22 मई 2011

छब्बीस घण्टे बीस मिनिट दिल्ली में part 03

 ललित भाई की पोस्ट  की धार पहचानना सहज नहीं समझता वही है जो उस घटना या स्थिति से गुज़रा हो अथवा उसका हिस्सा रहा हो. किंतु भाई का हमको छत्तीसगढ़िया समझ लेना समझ न आया. 
                                       "छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड,महाराष्ट्र, से ब्लॉगर्स पहुचे थे. परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के माध्यम से हमें सभी ब्लॉगर्स से मिलने का मौका मिला और ऐसा कोई भी रसायन नहीं है जो सभी को संतुष्ट कर सके."
             उपर लिखे वाक्य से लगता है ललित बाबू किसी भी मध्य-प्रदेशीय ब्लागर से नहीं मिले हमसे मिले भी तो हमको छत्तीसगढ़ का ही माना. इससे तय ये हुआ कि इनकी हमसे गहरी आत्मीयता है. हमको बाहरी न मानना हमारा सौभाग्य है.
   दिल्ली में मिलना मिलाना इतना अपनापन बो गया कि हम अभी भूत हुये यशवंत भाई का आकर गले लगना, खुशदीप का हाथ हिला कर अभिवादन का उत्तर देना भाई रमेश जैन सिरफ़िरा का हमको खोज के मिलना. वाह  जितनों से  मुलाक़ात हुई ऐसा तो लगा ही न था कि मैं किसी से प्रथम बार मिल रहा हूं. लोग जाने क्यों इस दुनिया को आभासे दुनिया कहते हैं.  ब्लागर मित्र समीर भाई भी सम्मानित हुए जिसे ग्रहण करने का सौभाग्य मुझे ही हासिल हुआ. हमारे जबलपुरिया मित्र लिमिटि खरे जी से भेंट न हो सकी. 
 गिरिजा शरण जी अग्रवाल का अपनत्व तो मुझे उनका मुरीद बना लेने की खास वज़ह है 

  और ये पद्म भाई वाह पोर पोर में नेह छिपाए रखते हैं अपने लम्बू जी.कहीं से व्यवसायिक रिलेशन बनाने वाले नज़र न आए. ऐसे ही आदरणीय पवन चंदन जी हैं. दिल्ली में मुझे एस्काट करते रहे . लौटते वक़्त ट्रेन में बिठाने तक की ज़वाबदेही निबाही पी०के०शर्मा यानि पवन चंदन साहब ने. उनकी एक कविता जो मुझे बेहद पसंद आई बापू की आत्मा  आप को भी भाएगी तय है इस बीच आप जान लीजिये कि चाहे शैलेश भारत वासी हो या कनिष्क भाई या समारोह में आए अन्य ब्लागर सबमे इतनी रिझाने वाली आत्मीयता मिली जो कि  न्यू मीडिया के उजले कल आहट है .यकीन कीजिये        
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अगले अंक यानी समापन किश्त में ललित शर्मा जी एवम गुरुदेव अवधिया के बीच हुआ
...... देखना न भूलिये   
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21 मई 2011

छब्बीस घण्टे बीस मिनिट दिल्ली में part 02


कार्यक्रम वाले दिन यानी 30 अप्रैल 2011  अल्ल सुबह घर  से निकला किंगफ़िशर जनता फ़्लाईट में नाश्ता-वास्ता लिये  बिना सोचा था कि   उधर यान बालाएं खाने पीने को पूछेंगी ही सो  श्रीमति जी की एक न मानी. अब ताज़ा हसीन ताज़ा तरीन चेहरे वाली व्योम बालाओं  के हाथों से खाऊंगा सोचकर सतफ़ेरी अर्धांगिनी की न मानना महंगा पडेगा इस बात का मुझे इल्म न था. 

