-Type VOI
Landline:-Dial 1862424782705
BSNL users Dial- 1278270505
, Airtel & Spice users dial-
5057827
05You can vote through Net also-Login to- http://www.indya.com/
इश्क़ कीजे सरेआम खुलकर कीजे.
*************
* बंदिशें लाख हों, ताले हों, लक़ीरें हों खिचीं
प्रीत की राह पे काँटों की कालीनें बिछीं !
ख़ौफ़ कितना भी हो इज़हार तो कर ही देना-
दिल के झोले को सुक़ून से भर ही लेना...!
वर्ना ख़ुद ज़िंदगी यूँ चैन से नहि जीने ही देगी
अमिय सुख का तुमको भी न पीने नहीं देगी !
इश्क पूजा है-इबादत है कोई तिज़ारत तो नहीं !
ये वो काम जो सरे आम किया जाता है....!
**गिरीश बिल्लोरे "मुकुल
18 जुल॰ 2007
औरों से मत जलो तुम झुलस जाओगे,आग नाते किसी से रखेगी कहाँ ....?
ग़र हो कुंदन तो रुकना कसौटी पे तुम ,
हाँ यक़ीं मान लो फिर निखर जाओगे..!
ग़र जो सोना नहीं तो डरो आग से,
राख बनके हवा में बिखर जाओगे....!
झुलसे और माने मेरी बात जो
अधजला चेहरा लेके किधर जाओगे....?
न किसी से जलो न किसी से डरोमौक़ा ऐसा सुनहरा कहाँ पाओगे !!
औरों से जलो ....................!
********************* गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
मैं तुम्हारा आख़िरी ख़त जाने किस के हाथ आऊँ
तुम पडो इक बार मुझको इक नया संचार पाऊं !
कौन किसकी वेदना पडने चला,
कौन ऊँचे श्रंग पर चडने चला!
कहते हैं गंगा उसे अरु पूजते भी
पीर गिरि की कौन है पड़ने चला !
सोचता हूँ हाल गिरि का पूछ आऊँ .और परवत से आभार पाऊं..?
************
हाँ ,समंदर भी अश्कों से भरा है
और वन! दर्द से ही तो हरा है...!
पीर के बिन इस धरा पे कुछ नहीं
पीर बिन वो गवैया बेसुरा है...!
पीर मेरी प्रेयसी है...! जाऊं.... मैं..... अभिसार आऊँ...?
**गिरीश बिल्लोरे मुकुल**
16 जुल॰ 2007
"आभास एक गायक बनेगा इसका अहसास उनके परिवार को तब हुआ हुआ जब एक सुबह नर्सरी जाने वाले आभास ने जगजीत सिंह जीं की ग़ज़ल गुनगुनाई "
सफ़र में आभास से सहयात्री ने पूछा "चुटकुले " के अलावा और क्या सीखा है ...
चुलबुले योगी ने झट एक गीत पूरी तन्मयता से सुनाया । और अब से शुरू हुआ यह सफ़र ....लगातार जारी है...
पूत के पाँव पालने में कुछ ऐसे ही नज़र आते हैं ...!
आपने देखा अपने बच्चों के पैरों को कभी गौर से.....!
14 जुल॰ 2007
AAg
एक दिन तुमने मुझे
चूल्हा -गोलाई के नीचे से पुकारा था !!
हाँ ...!
मुझे ही तो पुकारा था
तुमने
उस दिन जब
उस गाँव की भोली जनता के
दोगले नेता से मिलकर मैं
उदास ...नहीं हताश होकर लौटा था !
हाँ सूरज !
याद करो
तुमने मुझे ही पुकारा हां....!
अपनी मक्कारियों की से जनता को जकड़्ते
उस मगर -मच्छ ने ईमानदारी की राह को कंटीली झाड़ियों
पाटा था ....और मैं बेबस ....लौट रहा था
सूरज......मुझे तुम्हारी आग की ज़रूरत नहीं है ....
मेरी ईमानदारी की आग उसे जला देगी
मुझे तुम्हारी आग के ज़रूरत कब-कब पड़ीं ...?
फिर भी तुम्हारा शुक्रिया .......
तुम जो मुझे याद ओ करते तो हो !!
