29 अक्तू॰ 2011

श्री जगदीश जटिया जी को जन्म-दिवस की शुभमनाएं


  जब कभी भी मुड़ मुड़ कर देखा
पाया तुमको उस जगह पे
जहां से सम्पर्क सरिता नृत्य करती आ रही है..
आज़ साथी फ़िर तुम्हारी याद मुझको आ रही है..
वो सुबकती आंख जिसने तुमको याद है क्या..
बोझ पुस्तक का लिये एक  बूढ़ा देवता याद तो आता ही होगा..?
 हां वही जो सरो-पा था देवता
लोग कहते हैं ..
अच्छा वो जो किताबें बेचता ?
हां वही सेतु हमारे बीच का
जो हमारी कुशलता का दीप था
उसी को मै याद करके खूब रोया
नम-नयन हैं पर खबर ये है कि
आज जन्म-दिन तुम मनाने जा रहे हो
उस महा योगी के संग याद मुझको आ रहे हो !!
"जन्म-दिन की अशेष शुभकामनाओं के साथ "

27 अक्तू॰ 2011

दोहा सलिला: दोहों की दीपावली, अलंकार के संग..... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.....
  • संजीव 'सलिल'

*
दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.
बिम्ब भाव रस कथ्य के, पंचतत्व नवरंग..
*
दिया दिया लेकिन नहीं, दी बाती औ' तेल.
तोड़ न उजियारा सका, अंधकार की जेल..   -यमक


*
गृहलक्ष्मी का रूप तज, हुई पटाखा नार.     -अपन्हुति
लोग पटाखा खरीदें, तो क्यों हो  बेजार?.    -यमक,
*
मुस्कानों की फुलझड़ी, मदिर नयन के बाण.  -अपन्हुति
जला फुलझड़ी चलाती, प्रिय कैसे हो तरण?.   -यमक
*
दीप जले या धरा पर, तारे जुड़े अनेक.
तम की कारा काटने, जाग्रत किये विवेक..      -संदेह
*
गृहलक्ष्मी का रूप लख, मैया आतीं याद.
वही करधनी चाबियाँ, परंपरा मर्याद..            -स्मरण
*
मानो नभ से आ गये, तारे भू पर आज.          -भ्रांतिमान 
लगे चाँद सा प्रियामुख, दिल पर करता राज..  -उपमा
*
दीप-दीप्ति दीपित द्युति, दीपशिखा दो देख. -वृत्यानुप्रास
जला पतंगा जान दी, पर न हुआ कुछ लेख.. -छेकानुप्रास
*
दिननाथ ने शुचि साँझ को, फिर प्रीत का उपहार.
दीपक दिया जो झलक रवि की, ले हरे अंधियार.. -श्रुत्यानुप्रास
अन्त्यानुप्रास हर दोहे के समपदांत में स्वयमेव होता है.
*
लक्ष्मी को लक्ष्मी मिली, नर-नारायण दूर.  -लाटानुप्रास
जो जन ऐसा देखते, आँखें रहते सूर..      
*
घर-घर में आनंद है, द्वार-द्वार पर हर्ष.      -पुनरुक्तिप्रकाश
प्रभु दीवाली ही रहे, वर दो पूरे वर्ष..
*
दीप जला ज्योतित हुए, अंतर्मन गृह-द्वार.   -श्लेष
चेहरे-चेहरे पर 'सलिल', आया नवल निखार..
*
रमा उमा से पूछतीं, भिक्षुक है किस द्वार?
उमा कहें बलि-द्वार पर, पहुंचा रहा गुहार..   -श्लेष वक्रोक्ति 
*
रमा रमा में मन मगर, रमा न देतीं दर्श.
रमा रमा में मन मगर, रमा न देतीं दर्श?  - काकु वक्रोक्ति 
*
मिले सुनार सुनार से, अलंकार के साथ.
चिंता की रेखाएँ शत, हैं स्वामी के माथ..  -पुनरुक्तवदाभास  
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25 अक्तू॰ 2011

कद्दाफी का मूल्याँकन ( डैनिअल पाइप्स के आलेख का हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी)