ट्राली लेकर पधारीं  दो लावण्य मयी व्योम-बालाओं  में से एक बोली : आप मीनू अनुसार आर्डर कीजिये 
वेज़ सेण्डविच..?
न, नहीं है सर 
तो साल्टी काज़ू ही दे दो काफ़ी भी देना, काफ़ी के साथ दो जोड़ा बिस्किट फ़्री मिले. 
नाश्ता आते आते पड़ोसी से दोस्ती हो गई थी. उनको गुज़रात जाना था. समीपस्थ  सिवनी नगर  के व्यापारी थे जो अपने जीजा जी के अत्यधिक बीमार होने की खबर सुन के रातों रात जबलपुर आए थे. यात्रा के दौरान पनपी मित्रता का आधार उनका पहली बार का विमान यात्री होना तो था मेरा आकर्षण वो इस कारण बने क्योंकि उनके पास तम्बाखू मिश्रित जबलपुरिया गुटखे का भण्डार पर्याप्त था. न भी होता तो मै मित्र अवश्य बना लेता ... बात चीत तो करनी ही थी.  
          नाश्ता करकुरा के हम दौनों ने पारस्परिक यात्रा प्रयोजनों के कारण की एक दूजे से पता साजी की फ़िर  सामयिक विषयों विषयों जैसे भ्रष्टाचार,मंहगाई, आदि पर संवाद किये. तभी एक संदेश गूंजा जिससे साबित हुआ दिल्ली दूर नहीं. 
       एयर पोर्ट पर वादा करके मियां महफ़ूज़ न आ सके कारण जो भी हो ललित बाबू की बात सही निकली कि "यात्रा में खुद पे भरोसा करो वादों पे नहीं !!" 
    हम गांधी शांति प्रतिष्ठान पहुंचे वहां वो सब घटा जो जो तय था. गर्मी उफ़ क्या कहने फ़िर उसी कक्ष में शास्त्री जी का काफ़िला, प्रमुख इंतज़ाम अलि अविनाश उर्फ़ अन्ना भाई, केवल राम जी आदि पधारे. खाना आया थोड़ा बहुत खा पीकर हम समारोह स्थल यानी हिंदी भवन जा पहुंचे . जहां ब्राड-बैंड कनेक्टिविटी की कोशिशों में लगे थे भाई पद्म सिंह और फ़िर पवन चंदन जी ने भी साथ दिया उनका. सब कुछ होने के बावज़ूद ब्राडबैण्ड के ज़रिये हम प्रसारण न कर सके , जिस काम के सम्मान मिलना था  उसी काम को न कर पाने की खिन्नता से  रह रह कर ब्राडबैण्ड बाबा से चालू होने की प्रार्थना कर रहा था. खटीमा का इतिहास न दुहरा पाने की शर्मिंदगी से भरे हम जैसे तैसे प्रसारण कर रहे थे. इंदौर में बैठीं  अर्चना चावजी की मदद से  हम कुछ काम कर पाये.  
डा०सरोजनी प्रीतम का कौतुहल
                 पद्म सिंह, और मैं हताश थे पर प्रयास जारी रखे हमने  रखते भी क्यों न सारे विश्व से ब्लागर हमारे कारनामे  देखना चाहते थे . आयोजकों का अति-विश्वास या उनकी व्यस्तता तथा मेरा एक दिन बाद पहुंचना बाधक साबित हुआ था स्मूथ वेबकास्टिंग के लिये.  "मंचीय-कार्यक्रमों के मामले में मेरी राय भी इसी के इर्द गिर्द है कि -"तय जो होता है वही हो ऐसा तय नही है !"
         सो हे मित्रो यदि आप अपने शहर में ऐसा कोई आयोजन कराते हैं और मुझे वेबकास्टिंग के लिये बुलाएं तो ब्राड-बैण्ड कनेक्शन प्राथमिक शर्त होगी. वरना मेरा टिकट कैंसिल मानिये. मुझे न बुलाएं मुझे बुरा न लगेगा, बुरा तो तब लगता है जब हम टांय-टांय फ़िस्स हो जाते हैं. 
      सफ़ल वेबकास्टिंग के लिये तेज़ गतिवान ब्राडबैण्ड कनेक्शन का होना ज़रूरी है ताकि ध्वनि और फ़ोटो एक साथ आन एयर हो सके. 
         खटीमा का रिकार्ड तोड़ना चाहता था मैं  दिल्ली से किंतु यह न हो सका . मैं शर्मिंदा हूं. पर हताश नहीं. ये सच है कि मैं प्रीमियम सदस्य नहीं हूं क्योंकि बहुत सारा धन लगता है. यूस्ट्रीम या बैमबजर पर इस के लिये. जो मेरे लिये अभी सम्भव कदापि नहीं है...! जिस दिन ये सम्भव होगा मैं प्रोफ़ेशनली उतर आऊंगा इस धंधे में. ये पक्की बात है. 
खैर अब प्रोग्राम के प्रथम भाग की समाप्ति के बाद चाय-नाश्ता जिसकी खास ज़रूरत थी सबने सूता. फ़िर शुरु हुई नाट्य-प्रस्तुति, 