*girish billore "mukul"
किसी टूटे हुए दिल को सलीके से उठाना तुम
किसी टूटे हुए दिल को सलीके से उठाना तुमकिसी टूटे हुए दिल को सलीके से उठाना तुम .!गुलाबी यादों के बिस्तर पे आहिस्ता सुलाना तुम !! सराहने रखना तुम उसके मेहबूब का वो ख़त .जिसमे लिक्खा हो -"बिन आपके ताबूत है ये शब"...!! उसका टूटा हुआ दिल धड़कनें वापस बुला लेगा !. अपने मेहबूब की यादों से अपना घर सजा लेगा.!!रुनक झुन छमकेगी पायल प्रिया की उसके आँगन में !सम्हालेगा बिखरती साँसों को अपने दामन में!! धड़क उठेगा दिल जी जाएगा इक इश्क़ का मारा ! गीत मीरा सा गाएगा ,बजाएगा वो इकतारा !! उसकी मज़बूरी का फ़ायदा मत उठाना तुम ! कभी सूखी हुई झाड़ी को आतिश मत दिखाना तुम !! गुलाबी................... *गिरीश बिल्लोरे मुकुल
http://www.shayarfamily.com/index.php?showtopic=13994&st=0&#entry169027
12 जुल॰ 2007
"हरियाली-महोत्सव"
हुज़ूर आज हरियाली महोत्सव में पौधा लगाने आने वाले हैं. ये सरकारी रिवायती फरमान ज़ारी हुआ,फरमान में बाक़ायदा लोगों की डियूटी लगी थी, व्यवस्था चॉक चौबंद कोई कमी कैसे होती..?हुज़ूर जो आ रहे हैं.... हुज़ूर जो इस ज़िले के हुज़ूर हैं क्या मज़ाल किसी की जो ग़लती कर दे, ग़लती का मतलब सार्वजनिक बेइज़्ज़ती…! बाल बच्चे दार लोग अपनी इज़्ज़त बचाते क्यों ना ? निम्न मध्यम वर्गी लोगों के पास केवल यही तो हैबचाके रखने के लिए.पैसॆ नाम की चीज़ जो उसे “पे रूपी विशेषण” के साथ मिलतॆं हैं, जॊ उधार खातों को निर्बाध प्रवाह मान बनाए रखने के लिए बनिये को दे दी जाती है.खैर , सो बड़ी मेहनत से इंतज़ामात पुख़्ता किए गए सब अपने कार्य और हज़ूर के मिज़ाज़ के बीच जुगल बंदी में व्यस्त हो गये. यानी ग़लतियों को करीने से छिपाए रखनेकी तरकीबे सोचने लगे,यानी बहानों की लिस्ट पर इन सरकारियों ने तो हुज़ूर आए ,हुज़ूर ने पेड़ लगाए तालियाँ बजी भाषण हुए, फिर तालियाँ बजीं, फिर हुज़ूर ने पूछा -"आप लोगों को कोईतखलीफ़ हो तो बताइए...?" और चुगलखोरी का दौर चला हुज़ूर ने कुछ को ठसाई की, कुछ-एक की पगार काटी, कुछेक की बदली कर दी ..........! इस दुकान दारी से दूर बिसनू गड्ढा खोद रहा था, राम दीन उसे भर रहा था ..! हमसे ना रहा गया सो हमने पूछ ही लिया-"क्यों रे तुम लोग ये क्या कर रहे हो ?" पूरी लाइन में एक भी पेड़ नहीं लगा हुज़ूर देख लेंगे तो लाई लुट जाएगी तुम्हारी भी हमारी भी...! पेड़ लगा के गड्ढा पूरो . ज़बाब मिला -"सा'ब डरो तुम हम तो बता देंगे ..पेड़ लगानेकी डिवटी {ड्यूटी} फुल्लू की हती फुल्लू बीमार पड़ गओ" सो हमायी का ग़लती...? हम तो अपनी डिवटी पूरी कर रएहैं...!
गिरीश बिल्लोरे मुकुल /GIRISH BILLORE"MUKUL"
8 जुल॰ 2007
टिप्पणी :- सुनीता जीं कृष्ण ने कभी अट्टहास नहीं किया ....वे नारी के दैहिक स्वरूप की रक्षा के लिए सशर्त आगे आयें हो
ऐसा भी कतई नहीं है....आपकी कविता लोकरंजक है...मनोरंजक भी है... किन्तु यदि कृष्ण को लेकर आपने शब्द चयन में जो जल्दबाजी की है...मन आहत हुआ है...कृष्ण को समझने के लिए और प्रयास कीजिये । ईश्वर किसी के गुन अवगुण
देखे बिना उसका भला करतें हैं
सादर
*गिरीश-बिल्लोरे"मुकुल"
7 जुल॰ 2007
नियति करती लग रही छल
वेदना के शूल चुभते
आंख झरती आज पल-पल,
ईश्वर की व्यवस्था
शोक भी है तय अवस्था !
आपकी इस वेदना में साथ हैं हम !
दूर से ही भले साथी
संवेदना का अनुनाद हैं हम !!
शोक में विश्वास प्रभू का तोड़ना मत
साथियों का साथ साथी छोड़ना मत...
