26 फ़र॰ 2010

28/02/2010 को जबलपुर में निकल रही रसरंग बरात का न्यौता

रसरंग बरात का न्यौता बांटने निकले भाई रमाकांत गौतम ने सभी आज सभी ब्लागर्स का पता पूछा सो मुझे परिणय पाती  के समय पर आप तक डाक से पहुंचाने की दिक्कत भांप ली अस्तु आप सबको तीन सौ से अधिक जोड़ों की बरात हेतु पाती भेज रहा हूँ जो गुंजन कला सदन जबलपुर के डाक्टर आनंद तिवारी सुरेश सराफ,ओंकार श्रीवास्तव की और से 
इस में 10 वर्ष  से 99 वर्ष तक के दूल्हे देखने को आसानी से मिल जावेंगे . 
दूल्हे घोड़े,गधे,रिक्शे,तांगे,बैलगाड़ीयों,तथा पैदल अपनी प्रिया को वरने के लिए जाने वाले हैं. 
 
 
नोट:- यह बरात १९९१ से लगातार निकल रही है जो ब्लॉगर दूल्हा बनने का शौक रखतें हैं तुरंत टिकट कटा लें जबलपुर का . ब्लागराएँ भी दूल्हा ही बनाई जावेंगी

प्यार का पंरीदा

आज एक परिंदे को,
प्यार में तड़फते देखा.
उसे प्यार में मरते देखा,
और देखा प्यार के लिए जीने की तम्मना.

मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.

क्या गुनाह किया परिंदे ने,
सिर्फ किया तो उसने प्यार था.
जी रहा वो हत्यारा पँछी का,
आज किसी दूसरे यार संग.

24 फ़र॰ 2010

नवगीत: रंगों का नव पर्व बसंती ---संजीव सलिल

रंगों का नव पर्व बसंती

रंगों का नव पर्व बसंती
सतरंगा आया
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

आशा पंछी को खोजे से
ठौर नहीं मिलती.
महानगर में शिव-पूजन को
बौर नहीं मिलती.
चकित अपर्णा देख, अपर्णा
है भू की काया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

कागा-कोयल का अंतर अब
जाने कैसे कौन?
चित्र किताबों में देखें,
बोली अनुमानें मौन.
भजन भुला कर डिस्को-गाना
मंदिर में गाया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

है अबीर से उन्हें एलर्जी,
रंगों से है बैर
गले न लगते, हग करते हैं
मना जान की खैर
जड़ विहीन जड़-जीवन लखकर
'सलिल' मुस्कुराया
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

--संजीव सलिल

19 फ़र॰ 2010

दोहे चुनाव सुधार के : --संजीव 'सलिल'

दोहे चुनाव सुधार के :

संजीव 'सलिल'

बिन प्रचार के हों अगर, नूतन आम चुनाव.
भ्रष्टाचार मिटे 'सलिल', तनिक न हो दुर्भाव.

दल का दलदल ख़त्म हो, कोई न करे प्रचार.
सब प्रतिनिधि मिलकर गढ़ें, राष्ट्रीय सरकार.

मतदाता चाहे जिसे, लिखकर उसका नाम.
मतपेटी में डाल दे, प्रतिनिधि हो निष्काम..

भाषा भूषा प्रान्त औ' मजहब की तकरार.
बाँट रही है देश को, जनता है बेज़ार..

समय सम्पदा श्रम बचे, प्रतिनिधि होंगे श्रेष्ठ.
लोग उसी को चुनेंगे, जो सद्गुण में ज्येष्ठ..

संसद में सरकार संग, रहें समर्थक पक्ष.
कहीं विरोधी हो नहीं, दें सब शासन दक्ष..

सुलझा लें असद्भाव से, जब भी हों मतभेद.
'सलिल' सभी कोशिश करें, हो न सके मनभेद..

सब जन प्रतिनिधि हों एक तो, जग पाए सन्देश.
भारत से डरकर रहो, तभी कुशल हो शेष..