 नाटक लावणी मर्म-स्पर्शी रहा. टैगोर की कहानियों में साबित होता है कि  समकालीन  मानवीय संवेदनाओं  के हनन से रवींद्र बाबू कितना आहत हो जाते थे. अगर मेरा मानना है कि "रवीन्द्र नाथ टैगोर की हर रचना काल जयी है तो ग़लत कहां है मेरी सोच "






अब आप को मालूम तो है कि कौन कौन आया था सम्मान लेने अरे क्या भूल गये तो लगाइये इधर चटका ज़रा 
हां  "इधर" 
 एरियल फ़ोटो 


























   




16 मई 2011

छब्बीस घण्टे बीस मिनिट दिल्ली में part 01



“सम्मान के यश को दुगना करने की रीत निभाई जबलपुर के स्नेहीजनों नें   किस किस का आभार कहूं कैसे कहूं स्तब्ध हूं. जी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं   जो दीवारें पोतने का काम करते हैं, उन पुताई करने वालों का भी आभारी हूं उनसे न तो   मुझे गुरेज़ है न ही उनके लिये मेरे मन में कोई नकारात्मक भाव शुभचिंतकों का आभारी हूं….!”... 
मित्रो मित्राणियो
रवींद्र जी और अविनाश जी के आग्रह टालना असम्भव था.  
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                                    जी उस दिन घर में घर में काफ़ी तनाव था चचेरे भाई की शादी का तय होना और मेरा ये ऐलान कर देना कि मैं "दिल्ली जाऊंगा" सबको रास न आया.. पर जब तीस का फ़्लाईट का टिकट मंगवाया तो सब को धीरज आ गया २९ अप्रैल तक की सारी रस्मों में सबके साथ रहूंगा. दूल्हा सचिन भी खुश हुआ..सबने कहा ठीक है बरात में न सही महत्वपूर्णं अवसरों पर तो साथ रहोगे. तीस अप्रैल से एक मई तक दिल्ली जाने की अनुमति मिल गई.  
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मेरी नज़र में दिल्ली समागम एक ऐसा समागम था जो एक सूत्र में सबको पिरोने का मादआ रखता है. मुझे तो आशीष से अभिसिक्त कर ही दिया था मेरी ताई ने.. ताई एक स्नेह की पोटली अपने हृदय में लेकर चलतीं हैं.