नेशनल रिव्यू आन लाइन
30 अगस्त, 2011
मौलिक अंग्रेजी सामग्री: Assessing Qaddafi
विश्व में सबसे लम्बे समय तक किसी राज्य पर शासन करने वाले मुवम्मर अल कद्दाफी ( उसके नाम का सही भाषांतर) 1 सितम्बर को लीबिया पर शासन करते हुए पूरे 42 वर्ष पूरा कर लेते। अब जबकि वे परिदृश्य से लुप्त हैं तो उनके कष्टदायक शासन पर एक दृष्टि डाल लेना उचित होगा।
कद्दाफी ने 27 वर्ष की अवस्था में मिस्र के अत्यंत प्रभावी व्यापक अरब नेता गमाल अब्दुल नसीर के अंतिम और पतनोन्मुख दिनों में सत्ता सँभाली उन्होंने स्वयं को नसीर का ही अवतार माना लेकिन कहीं अधिक बडी मह्त्वाकाँक्षा के साथ। एक ओर जहाँ नसीर ने एटलाँटिक से फारस की खाडी तक व्यापक एक अरब राष्टृ की कल्पना की थी और इसे ही अपना अंतिम स्वप्न माना था तो वहीं कद्दाफी ने अरब एकता को मुस्लिम एकता का पहला कदम माना। यद्यपि कद्दाफी किसी भी प्रकार की एकता के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा और 1975 में उसकी नीली पुस्तक में विस्तार से दिया गया " तृतीय विश्व सिद्दांत" पूरी तरह असफल रहा लेकिन दो प्रमुख घटनाक्रमों पर उसका आरम्भिक और ह्स्ताक्षरित प्रभाव अवश्य दिखा।
पहला, 1972 से आरम्भ हुए और अभी तक जारी ऊर्जा के दामों में वृद्धि में उसकी अत्यंत मह्त्वपूर्ण भूमिका रही। पेट्रोलियम उत्पाद और मूल्य निर्धारण में अंतरराष्ट्रीय तेल कम्पनियों के नियंत्रण को चुनौती देकर उसने शक्ति स्थानान्तरण पश्चिम के बोर्ड रूम से मध्य पूर्व के महलों मे कर दिया। विशेष रूप से कद्दाफी ने जो जोखिम लिये उसके कारण ही 173-74 में तेल की कीमतों में चार स्तर पर वृद्धि हुई।
दूसरा, कद्दाफी ने उस समय इस्लामी पुनरुत्थान का आरम्भ किया जो कि अभी तक जारी है। ऐसे समय में जबकि कोई इस बात के लिये तैयार नहीं था उसने बडे गर्व से ऐसा किया और काफी भडकाऊ अंदाज में इस्लामी उद्देश्य को आगे बढाया और विश्व भर के मुसलमानों को ऐसा ही करने को कहा और किसी भी गैर मुस्लिम के साथ संघर्ष में मुस्लिम का सहयोग किया।
कद्दाफी के लम्बे शासनकाल को चार कालों मे विभाजित किया जा सकता है। पहला और सबसे मह्त्वपूर्ण काल 1969 से 1986 का है जो कि अत्यंत कट्टर गतिविधियों से परिपूर्ण रहा जब वह उत्तरी आयरलैंड से लेकर दक्षिणी फिलीपींस तक अनेक संघर्षों में उलझता रहा। इस कभी न समाप्त होने वाली सूची में अस्वाभाविक रूप से 1980 में जिमी कार्टर को पुनः विजयी होने से रोकने के लिये उनके भाई बिली को धन देना , सीरिया के साथ राजनीतिक संघ की घोषणा , इराक के विरुद्ध ईरान की सैन्य सहायता, विवादित जल में तेल निकालने पर माल्टा को धमकी देना , साइप्रस की सरकार को लीबिया के रेडियो ट्रांसमीटर को स्वीकार करने के लिये रिश्वत देना, दक्षिणी चाड को नियंत्रण में लेने के लिये सैनिक भेजना और इसे अपने में मिलाने का प्रयास और नाइजीरिया में 100 लोगों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी हिंसा करने वाले मुस्लिम गुट को सहायता देना।
