30 जून 2010

गीत: आँख का पानी -- संजीव 'सलिल'

गीत

संजीव 'सलिल'
*
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*
बेचते हो क्यों
कहो निज आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

जानती जनता
सियासत कर रहे हो तुम.
मानती-पहचानती
छल कर रहे हो तुम.
हो तुम्हीं शासक-
प्रशासक न्याय के दाता.
आह पीड़ा दाह
बनकर पल रहे हो तुम.
खेलते हो क्यों
गँवाकर आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

लाश का
व्यापार  करते शर्म ना आई.
बेहतर तुमसे
दशानन ही रहा भाई.
लोभ ईर्ष्या मौत के
सौदागरों सोचो-
साथ किसके गयी
कुर्सी  साथ कब आई?
फेंकते हो क्यों
मलिनकर आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

गिरि सरोवर
नदी जंगल निगल डाले हैं.
वसन उज्जवल
पर तुम्हारे हृदय काले हैं.
जाग जनगण
फूँक देगा तुम्हारी लंका-
डरो, सम्हलो
फिर न कहना- 'पड़े लाले हैं.'
बच लो कुछ तो 
जतन कर आँख का पानी
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....
*

26 जून 2010

हाइकु गीत: आँख का पानी संजीव 'सलिल'

हाइकु गीत:

आँख का पानी

संजीव 'सलिल'

*




        









                  


*
आँख का पानी,
        मर गया तो कैसे
              धरा हो धानी?...
             *
तोड़ बंधन
आँख का पानी बहा.
रोके न रुका.

             आसमान भी
             हौसलों की ऊँचाई
             के आगे झुका.

कहती नानी
       सूखने मत देना
               आँख का पानी....
            *
रोक न पाये
जनक जैसे ज्ञानी
आँसू अपने.

           मिट्टी में मिला
           रावण जैसा ध्यानी
           टूटे सपने.

आँख से पानी
      न बहे, पर रहे
             आँख का पानी...
             *
पल में मरे
हजारों बेनुगाह
गैस में घिरे.

           गुनहगार
           हैं नेता-अधिकारी
           झूठे-मक्कार.

आँख में पानी
       देखकर रो पड़ा
              आँख का पानी...
              *
-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

24 जून 2010

प्‍यार

राहो मे पलके बिछा कर
तेरा इंतजार कर रहा हूँ।
अपनी चाहत को तेरे दिल मे बसा कर
अपना इश्क-ए-इज़हार कर रहा हूँ।

चाहत को अपनी चाह कर भी,
इज़हार नही कर पा रहा हूँ।
तेरी चाहत मे दिल मे दर्द लेकर
अपने को दिल को दर्द दे रहा हूं।

मै तुम्‍हे देखता हूँ
देखता ही रह जाता हूँ।
मै जहाँ जाता हूँ
सिर्फ तुझे ही पाता हूँ।।

मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ ,
चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ।
काश कोई करिश्‍मा हो जाये,
सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।।

17 जून 2010

कथा-गीत: मैं बूढा बरगद हूँ यारों... ---संजीव 'सलिल'

कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
संजीव 'सलिल'
*
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*
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...

है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.

धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.

मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया सुखी.

वानर आ करते कूद-फांद.
झकझोर डालियाँ मस्ताते.
बच्चे आकर झूला झूलें-
सावन में कजरी थे गाते.

रातों को लगती पंचायत.
उसमें आते थे बड़े-बड़े.
लेकिन वे मन के छोटे थे-
झगड़े ही करते सदा खड़े.

कोमल कंठी ललनाएँ आ
बन्ना-बन्नी गाया करतीं.
मागरमाटी पर कर प्रणाम-
माटी लेकर जाया करतीं.

मैं सबको देता आशीषें.
सबको दुलराया करता था.
सबके सुख-दुःख का साथी था-
सबके सँग जीता-मरता था.

है काल बली, सब बदल गया.
कुछ गाँव छोड़कर शहर गए.
कुछ राजनीति में डूब गए-
घोलते फिजां में ज़हर गए.

जंगल काटे, पर्वत खोदे.
सब ताल-तलैयाँ पूर दिए.
मेरे भी दुर्दिन आये हैं-
मानव मस्ती में चूर हुए.

अब टूट-गिर रहीं शाखाएँ.
गर्मी, जाड़ा, बरसातें भी.
जाने क्यों खुशी नहीं देते?
नव मौसम आते-जाते भी.

बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.

भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..
***********************

15 जून 2010

महफ़ूज़ भाई किधर हो आज़ कल

आर्ची आज़ भी महफ़ूज़-भैया  को तलाशती है
अंकुर-भैया  और महफ़ूज़ भैया में उसके लिये कोई फ़र्क नहीं है.
आर्ची एक सा स्नेह बांटती है दौनो से दूर सपने संजोती है अंकुर भैया आएंगे मेरे पास खूब सारी गुडिया हो जाएंगी खेलने को ...
आर्ची

14 जून 2010

चंद मुक्तक -संजीव 'सलिल'

चंद मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*















*
कलम तलवार से ज्यादा, कहा सच वार करती है.
जुबां नारी की लेकिन सबसे ज्यादा धार धरती है.
महाभारत कराया द्रौपदी के व्यंग बाणों ने-
नयन के तीर छेदें तो न दिल की हार खलती है..
*
कलम नीलाम होती रोज ही अखबार में देखो.
खबर बेची-खरीदी जा रही बाज़ार में लेखो.
न माखनलाल जी ही हैं, नहीं विद्यार्थी जी हैं-
रखे अख़बार सब गिरवी स्वयं सरकार ने देखो.
*
बहाते हैं वो आँसू छद्म, छलते जो रहे अब तक.
हजारों मर गए पर शर्म इनको आयी ना अब तक.
करो जूतों से पूजा देश के नेताओं की मिलकर-
करें गद्दारियाँ जो 'सलिल' पायें एक भी ना मत..
*
वसन हैं श्वेत-भगवा किन्तु मन काले लिये नेता.
सभी को सत्य मालुम, पर अधर अब तक सिये नेता.
सभी दोषी हैं इनको दंड दो, मत माफ़ तुम करना-
'सलिल' पी स्वार्थ की मदिरा सतत, अब तक जिए नेता..
*
जो सत्ता पा गए हैं बस चला तो देश बेचेंगे.
ये अपनी माँ के फाड़ें वस्त्र, तन का चीर खीचेंगे.
यही तो हैं असुर जो देश से गद्दारियाँ करते-
कहो कब हम जागेंगे और इनको दूर फेंकेंगे?
*
तराजू न्याय की थामे हुए हो जब कोई अंधा.
तो काले कोट क्यों करने से चूकें  सत्य का धंधा.
खरीदी और बेची जा रही है न्याय की मूरत-
'सलिल' कोई न सूरत है न हो वातावरण गन्दा.
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

भोपाल के हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू, को क्या कहोगे बाल दिवस पर ?

बहन फिरदौस 

ये तस्वीर उनके मेहमान खाने में लगाने भेज दो

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_cfKyY7VRyWXgEYkBRv_2qdrMtRSENWjCczmJd3PbcqS4SoTUYIMLaU7Ek3neMLTBFKeA0c6kC65Zi_WMglJqX6V19i0KqhJMAThwvYLSkdNpENse7tUOLc8I7DyK3ccjDMWwNIxS15Y/s400/BHOPAL-GAS-TRAGEDY.jpgतस्वीर फ़िरदौस खान के ब्लाग से साभार

बुआ वाला भोपाल तब से अब तक बीमार हैं ..... आखिरी सांस का इन्तज़ार करती बुआ अभी भी तीन दिसम्बर चौरासी से अब तक ज़िन्दा है उनके साथ ज़िंदा हैं अब तक सवाल जो व्यवस्था,कानून,न्याय और व्यापार के अगुओं से पूछे जाने हैं. उनकी नज़र में एण्डरसन का चित्र है कि नहीं मालूम नहीं. वे क्या जाने कौन है  एण्डरसन कैसा है इसे तो वे जानते थे जिनने भोपाल के साथ ....................बेवफ़ाई की.जी वे एन्डरसन को जानते ही नहीं मानते भी हैं. तभी तो ..........? बुआ क्या जाने नेहरू चाचा के देश में तड़पती फ़िर यकायक शान्त प्राणहीन होती शिशुओं की देह ...जो बच गये वो हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू,अपाहिज़ बीमार ज़िन्दगी जी रहे हैं.इस बाल दिवस पर क्या जवाब दिया जाए उनको .....?खैर ये तुम सोचो तुम पर  तो एण्डरसन की ज़वाब देही थी न .  भोपाल वाली बुआ की ज़वाब देही तो हमारी है और ...........हसन,अब्दुल,ज़ाकिर,करीम,सोहन,राम,मीना,सन्जू,मन्जू,की...? 

उनकी  ज़वाब देही उनके माँ - बाप की ...! 

तुम तो जो भी हो सच आदमी वेश में ''......'' हो...! और  क्या उपमा दें  तुमको ? 

बस शोक मनाएंगे हम हिंदुस्तानी  तो ...... इस बात का कि हमारे लोग नारकीय यातना भोग रहे हैं  और इस बात का भी कि आपकी अन्तराआत्मा ज़िन्दा ही नहीं हैं ज़िंदा नहीं थी  !