**********************************

17 फ़र॰ 2010

हिन्दी ब्लागिंग नि:स्वार्थ होनी चाहिए :रानी विशाल न्यूयार्क

 विदेश में बसी भारतीय बेटियाँ अपने संस्कार आचार विचार सब कुछ साथ ले जातीं हैं .... रोप देतीं हैं इन्हीं संस्कारों को जहाँ भी वे जातीं हैं
रानी विशाल का ब्लॉग है काव्य तरंग 

 
 
रानी जी एवं विशाल जी  बिटिया अनुष्का के साथ

रानी विशाल जी के पिता श्री  श्री ओम प्रकाशजी ठाकुर                                                   माताजी श्रीमति शकुन्तला देवी


__________________________________________________________

रानी  जी ने अपने ब्लॉग पर सूचना दी है कि 
ब्लॉग जगत में पदार्पण का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य है, वो ये की मैं अपना साहित्य आप सभी पाठक गण तकपंहुचा सकू । चूकी मैं बचपन से ही आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के साहित्य से अत्यधिक प्रभावित हूँ इसीलिए मैंने अपने ब्लॉग का नाम उनकी ही एक अत्यधिक लोकप्रिय पुस्तक काव्यमंजूषा के ही नाम पर रखा था। हालाकि इस नाम से एक और ब्लॉग (अदा दीदी ) का है।किंतु ब्लॉग लिखने के पहले मैं ब्लोगिंग में उतना सक्रियनहीं थी, तो मुझे इसका अंदेशा न था । होता भी कैसे आज से कुछ तीन साल पहले अचानक कही रवी रतलामी जीका हिंदी ब्लॉग देखा और मैंने भी अपना ब्लॉग कव्यमंजूषा बना दिया । किंतु समय के अभाव के कारण मैं उसेलाइव नहीं कर पाई। पोस्ट लिखने का टाइम ही नहीं होता था । फिर आचानक से किसी दिन लेखन का जो ज्वारमेरे भीतर से फूटा की मैंने समय पाते ही ब्लॉग लाइव किया और पोस्ट करना शुरू कर दिया । अब तो मैं अच्छासमय ब्लोगिंग को दे भी पाती हूँ । किंतु अदा दीदी की यह मंशा है, और मैं भी ठीक समझती हूँ की पाठको को दोनोंब्लॉग में गफलत ना हो । इसी लिए मैं आज से अपने ब्लॉग के नाम को काव्यमंजूषा से काव्य तरंग कर रही हूँ ।मञ्जूषा की जगह तरंग की प्रेरणा भी आचार्यजी की तरंगिणी से ही ली है ।
"मेरा सोभाग्य तो वही होगा की आप सब मुझे मेरे ब्लॉग के नाम से नहीं बल्कि मेरी कविताओ से पहचाने" किंतुसंवाद की शुरुआत तो किसी नाम से ही हो पाती है । इसीलिए काव्य तरंग अपने नए स्वरुप में आप सबके समक्षप्रस्तुत है ........कविता की नई नई तरंगे लेकर !!
सादर
रानीविशाल
__________________________________________________________


10 फ़र॰ 2010

नवगीत: जीवन की जय बोल... --संजीव 'सलिल'

नव गीत

संजीव 'सलिल'

जीवन की
जय बोल,
धरा का दर्द
तनिक सुन...
तपता सूरज
आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी
अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत
तनिक न हार-
नए सपने
फिर से बुन...
निशा उषा
संध्या को छलता
सुख का चंदा.
हँसता है पर
काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने
में लीन,
तुझे प्यारी
अपनी धुन...
महाकाल के
हाथ जिंदगी
यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का
मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर,
रहे न हावी
कर कुछ
सुन-गुन...

*************

9 फ़र॰ 2010

एक मित्र को पत्र

प्राथमिक शाला में एक मित्र को पत्र लिखना था लिखा किन्तु बेहद त्रुटी पूर्ण होने से मुझे दंड मिला पत्र आज पूरा कर रहा हूँ शायद आप को पसंद आये
______________________________________________________________________