लेकिन इन प्रयासों को कोई परिणाम नहीं हुआ। जैसा कि 1981 में अपने अनुमान में मैंने लिखा था " कद्दाफी के सत्ता अपदस्थ प्रयास से एक भी सरकार अस्थिर नहीं हुई , किसी भी विद्रोही सेना को सफलता नहीं मिली, कोई भी अलगाववादी कोई नया राज्य स्थापित करने मे सफल नहीं हुआ, कोई भी आतंकवादी अभियान लोगों की संकल्पशक्ति को तोड नहीं पाया, एकता का कोई अभियान सफल नहीं हुआ और कोई भी देश लीबिया को छोडकर " तीसरे सिद्धांत" का अनुपालन नहीं कर रहा है। कद्दाफी कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सका और उसे कटुता और विनाश का ही सामना करना पडा। इन प्रयासों की विफलता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है"।
पहले युग का अवसान 1986 में बर्लिन के एक डिस्कोथेक में हुए बमविस्फोट के बदले में अमेरिका द्वारा की गयी बमवर्षा से हुआ और ऐसा प्रतीत होता है कि इस घटना ने कद्दाफी के मानसपटल पर गहरा प्रभाव डाला। उसका दुस्साहस नाटकीय ढंग से लुप्त हो गया और उसने अफ्रीका की ओर रुख किया और सामूहिक विनाश के हथियार तैयार करने की मह्त्वाकाँक्षा पाल ली। जैसे जैसे विश्व पटल पर उसका प्रभाव क्षीण होता गया उस पर ध्यान कम होता गया।
तीसरा कालखंड 2002 में आरम्भ हुआ जब डरे कद्दाफी ने 1988 में पैन एम विमान को मार गिराने में लीबिया की भूमिका के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में धन दिया और अपनी परमाणु मह्त्वाकाँक्षा त्याग दी। यद्यपि उसके शासन का मूल स्वभाव वैसा ही रहा लेकिन वह पश्चिम में स्वीकार्य बन गया जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और अमेरिका के विदेश मंत्री ने लीबिया में उसे सम्मान दिया।
चौथा और अंतिम कालखण्ड इस वर्ष आरम्भ हुआ जब बेनगाजी में विद्रोह आरम्भ हुआ, जब कद्दाफी अपने शासन के आरम्भिक दिनों की क्रूरता की और लौट गया और अंतरराष्ट्रीय अपेक्षाओं के अनुरूप बनाई गयी अपनी नवीन छवि को पूरी तरह किनारे कर दिया। जब उसका शासन संतुलित स्थिति में था तो उसकी दुष्टता और सनक केंद्रीय भूमिका में आ गया और उसका परिणाम अत्यंत विनाशकारी रहा क्योंकि बडी संख्या में लीबियावासी उसे, उसके परिवार, शासन और उसकी विरासत को अस्वीकार करने लगे।
दशकों के उत्पीडन और धोखेबाजी के बाद लीबियावासियों के पास इस गलत विरासत को अस्वीकार करने की चुनौती है। उन्हें मानसिक असुन्तलन, असमानता और तोडी मरोडी स्थिति से स्वयं को मुक्त करने के लिये संघर्ष करना होगा। जैसा कि न्यूयार्क के एंड्रयू सोलोमन ने समस्या को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया है, " लीबियावासी कद्दाफी के अत्याचार और धोखे से तो बाहर आ जायेंगे लेकिन Great Socialist People's Libyan Arab Jamahiriya में जीवन की निरर्थकता से बाहर आने में काफी लम्बा समय लगेगा" ।
निश्चय ही।