बताओ किस चौराहे पर तुम्हारी प्रतिमा लगानी है..?

भारत में कुपोषण चिन्ता ही नहीं चिन्तन भी कीजिये

श्रद्धा मंडलोई की रिपोर्ट में  वे कहतीं हैं "यूनिसेफ के मुताबिक विकसित देशों में 150 मिलियन (15 करोड़) बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जैसाकि हम सभी जानते हैं भारत दक्षिण एशिया में बसा हुआ है, जहां करीब 78 मिलियन बच्चे कुपोषित हैं। भारत में तीन साल से कम उम्र का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है। यहां पांच साल से कम उम्र के करीब 55 मिलियन (साढ़े 5 करोड़) बच्चे हैं, जो ऑस्टेलिया की जनसंख्या का दुगने से भी ज्‍यादा है"
संदर्भ/साभार:-मेरी खबर.काम .
कुपोषण से मुक्ति की युक्ति पेश है कारगर हो सकती है
देखिये इधर डाक्स में
इसे देखिये कृतिदेव फ़ांट की सहायता से

12 जून 2010

इश्क प्रीत लव पर अब तक

इश्क प्रीत लव पर अब तक प्रस्तुत ब्लाग्स सादर प्रस्तुत हैं आप भी पुरानी पोस्ट के लिंक दे सकते हैं ब्लॉगवाणी की सहायता से
  1. आप को इश्क़ है तो 
  2. मन प्याली, मदिरा थी प्रीत ..! ह्रदय की सुराही तौ पर न रीती 
  3. तेरी पूजा के तरीके से बेख़बर हूं मैं न ही उपवास मुझसे हो पाया ! 
  4. हम तो तंतु कसे कसे से ठोकर से सरगम ही देंगे
  5. जन्म दिन मुबारक हो मन्ना डे साहब 
  6. आज़ सुनिये ये गीत 
  7. पाबला जी पगडी में क्या है सुनिये शरद कोकास से 
  8. आवाज़ पे सुनिये एक गीत जो यादों को सहला गया 
  9. राज कपूर की फ़िल्मों के गीत 
  10. मेरा पसंदीदा गीत आप भी सुनिये 
  11. स्निग्धा तु मेरी सासों में घोल रहीं थी अमिय 
  12. सानिया कहा था न कल्लू पहलवान हुंकार भरेंगें 
  13. महफ़ूज़ अली की कविता वाली टी   शर्ट पहनेंगे अमेरिकन 
  14. सानिया से ज़्यादा ज़रूरी है संजय पर बात 
  15. गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ? 
  16. गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ? 
  17. इश्क प्रीत love 
  18. रे इश्क की तासीर यही है 
  19. podcast 
  20. शहरोज़ जी को पहली बार रंगा था उनकी प्रेमिका ने:पाडकास्ट इंटरव्यू 
  21. अदा जी की आवाज़ में सुनिए तेरी आँखों के सिवा 
  22. तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ !! 
  23. दिलों को जीतने का शौक :जीतने का हुनर भी 
  24. प्रीत का यह रूप 
  25. झूठ है आज का ग्रहण सबसे लंबा ग्रहण नहीं था 
  26. अणु-अणु सँवर-सँवर तिल-तिल मिट-मिट पूरा करार करतीं हूँ 
  27. प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम 
  28. मिर्ज़ा ग़ालिब 
  29. प्रिय बिन बैरन-सी लगे पायल की झंकार 
  30. वेब दुनिया पर इश्क प्रीत love की चर्चा
  31. तापसी-उर्मिला 
  32. तुम्हारी सादगी ही उनके 
  33. तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ 
  34. हम ठहरे पलटवारी 
  35. आँगन के कचनार 
  36. , प्रेम,गीत- प्रेमकविता,
  37. मन अनुरागी जोगी तेरा हम-तुम में कैसी ये अनबन
  38. इनको आज सुनना ज़रूरी है...!! 
  39. प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
  40.  प्यार की ख़ूबसूरत रिवायतों से रूबरू कराते ये गीत 
  41. मेलोडी ऑफ़ लव 
  42. गीत सुनिए जानिये हाले दिल 
  43. आज तुमसे न मिल पाना तुम्हारे होने को परिभाषित कर गया 
  44. बस यही है प्रेम तपस्या तापसी 
  45. तनेज़ा जी क्या करूं इस नोटिस का ?
  46. आज इस गीत से काम चलेगा.? 
  47. सन्मुख प्रतिबंधों के कब तलक झुकूं कहो 
  48. प्रीत निमंत्रण ..!
  49. आभार हिंदयुग्म 
  50. भेज दो लिख कर ही प्रेम संदेश 
  51. चर्चा का नया रंग 
  52. प्रेम दीप जो तुमने बारे 
  53. आर्ची 
  54. ध्वनि-हीन संवाद 
  55. Tribute to Talat Mehmood Sahab 
  56. मेरी प्रेमिका के कारण 
  57. मागों तो दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं 
  58. वंदे मातरम 
  59. बारिश को तरसते हम सुनें ये प्रेम गीत 
  60. जाग विरहनी प्रियतम आए 
  61. " स्मरणीय काव्य संध्या" 
  62. विकास परिहार नहीं रहे ! 
  63. लगातार सब ठोकर दे कर वो हँसे जा रहा है 
  64. लगातार सब ठोकर दे कर वो हँसे जा रहा है 
  65. एक ख़त : पहले प्यार को 
  66. इश्क का देवता शुक्र और आज शुक्रवार है जी 
  67. आई ए एस होने का अर्थ ? 
  68. तुम बिन सच कितना खाली सा मेरे मन का जोगी दर्पण 
  69. संजू बाबा का जन्म दिन है भाई आज 
  70. इनको खोज लाइए इनाम में पाइए..? सॉरी इनाम की घोषणा बाद में 
  71. लव कैलकुलेटर के सनसनीखेज परिणाम ज़रूर देखिये जी 
  72. इस कविता का कोई भी उपयोग करे कोई आपत्ति नहीं 
  73. पंडित ईश्वरी प्रसाद तिवारी : 
  74. यह पोस्ट उन लोगों के लिए समर्पित है जो दफ्तर के खर्च पर ब्लागिंग का मुहिम चला रहें हैं 
  75. कुत्ते भौंकते क्यों हैं.........? 
  76. मुझे शुभकामनाएं -चाहिए 
  77. आप को क्लासिफाइड की मुफ्त सुविधा मिले तो 
  78. शिर्डी-साई की भक्ति से सराबोर बावरे-फकीरा एलबम ऐसे प्राप्त कीजिए 
  79. ख़त सुधि ब्लागर्स के नाम 
  80. समय दिन और पल 
  81. मुन्नी अब मुस्कुरायेगी
  82. सियासी मित्रो जान लो :: शब्दों के साथ ज़हर उगलना तालिबानी कल्चर है 
  83. बावरे फकीरा लांचिंग फोटो एलबम 
  84. बवाल:तेरा तुझको अर्पण / 
  85. दोस्त हम तो ज़मीं को सलाम करतें है..!! 
  86. बवाल का कमाल : न हंगामा न बवाल ....!! 
  87. हर कण की "क्षण-स्मृति" : हर क्षण की कण स्मृति  
  88. वैलेंटाईन या विलेनटाइम या की वेल-इन-टाइम 