प्रिय मित्र                                            
सादर अभिवादन
किसी की आलोचना करना अच्छी बात है है किन्तु किसी को व्यक्तिगत क्षति पहुंचाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करना इंसान को बौना कर देती है. शायद आप हर छोटी छोटी बातों को दिल पर लेकर मुझे फोरम्स पर मित्रों के बीच अपमानित करने की बदस्तूर कोशिश करतें हैं किन्तु आप ये कदापि नहीं जानते के वे लोग जिनके सामने आप किसी व्यक्ति के विरुद्ध कुछ भी कहतें हैं वही व्यक्ति सबसे पहले आपको बौना समझ लेता है. फिर सुनी बातों से हुए अपच के कारण सीधे बात उस इंसान तक पहुंचा ही देता है जिसके बारे में आप चुगलियाँ करतें हैं भले ही अपनी नज़र आपकी बातें आलोचना हो. 
बहार हाल सब कुछ ठीक है घर में दीदी को प्रणाम बच्चे को स्नेह 
शेष अनवरत शुभ 
आपका मुकुल 
[नोट:बिना पते वाले पुराने कार्ड पर इतना ही लिख पा रहा हूँ किन्तु सही जगह पहुंचेगा मुझे भगवान पर यकीं है ]
http://cdn1.ioffer.com/img/item/459/046/46/o_JEFFERSON-POSTCARD-1-CENT.JPG

7 फ़र॰ 2010

उड़न तश्तरी से रू ब रू : ब्लागिंग पर समीर लाल

मशहूर ब्लॉगर श्री समीर लाल जी से हुई बात चीत में ब्लागिंग को लेकर हुई चर्चा का पहला एपीसोड सादर प्रस्तुत है.समीर लाल जी का मत है कि हिंदी ब्लागिंग अपने उच्च मुकाम पर पहुंचेगी ये तयशुदा बात है .
समीर लाल जी से हुई बात चीत सुनिए नीचे  और  संवाद एवं विमर्श पर  भी


5 फ़र॰ 2010

उत्पाद महंगे , उत्पादक भिखमंगे


बचपन में भी मैं उतना ही नालायक और लम्पट मूर्ख था जितना आज हूँ ,उसमें कहीं कोई फर्क नहीं आया है, और अब तो शायद आयेगा भी नहीं, इसलिए आपने देखा ही होगा कि मैं कभी पढाई लिखाई की बातें नहीं करता.लेकिन आज पता नहीं क्यों रह रह कर अर्थशाश्त्र का एक नियम बड़े जोरों से याद आ रहा है। वैसे तो , मेरा मानना ये है कि ये अर्थशास्त्र का विषय लेकर भी जिंदगी में मुझे ऐसा कोई अनोखा लाभ नहीं हुआ कि लगता कि मेरा अर्थशास्त्र के बोरिंग नियमों को पढ़ना सार्थक रहा। खैर ये तो मेरी बात हुई , छोडिये इसे, मैं कह रहा था कि मैंने पढा था कि जब भी मांग अधिक होती है उत्पाद महंगा होता है , और यदि उत्पाद महंगा होगा तो उत्पादक मालामाल होगा। मैंने इस बात को अब तक सच माना हुआ था, हाँ अब तक...

दरअसल हुआ ये कि ;उस दिन अचानक श्रीमती जी की जगह जोश में मैं ख़ुद राशन लाने चला गया, वहाँ जाकर मेरे अंदाजे का क्या रहा, या कि मुझे आंटे दाल का भाव कैसे पता चला, और ये कि मुझे ये नहीं समझ आया कि अब तक सब्जी , फलों वालों ने अपने यहाँ क्रेडिट कार्ड मशीन क्यों नहीं लगाई, इन सब बातों को तो रहने ही दिजीये, मैंने तो ये सोचा कि यार जब आंटे , चावल, दालों, सब्जी आदि का भाव इतना आसमान छू रहा है तो अपने किसान काका गाओं में बैठ कर चांदी कूट रहे होंगे , तभी कहूं कि इतने दिनों से मुझसे बात भी नहीं की। मैंने तय किया कि आज ही फोन मिलाता हूँ।

फोन मिलते ही मैंने तो बस हालचाल ही पूछा कि वो बगैर पूछे ही शुरू हो गए, " बेटा मैं तो पिछले कई दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था , मगर झिझक के कारण कुछ कह नहीं पा रहा था , दरअसल तुम्हारी काकी, तुम्हारे भैया, भाभी सभी बीमार पड़े हैं और घर में इतने पैसे भी नहीं हैं कि इलाज करा सकूं। यहाँ सबका यही हाल है । वो जो कोने के मकान वाले दिनू चाचा थे उन्होंने तो परसों ही फांसी लगा ली बेटा साहूकार के कर्जे के कारण। तू जल्दी से कुछ पैसे भेज सके तो अच्छा हो।"