कद्दाफी का मूल्याँकन ( डैनियल पाइप्स के आलेख का हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी)


नेशनल रिव्यू आन लाइन
30 अगस्त, 2011
मौलिक अंग्रेजी सामग्री: Assessing Qaddafi
विश्व में सबसे लम्बे समय तक किसी राज्य पर शासन करने वाले मुवम्मर अल कद्दाफी ( उसके नाम का सही भाषांतर) 1 सितम्बर को लीबिया पर शासन करते हुए पूरे 42 वर्ष पूरा कर लेते। अब जबकि वे परिदृश्य से लुप्त हैं तो उनके कष्टदायक शासन पर एक दृष्टि डाल लेना उचित होगा।
कद्दाफी ने 27 वर्ष की अवस्था में मिस्र के अत्यंत प्रभावी व्यापक अरब नेता गमाल अब्दुल नसीर के अंतिम और पतनोन्मुख दिनों में सत्ता सँभाली उन्होंने स्वयं को नसीर का ही अवतार माना लेकिन कहीं अधिक बडी मह्त्वाकाँक्षा के साथ। एक ओर जहाँ नसीर ने एटलाँटिक से फारस की खाडी तक व्यापक एक अरब राष्टृ की कल्पना की थी और इसे ही अपना अंतिम स्वप्न माना था तो वहीं कद्दाफी ने अरब एकता को मुस्लिम एकता का पहला कदम माना। यद्यपि कद्दाफी किसी भी प्रकार की एकता के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा और 1975 में उसकी नीली पुस्तक में विस्तार से दिया गया " तृतीय विश्व सिद्दांत" पूरी तरह असफल रहा लेकिन दो प्रमुख घटनाक्रमों पर उसका आरम्भिक और ह्स्ताक्षरित प्रभाव अवश्य दिखा।
पहला, 1972 से आरम्भ हुए और अभी तक जारी ऊर्जा के दामों में वृद्धि में उसकी अत्यंत मह्त्वपूर्ण भूमिका रही। पेट्रोलियम उत्पाद और मूल्य निर्धारण में अंतरराष्ट्रीय तेल कम्पनियों के नियंत्रण को चुनौती देकर उसने शक्ति स्थानान्तरण पश्चिम के बोर्ड रूम से मध्य पूर्व के महलों मे कर दिया। विशेष रूप से कद्दाफी ने जो जोखिम लिये उसके कारण ही 173-74 में तेल की कीमतों में चार स्तर पर वृद्धि हुई।
दूसरा, कद्दाफी ने उस समय इस्लामी पुनरुत्थान का आरम्भ किया जो कि अभी तक जारी है। ऐसे समय में जबकि कोई इस बात के लिये तैयार नहीं था उसने बडे गर्व से ऐसा किया और काफी भडकाऊ अंदाज में इस्लामी उद्देश्य को आगे बढाया और विश्व भर के मुसलमानों को ऐसा ही करने को कहा और किसी भी गैर मुस्लिम के साथ संघर्ष में मुस्लिम का सहयोग किया।
कद्दाफी के लम्बे शासनकाल को चार कालों मे विभाजित किया जा सकता है। पहला और सबसे मह्त्वपूर्ण काल 1969 से 1986 का है जो कि अत्यंत कट्टर गतिविधियों से परिपूर्ण रहा जब वह उत्तरी आयरलैंड से लेकर दक्षिणी फिलीपींस तक अनेक संघर्षों में उलझता रहा। इस कभी न समाप्त होने वाली सूची में अस्वाभाविक रूप से 1980 में जिमी कार्टर को पुनः विजयी होने से रोकने के लिये उनके भाई बिली को धन देना , सीरिया के साथ राजनीतिक संघ की घोषणा , इराक के विरुद्ध ईरान की सैन्य सहायता, विवादित जल में तेल निकालने पर माल्टा को धमकी देना , साइप्रस की सरकार को लीबिया के रेडियो ट्रांसमीटर को स्वीकार करने के लिये रिश्वत देना, दक्षिणी चाड को नियंत्रण में लेने के लिये सैनिक भेजना और इसे अपने में मिलाने का प्रयास और नाइजीरिया में 100 लोगों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी हिंसा करने वाले मुस्लिम गुट को सहायता देना।