जाने वाले को मिले मुक्ति यहाँ से
आपको भी सहन शक्ति मिले वहां से !!
6 जुल॰ 2007
श्रद्धा बिटिया के लिए
हम से पहले पंछियों के गीत जागें!
*******
आम पर तोते पुकारें ,
गली में गौएँ गुहारें !
माँ उठा हम बेटियों को
गयीं कह आंगन बुहारें !!
माँ का जीवन घर में पीछे काम में वो सबसे आगे !!
हम ............
*************
पाठशाला गाँव की कितनी अनोखी
सभी श्रम के पथ बताते ।
भोले लोगों को हमेशा
सत्य के ही गीत भाते !!
ग्राम का जीवन सलोना , नगरों से हैं कितने आगे !!
हम...............
***************
" स्टारप्लस" पर आभास जोशी आज होंगे
" लिटिल -मास्टर सुर यात्रा पर"
स्थान:- आपके घर का टी वी रूम
आभास जोशी
5 जुल॰ 2007
आईए इक भोर लेकर पोटली मे चलें घर उनके
लेकर पोटली में चलें
कि कोई मांगे रास्ते मे कम न हो !
हम दीपक उसके काम को आगे बढ़ाए--
- हरिवंशराय बच्चन की रचना
तुमने कब दी बात रात के सूने में तुम आने वाले,पर ऐसे ही वक्त प्राण मन, मेरे हो उठते मतवाले,साँसें घूमघूम फिरफिर से, असमंजस के क्षण गिनती हैं,मिलने की घड़ियाँ तुम निश्चित, यदि कर जाते तब क्या होता?
उत्सुकता की अकुलाहट में, मैंने पलक पाँवड़े डाले,अम्बर तो मशहूर कि सब दिन, रहता अपने होश सम्हाले,तारों की महफिल ने अपनी आँख बिछा दी किस आशा से,मेरे मौन कुटी को आते तुम दिख जाते तब क्या होता?
बैठ कल्पना करता हूँ, पगचाप तुम्हारी मग से आती,रगरग में चेतनता घुलकर, आँसू के कणसी झर जाती,नमक डलीसा गल अपनापन, सागर में घुलमिलसा जाता,अपनी बाँहों में भरकर प्रिय, कण्ठ लगाते तब क्या होता?
- हरिवंशराय बच्चन
4 जुल॰ 2007
3 जुल॰ 2007
आज की कविता
प्रीत भरे बादल छलके...बिसरे दु:ख हम बीते कल के !
***********
गघरी का छल कना और बात ये मोती तो हैं बादल के
मुझे तुम तक पहुंचने के पथ की तलाश है... !!
साभार :-तात्पर्य ब्लाग |
कलम की कन्दील
अपने साथ लिए
रात-बे-रात निकलता हूँ....
यूँ ही सूनी सड़कों पर ..!!
सोचते होगे न ?
किसकी तलाश है मुझको...
मेरे मेहबूब वो तेरे सिवा कोई नहीं और नहीं...
ओ मेरी मुकम्मल नज़्म
मैं हर रात
खुद से निकलता हूं
जिसकी तलाश में वो तुम ही हो
ओ मेरी मुकम्मल नज़्म
तुम कब मिलोगी
रोशनाई की रोशनी में
इल्म का खुशबूदार गुलाब लिये
जाने कब से तलाश में हूं...
जो भी मिलता है उन
सबसे पूछता हूं तुम कहां हो
किसी ने कहा- तुम यहां हो !
किसी ने कहा था- न, तुम वहां हो !!
तुम जो मुकम्मल हो
मुझे मालूम है
सड़क पर न मिलोगी
मिलोगी मुझे
व्योम के उस पार
जहां .... अंतहीन उजास है..
सच मेरे लिये वो जगह खास है
मुझे तुम तक पहुंचने के
पथ की तलाश है... !!
2 जुल॰ 2007
साई-कृपा का आभास
"बावरे-फकीरा"
पोलियो ग्रस्त बच्चों की मदद के लिए भक्ति-एलबम शीघ्र ही आपके हाथ में होगा
*गीतकार:- गिरीश बिल्लोरे मुकुल
*स्वर :- # आभास-जोशी,[स्टार-प्लस , वॉइस-ऑफ़-इंडिया प्रतिभागी ]
# संदीपा-पारे,
# ७० कोरस स्वर दाताओं के साथ
*संगीत :- श्रेयस-जोशी,
*तकनीकी-सहयोग:- स्टूडियो ''स्वर-दर्पण"
आशीष-सक्सेना
सहयोगी:- रविन्द्र-जोशी,हरीश बिल्लोरे,सतीश बिल्लोरे,जितेन्द्र-जोशी
आभास को सुनिये http://www.sendspace.com/file/nk44bz