मैं सोच में पड़ा हुआ हूँ कि जब हम यहाँ आटे, दाल, चावल , का इतना दाम, चुका रहे हैं तो फ़िर उनका हाल इतना बुरा क्यों हैं जो इसे उगा, कर, पला बढ़ा कर, तैयार करके हमारे पास भेज रहे हैं। ये उलटा अर्थशास्त्र मेरे पल्ले तो पड़ ही नहीं रहा , आप को कुछ समझ आ रहा है तो बतायें.?

आज की रचना: संजीव 'सलिल'

आज की रचना:  दोहा सलिला

संजीव 'सलिल'

सत्ता की जय बोलिए, दुनिया का दस्तूर.
सत्ता पा मदमस्त हो, रहें नशे में चूर..

है विनाश की दिशा यह, भूल रहे सब जान.
वंशज हम धृतराष्ट्र के, सके न सच पहचान.

जो निज मन को जीत ले, उसे नमन कर मौन.
निज मन से यह पूछिए, छिपा आपमें कौन?.

एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से ज्यादा भारी.
आज नहीं चिर काल से, रहती आयी नारी..

मैन आप वूमैन वह, किसमें ज्यादा भार?
सत्य जान करिए नमन, करिए पायें प्यार.

मुझे तुम न भूलीं, मुझे ज्ञात है यह.
तभी तो उषामय, मधुर प्रात है यह..
ये बासंती मौसम, हवा में खुनक सी-
परिंदों की चह-चहसा ज़ज्बात है यह..

काल ग्रन्थ की पांडुलिपि, लिखता जाने कौन?
जब-जब पूछा प्रश्न यह, उत्तर पाया मौन..

जय प्रकाश की बोलिए, मानस होगा शांत.
'सलिल' मिटाकर तिमिर को, पथ पायें निर्भ्रांत..

परिंदा नन्हा है छोटे पर मगर है हौसला.
बना ले तूफ़ान में भी, जोड़ तिनका घोंसला..

अश्वारोही रश्मि की, प्रभा निहारो मीत.
जीत तिमिर उजियार दे, जग मनभावन रीत..

हम 'मैं' बनकर जी रहे, 'तुम' से होकर दूर.
काश कभी 'हम एक' हों, खुसी मिले भरपूर..

अनिल अनल भू नभ सलिल, मिल भरते हैं रंग.
समझ न पाता साम्य तो, होता मानव तंग.

*****************************

3 फ़र॰ 2010

श्री शरद कोकास, श्री कुलवंत हैप्पी, श्रीमती संगीता पुरी श्री अविनाश वाचस्पति एवंभाई दीपक मशाल से बात चीत

एक कोशिश है पाडकास्ट साक्षात्कार सव्यसाची  कला  ग्रुप  जबलपुर के पन्नो पर श्री शरद कोकास, श्री कुलवंत हैप्पी, श्रीमती संगीता पुरी के साक्षात्कार के बाद आज  एवं श्री अविनाश वाचस्पति के साथ बातचीत भाग  एक एवं भाग दो के साथ भाई दीपक मशाल से बात चीत सुनिए  इस कोशिश में कमियाँ ज़रूर होंगी आपका हार्दिक स्वागत है उन कमियों एवं त्रुटियों पर ध्यान आकृष्ट कराने . ब्लॉग जगत से इतर लोगों को भी यथा संभव यहाँ लाने की कोशिश में हूँ.
सादर

 
चश्मे का हार पहने अविनाश जी 


भाई दीपक मशाल जी 
___________________________________________________________________
जिन साथियों ने हेड फोन खरीद लिए हैं कृपया तुरंत मेरे मेल पते पर सूचित कीजिये शायद आपका अगला नंबर हो 
 

2 फ़र॰ 2010

यहाँ तीर्थ तुल्य माता होती

मेरे प्रिय गीतकार गुरु घनश्याम चौरसिया  बादल  की रचना जो दिल की गहराइयों में आज तक सम्हाली हुई है आप सभी के लिए सादर प्रस्तुत है