लेकिन इन प्रयासों को कोई परिणाम नहीं हुआ। जैसा कि 1981 में अपने अनुमान में मैंने लिखा था " कद्दाफी के सत्ता अपदस्थ प्रयास से एक भी सरकार अस्थिर नहीं हुई , किसी भी विद्रोही सेना को सफलता नहीं मिली, कोई भी अलगाववादी कोई नया राज्य स्थापित करने मे सफल नहीं हुआ, कोई भी आतंकवादी अभियान लोगों की संकल्पशक्ति को तोड नहीं पाया, एकता का कोई अभियान सफल नहीं हुआ और कोई भी देश लीबिया को छोडकर " तीसरे सिद्धांत" का अनुपालन नहीं कर रहा है। कद्दाफी कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सका और उसे कटुता और विनाश का ही सामना करना पडा। इन प्रयासों की विफलता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है"।
पहले युग का अवसान 1986 में बर्लिन के एक डिस्कोथेक में हुए बमविस्फोट के बदले में अमेरिका द्वारा की गयी बमवर्षा से हुआ और ऐसा प्रतीत होता है कि इस घटना ने कद्दाफी के मानसपटल पर गहरा प्रभाव डाला। उसका दुस्साहस नाटकीय ढंग से लुप्त हो गया और उसने अफ्रीका की ओर रुख किया और सामूहिक विनाश के हथियार तैयार करने की मह्त्वाकाँक्षा पाल ली। जैसे जैसे विश्व पटल पर उसका प्रभाव क्षीण होता गया उस पर ध्यान कम होता गया।
तीसरा कालखंड 2002 में आरम्भ हुआ जब डरे कद्दाफी ने 1988 में पैन एम विमान को मार गिराने में लीबिया की भूमिका के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में धन दिया और अपनी परमाणु मह्त्वाकाँक्षा त्याग दी। यद्यपि उसके शासन का मूल स्वभाव वैसा ही रहा लेकिन वह पश्चिम में स्वीकार्य बन गया जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और अमेरिका के विदेश मंत्री ने लीबिया में उसे सम्मान दिया।
चौथा और अंतिम कालखण्ड इस वर्ष आरम्भ हुआ जब बेनगाजी में विद्रोह आरम्भ हुआ, जब कद्दाफी अपने शासन के आरम्भिक दिनों की क्रूरता की और लौट गया और अंतरराष्ट्रीय अपेक्षाओं के अनुरूप बनाई गयी अपनी नवीन छवि को पूरी तरह किनारे कर दिया। जब उसका शासन संतुलित स्थिति में था तो उसकी दुष्टता और सनक केंद्रीय भूमिका में आ गया और उसका परिणाम अत्यंत विनाशकारी रहा क्योंकि बडी संख्या में लीबियावासी उसे, उसके परिवार, शासन और उसकी विरासत को अस्वीकार करने लगे।
दशकों के उत्पीडन और धोखेबाजी के बाद लीबियावासियों के पास इस गलत विरासत को अस्वीकार करने की चुनौती है। उन्हें मानसिक असुन्तलन, असमानता और तोडी मरोडी स्थिति से स्वयं को मुक्त करने के लिये संघर्ष करना होगा। जैसा कि न्यूयार्क के एंड्रयू सोलोमन ने समस्या को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया है, " लीबियावासी कद्दाफी के अत्याचार और धोखे से तो बाहर आ जायेंगे लेकिन Great Socialist People's Libyan Arab Jamahiriya में जीवन की निरर्थकता से बाहर आने में काफी लम्बा समय लगेगा" ।
निश्चय ही।