    7 जून 2010

    त्रिपदिक नवगीत : नेह नर्मदा तीर पर ---- संजीव 'सलिल'

    : अभिनव सारस्वत प्रयोग :
    त्रिपदिक नवगीत :
                 नेह नर्मदा तीर पर
                                - संजीव 'सलिल'

                         *









    नेह नर्मदा तीर पर,
           अवगाहन कर धीर धर,
               पल-पल उठ-गिरती लहर...
                       *
    कौन उदासी-विरागी,
    विकल किनारे पर खड़ा?
    किसका पथ चुप जोहता?

              निष्क्रिय, मौन, हताश है.
              या दिलजला निराश है?
              जलती आग पलाश है.

    जब पीड़ा बनती भँवर,
           खींचे तुझको केंद्र पर,
               रुक मत घेरा पार कर...
                       *
    नेह नर्मदा तीर पर,
           अवगाहन का धीर धर,
               पल-पल उठ-गिरती लहर...
                       *
    सुन पंछी का मशविरा,
    मेघदूत जाता फिरा-
    'सलिल'-धार बनकर गिरा.

              शांति दग्ध उर को मिली.
              मुरझाई कलिका खिली.
              शिला दूरियों की हिली.

    मन्दिर में गूँजा गजर,
           निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
               'हे माँ! सब पर दया कर...
                       *
    नेह नर्मदा तीर पर,
           अवगाहन का धीर धर,
               पल-पल उठ-गिरती लहर...
                       *
    पग आये पौधे लिये,
    ज्यों नव आशा के दिये.
    नर्तित थे हुलसित हिये.

              सिकता कण लख नाचते.
              कलकल ध्वनि सुन झूमते.
              पर्ण कथा नव बाँचते.

    बम्बुलिया के स्वर मधुर,
           पग मादल की थाप पर,
               लिखें कथा नव थिरक कर...
                       *
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    salil.sanjiv@gmail.com