अवधिया जी ललित जी से जूझते हुए  

लो हम खु हेंच लिए फोटुक
बनियान ने बयान कर ही दिया की दिल्ली में ए सी फ़ैल हैं

होटल में संजीव भाई का उदबोधन


मगन मन सुनते अवधिया जी पाबला जी __________________________________
दिल्ली एक आग्रह था मेरे लिए . आपके लिए दिल्ली क्या है इस बात से मुझे कोई सरोकार कम अज कम इस आलेख में  तो नहीं . अविनाश वाचस्पति पद्म जी  , ललित जी, अग्रवाल जी, अरे हाँ रवींद्र प्रभात जी केवलराम जी इन सबके शीतल व्यवहार ने तमतमाई दिल्ली उष्म हवाओं से राहत दिलाई. उत्तरांचल से सदलबल पधारे शास्त्री जी तो मानो उधर की ठंडक भी ले आए थे. गांधी शान्ति भवन तक पहुंचाने वाले रास्ता बताऊ दिल्ली वासी या तो रास्ता ग़लत बता रहे थे या हमारी समझ में कम आया बहरहाल हम पहुंच गये गांधी भवन यानी बेचारा गांधी भवन सचमुच बेचारा है... तभी तो ब्लागर्स ए सी के जुगाड़ में होटलों में रुके. ललित जी एवम पाबला जी अवधिया जी, संजीव तिवारी, सभी होटल में रुके बार बार ललित जी मुझे दम दे रहे थे आ जाओ आ जाओ सो मैने रात आने का वादा किया . 
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क्रमश:      

12 मई 2011

CRICKET FANTASY Now THE CRICKET POST


चिन्मय बिल्लोरे ने अपने ब्लाग का नाम CRICKET FANTASY  से THE CRICKET POST कर दिया है. उसने अब तक पांच पोस्ट लिख दी हैं .

Monday, April 25, 2011

Post 001 : VARUN AARON

Wednesday, April 27, 2011

INDIA'S NEW COACH DUNCAN FLETCHER........ DO YOU AGREEE WITH THE BCCI'S DECISON?????????

Thursday, May 05, 2011

FUNNY VIDEOS OF CRICKET 

Monday, May 09, 2011

The Mongoose bat

Tuesday, May 10, 2011

HELL FOR LEATHER!

 उसके बारे में लिखी एक पोस्ट आपको याद होगा या नहीं मुझे नहीं मालूम .. मैं अपने भतीजे चिन्मय से खूब मज़ाक करता हूं. अब वो खुद बहुत बातूने खुश दिल बन गया है.. उसके ज़वाब और ज्ञान का  मैं  कायल  हो  गया  हूं.. जब बहुत छोटा था चिन्मय तब उसके  के साथ मैंने भी एक  शरारत की थी उसे याद करके खूब हंसता है.  

Saturday, February 9,2008

गुरु का सायकल-लायसेंस ....!!


मेरा भतीजा गुरु जिसे स्कूल में चिन्मय के नाम से सब जानतें है जब चार बरस का था ...सायकल खरीदने के लिए रोज़ फरमाइश करता था । हम नहीं चाहते थे कि चार साल की छोटी उम्र में दो-पहिया सायकल खरीदी जाए...!
मना भी करना गुरु को दुखी करना ही था ।सो हमने उसे बहलाने के लिए उसे बताया कि "सरकार ने सायकल के लिए लायसेंस का प्रावधान किया है...!"
जिसे बनाने में तीन चार महीने लगते हें। बच्चे भी कितने भोले होते हें हमने भोलेपन का फायदा उठाना चाहा और लायसेंस बनाने का वादा कर दिया सोचा था गुरु भूल जाएगा इस बात को किन्तु रोज़ गुरु की मांग को देखते हुए मैंने अपने मित्र  के साथ मिल कर एक लायसेंस बनाया ।
उस दिन लायसेंस पाकर खूब खुश हुआ था गुरु । हाथ मे लायसेंस और सायकल के सपने । अब   गुरु 12 साल का है बड़ी सायकल चलाता है उसके पास लायसेंस सुरक्षित है। खूब हंसता है जब लायसेंस देखता है ।
इस ब्लोंग पर चस्पा लायसेंस आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ गुरु मेरे साथ बैठा ब्लोंग बनता देख रहा है।