21 अक्तू॰ 2011

गद्दाफ़ी का अंत : जीवित अवस्था का वीडियो

लीबीया के शासक कर्नल गद्दाफ़ी के  जीवन की अंतिम जीवित अवस्था की तस्वीर (वीडियो) देखने यहां क्लिक कीजिये."कर्नल गद्दाफ़ी"

और फ़िर मृत्यु के बाद

5 अक्तू॰ 2011

बेटी बचाओ अभियान :विधान सभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने चेतना रथ रवाना किया विधायक शरद जैन ने केंद्रीय कारागार जाकर बंदिनियों की बेटियों के पैर पूजे

विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने किया बेटी बचाओ अभियान का शुभारंभ
जबलपुर, 5 अक्टूबर, 2011

            जनसमुदाय की सक्रिय भागीदारी से चलाये जाने वाले मध्य प्रदेश शासन के “बेटी बचाओअभियान” का जबलपुर जिले में शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने रांझी स्थित लक्ष्मीनारायण यादव उच्चतर माध्यमिक शाला प्रांगण में भव्य और गरिमामय समारोह में किया   उन्होंनेबेटियों के लिए सम्मान की भावना बढ़ाने के लिये जागरूकता हेतु भारतीय परम्परा के अनुरूप कन्याओं कापूजन किया   पैर पखारेतिलक लगाया और चरणों में पुष्प अर्पित किये   श्री रोहाणी ने कन्याओं कोभोजन परोसा और उनके साथ भोजन ग्रहण किया  दो हजार से अधिक कन्याओं का पूजन कर उन्हेंभोजन कराया गया   बेटी बचाओ अभियान को जन-जन का अभियान बनाने के लिए श्री रोहाणी ने “चेतनारथको हरी झण्डी दिखाकर संभाग के जिलों के भ्रमण के लिए रवाना किया विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने इस अवसर पर कहा कि बेटियों की संख्या में कमी आने कामुख्य कारण दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियां हैं   इस सामाजिक बुराई का कद अब रावण से भी बड़ाहो गया है  जिस प्रकार रावण दहन होता है उसी प्रकार इन कुरीतियों को भी जड़मूल से समाप्त करना होगा
            श्री रोहाणी ने कहा कि स्त्री-पुरूष लिंगानुपात में असंतुलन होने पर भारी अराजकता फैलेगी उन्होंने कहा बेटा-बेटी के मध्य भेदभाव समाप्त होना चाहिये  श्री रोहाणी ने कहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कीसरकार ने बेटियों का सम्मान बढ़ाने के लिये उनकी शिक्षास्वरोजगारविवाहप्रसव आदि की सहूलियतके लिए अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन .प्रमें सुनिश्चित किया है   ये ऐसी योजनायें हैजिसकी सराहना सम्पूर्ण देश में हुयी है और कई प्रदेशों ने इन योजनाओं को अपने यहां शुरू भी किया है  मध्य प्रदेश में शुरू हुआ बेटी बचाओ अभियान देश में अपने तरह का अकेलाअनूठा और अभिनवअभियान है   ये योजनायेंदहेज दानव जैसी सामाजिक-आर्थिक कुरीतियों-विषमताओं को चुनौती देने मेंपूरी तरह से सक्षम है 
            श्री रोहाणी ने आव्हान किया कि बेटी बचाओ अभियन में प्रत्येक परिवार और व्यक्ति शामिलहोकर बेटियों की लगातार कम हो रही संख्या के प्रति समाज को जागरूक करें 
बेटी बचाओ संकल्प का वाचन:
            विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने समारोह में मौजूद लोगों को संकल्प दिलाया कि बेटी के जन्मको कभी भी बाधित नहीं किया जायेगा   किसी भी स्तर पर बेटा-बेटी के बीच भेदभाव नहीं किया जायेगा 
पोस्टर का विमोचन:
            संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बेटी बचाओ अभियान पर केन्द्रित पोस्टरका विमोचन विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने किया   इसे छायाचित्रकारकलाकार विनय अम्बर ने तैयारकिया है 
चेतना रथ रवाना:
            बेटी बचाओ अभियान में जनसमुदाय की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिये विधानसभा अध्यक्ष श्रीरोहाणी ने “चेतना रथ” को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।
            संयुक्त संचालक कार्यालय महिला एवं बाल विकास विभाग के तत्वावधान में एनेक्स मीडिया द्वारा तैयार किये गये इस आकर्षक चेतना रथ में चारों ओर पोस्टर लगाकर बेटी बचाओ अभियान का संदेशनारों और गीतों आदि के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया है  इस वीडियो-आडियो चेतना रथ मेंछोटी-छोटी फिलमों के द्वारा बेटियों एवं महिलाओं के लिये मध्य प्रदेश शासन की योजनाओं को प्रदर्शितकिया जायेगा 
लाड़ली लक्ष्मी योजना से लाभान्वित किया गया:
            लाड़ली लक्ष्मी योजना के बचतपत्रलाड़ली लक्ष्मी बालिकाओं को विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदासरोहाणी ने वितरित किये 
जनप्रतिनिधियों से मिला सहयोग:
            बेटी बचाओ अभियान के अन्तर्गत प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में विधायक गणोंपार्षदपंच,संरपंच आदि जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों ने समारोहपूर्वक बेटियों का पूजन कर उनकासम्मान किया   बेटियों के अभिभावकों का सम्मान किया गया 
            समारोह में बेटी बचाओ अभियान से संबंधित एक संस्था एम.पी.वी.एच.के नोडल अधिकारीमनीष पाण्डे ने “बदलेंगे सोच बेटी नहीं बोझ” संदेश देता बैच सभी अतिथियों को लगाया   मंच संचालन सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास गिरीश बिल्लौरेविभाग गिरीश ने किया 
            इस अवसर पर नगर निगम अध्यक्ष राजेश मिश्राजबलपुर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष प्रभाशंकर कुशवाहासर्वेश मिश्रासावित्री कुंजामकौशल्या घाघरेजगदीश यादवप्रवीण यादवराजेश भाटियातृष्णा चटर्जीरमेश सोलकियासंयुक्त संचालक महिला बाल विकास एस.सीचौबे, संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास प्राचार्य दिनेश अवस्थीजिला कार्यक्रम अधिकारी श्री एच के शर्मा विभिन्नविभागों के अधिकारी-कर्मचारी तथा करीब 2000 से अधिक कन्यायें और जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य नागरिकगण मौजूद थे 





बंदनीयों की बेटीयों के पांव-पूजे गये
एक संवेदनात्मक पहल हुई
विधायक शरद की ओर से 
जबलपुर की मध्य विधान सभा के विधायक
श्री शरद जैन महारानी लक्ष्मी बाई कन्या शाला
जबलपुर में बेटियों के पैर पूजे  

2 अक्तू॰ 2011

मनीष शर्मा ने क्या कहा था ऐसा कि उनके व्याख्यान को छात्राओं एवम प्राद्यापिकाऒं ने नि:शब्द होकर सुना..?



 एक सवाल कि मनीष शर्मा ने क्या कहा था ऐसा कि उनके व्याख्यान को हवाबाग कन्या महाविद्यालय में छात्राओं एवम प्राद्यापिकाऒं ने नि:शब्द होकर सुना..? सवाल ज़ायज था अली सैयद साहब का जो गूगल+ के ज़रिये उठाया ..
मेरी दृष्टि में  मनीष जी ने खास कुछ ऐसा न कहा था कि लोग नि:शब्द होकर सुने फ़िर एकाएक ढेरों सारे सवाल सामने रख दें..!  दरअसल मनीष भाई एक अधिकारी ही नहीं प्रतिभाशाली अधिकारी हैं जो बेवज़ह बातों से परहेज करते हुए साफ़-सुथरे तरीके से विषय पर केंद्रित रहते हैं. मुझे मालूम था कि मैं क़ानून का छात्र रहा हूं और सरकारी तौर पर क़ानूनी कार्यों में मेरी संलग्नता 18 वर्ष पुरानी है जबकि मनीष बहुत बाद  मेरे सहयोगी बने..पर साफ़गोई से कह सकता हूं मनीष मुझसे उन्नीस कतई नहीं बीस ही हैं.अदालती मसलों के संदर्भ में. उनके पास कोई दिखावा नहीं सरलता उनके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है. अस्तु मैने "घरेलू-हिंसा" के आख्यान के लिये अपने एक मित्र के अलावा विकल्प के तौर पर मनीष को आमंत्रित किया  मुख्य आमंत्रित मित्र आदतन आमंत्रण से किसी कार्य के आने का बहाना कर किनारे हो गए और वैकल्पिक व्यवस्था यानी मनीष ने (जिन पर भरोसा था) बड़ी सहजता से अपने वक्तव्य में कहा-"नारी, के प्रति की गई हिंसा बेशक एक अपराध है किंतु मध्य-प्रदेश ,में इस से महिलाओं को बचाने के लिये ऊषा-किरण योजना के ज़रिये डोमेस्टिक-वायलेंस एक्ट का क्रियान्वयन किया जा रहा है. " 

महिलाओं के विरुद्ध हिंसाओं की व्याख्या करते हुए मनीष जी  ’घरेलू-हिंस” के हर उस बिंदु पर प्रकाश डाला जिसे सदन में उपस्थित समुदाय अपरिचित था. यानी जन-जाग्रति का अभाव मुझे स्पष्ट रूप से नज़र आ रहा था.
एक सवाल के उत्तर में उन्हौने  बताया कि ”पुलिस  और कानूनी उलझनों  से बचना चाहता है आम आदमी फ़िर भारतीय महिलाएं जो अपेक्षाकृत अधिक सहन शील होती हैं पारिवारिक बिखराव को किसी भी तरीके से रोके रखना पसंद करतीं हैं क़ानून में भी इस  
 बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि पारिवारिक मसले सहज सुलझ जाएं. उनका अनुभव आधारित वक्तव्य ये था कि "महिलाएं सदैव समन्वय चाहतीं हैं समझौता चाहतीं हैं, क़ानून में भी  बुनियादी तौर पर काउंसलिंग को प्राथमिकता  है "

 बातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो महिलाओं एवम छात्राओं को अपने आसपास की उन महिलाएं याद आने लगीं जिनकी वे मददगार बनना चाहतीं हैं.


 सवाल किये गए सहयोग की अपेक्षा 

 भी थी हमारे पास थे उत्तर और समाधान जो शायद वे तलाश रहीं थीं.. 
सुधि पाठको आज़ मैं केवल स्तनपान से जुड़ी भ्रांतियों पर लिखना चाहता था किंतु  अली सैयद साहब के सवाल का उत्तर देना ज़रूरी था सो लिख दिया  आप ब्लाग पर चिपके इन चित्रों में खोजिये सवालों के सही ज़वाब






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1 अक्तू॰ 2011

बेटी-बचाओ अभियान ज़रूरी क्यों : एक रिपोर्ट

  मनीष शर्मा जी
 जबलपुर के हवाबाग महिला महाविद्यालय जबलपुर  में  आज़ पूर्व घोषित कार्यक्रम किंतु सेमेस्टर परीक्षाओं के चलते स्थगित कार्यक्रम "सशक्त महिला:सशक्त समाज" विषयाधारित संगोष्ठी का अंतिम भाग आयोजित हुआ. 
हमें करना ये था कि विभाग की ज़रूरी जानकारियां यानी कुपोषण, अटल-बिहारी बाल आरोग्य मिशन, ऊषा-किरण,  आदि पर जानकारी देनी थी बेटी-बचाओ अभियान ज़रूरी क्यों इस सवाल से बात शुरु की थी हमने बात निकली दूर तलक जानी ही थी . एक के बाद  एक सामाजिक-मसले जारी थे.मेरा सवाल था कि सदृश्य-प्रसूता को अथवा नववधू को आशीर्वाद देते वक़्त ये क्यों नहीं कहा जाता :-"पुत्री वती भव: !!किस बात से भय भीत हैं पुत्री के जन्म को लेकर क्या कारण है कि त्रेता युग में हम सीता की अग्नि-परीक्षा ली गई अब हम कम निष्ठुर नहीं हम तो  "भ्रूण में पनपती सीता के ही पीछे पड़ गये हैं..?" क्या यह बर्बरता की वापसी नहीं." सदन सोचने मज़बूर हुआ कि भाई मनीष आ गए और शुरु हुआ डोमेस्टिक-वायलेंस के मामलों ऊषा-किरण योजना और    
                                       मनीष शर्मा  के आने तक हमने मोर्चा सम्हाला हमें उम्मीद थी नहीं यक़ीन था   मनीष शर्मा जी पर न आने की विवषता होती तो टका सा जवाब दे देते पर आने की मंशा थी वक़्त था सो  आ ही गए . 
मनीष जी की आंकड़ों के साथ अभिव्यक्ति ने सदन को स्तब्ध सा कर दिया मानों उन तक इस तरह की जानकारी अनोखी हो .अधिकांश छात्राएं इस बात से भिग्य न थीं कि महिला-बाल-विकास क्या है. प्रदेश में यह विभाग कैसे और कौन कौन से  कार्य करता है . बेटी-बचाओ अभियान के विशेष संदर्भ में जब घरेलू-हिंसा के लिये सरकार की ऊषा-किरण योजना की चर्चा हुई तो बालिकाएं ही नहीं प्राध्यापिकाएं भी मंत्रमुग्ध सुनतीं रहीं.सवाल-आए उन सवालों का सटीक ज़वाब दिया मनीष भाई ने कि किस तरह की दमित महिला घरेलू-हिंसा से बचाया जा सकता है. कुछ समस्याएं भी थी महिलाओं की जिनके लिये प्रथक से समय मांगा हमने वादा कर ही दिया कि :"व्यक्तिगत समस्याओं के लिये महाविद्यालय सुविधानुसार हमारी सेवाएं ले सकता है." कुल मिला कर स्थिति यह सामने आई कि विभागीय तौर पर किये जाने वाले कार्यों और महिला बाल कल्याण के कार्यक्रमों को जन जन तक पहुंचाने का समूह में सहज वार्तालाप के ज़रिये तरीक़ा गहरे  प्रभाव छोड़ता है. पूरे कार्यक्रम की विषेशता यह थी कि सभी को सूचनाओं की ज़रूरत थी हमारे पास सूचनाओं, जानकारियों का पिटारा था. खुला तो बस बंटता गया खाली न हुआ.....