28 फ़र॰ 2012

नार्वे के कब्जे से बच्चों को छुड़ाने के लिए दादा-दादी का धरना :प्रवासी दुनिया पर खास



 

नई दिल्ली। नार्वे में उचित देखभाल नहीं मिलने के आधार पर एक संस्था ने भारतीय मूल के एक दम्पत्ति से तीन साल और दो साल के जिन दो बच्चों को अपने पास रख लिया, उनके दादा-दादी ने सोमवार को यहां नार्वे दूतावास के सामने प्रदर्शन किया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) यहां उनके समर्थन में पहुंची। दोनों दलों ने नार्वे सरकार से जल्द से जल्द बच्चों को उनके माता-पिता को सौंपने को कहा। साथ ही केंद्र सरकार से भी कहा कि वह इसके लिए नार्वे सरकार पर दबाव बनाए।
तीन साल और एक साल के दोनों बच्चों के नार्वे में रहने की अवधि बढ़ाए जाने पर चिंता जताते हुए भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने केंद्र सरकार से कहा कि वह नार्वे पर बच्चों की वापसी के लिए दबाव बढ़ाए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी संसद के बजट सत्र में यह मुद्दा उठाएगी।
यहां नार्वे दूतावास के बाहर बच्चों को परिवार के पास भेजने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे उनके दादा-दादी के साथ एकजुटता जताते हुए स्वराज ने कहा, “यदि 12 मार्च तक बच्चे माता-पिता के पास नहीं पहुंचते तो पार्टी यह मुद्दा संसद में उठाएगी। इसमें कोई राजनीति नहीं है.. पूरा देश नाराज है, क्योंकि वे हमारे बच्चे हैं.. यह बेहद दु:खद है।”
वहीं, बच्चों के दादा मंतोष चक्रवर्ती ने कहा, “वे इस मुद्दे पर समय जाया कर रहे हैं। अभिभावक तथा बच्चे इस दौरान गहरे दु:ख व सदमे से गुजर रहे हैं। प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए हमने धरना देने का निर्णय लिया।”
माकपा नेता वृंदा करात ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा, “नार्वे सरकार इस मामले में स्थापित नियमों की उपेक्षा कर रही है। केंद्र सरकार को उन पर दबाव बनाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही बच्चों से सम्बंधित उसके कानून की आलोचना की है.. यह अपहरण है और कुछ नहीं।”
इससे पहले गुरुवार को विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने भी कहा था कि सरकार बच्चों को जल्द से जल्द उनके परिवार के पास लौटाने के लिए सभी प्रयास करेगी

                                        समतुल्य: 

22 फ़र॰ 2012

ऐसे तो सभी मानव फिलीस्तीनी शरणार्थी ही बन जायेंगे


डैनियल
पाइप्स



अरब इजरायल संघर्ष को चलाने वाले मुद्दों में कोई भी इतना अधिक दुष्प्रचारित, केंद्रीय , प्रमुख , शास्वत, भावनात्मक और जटिल नहीं है जितना कि उन लोगों की स्थिति जो लोग फिलीस्तीनी शरणार्थी के रूप में जाने जाते हैं।
तेल अवीव विश्वविद्यालय के निजा नाचमियास के अनुसार इस अद्भुत मामले का आरम्भ संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के मध्यस्थ फाल्क बर्नाडोटे के समय से होता है। उन्होंने 1948 में फिलीस्तीन छोड कर गये ब्रिटिश मैन्डेट के अरबों का संदर्भ लेते हुए कहा कि चूँकि संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णय से इजरायल की स्थापना हुई जिससे कि ये शरणार्थी बने इस कारण इनकी सहायता का दायित्व भी इसी ( यू एन ) का है। वैसे तो यह विचार अनुचित है लेकिन आज तक यही जीवित और शक्तिशाली है और इस बात की व्याख्या करने में सहायक है कि आखिर संयुक्त राष्ट्र संघ फिलीस्तीनी शरणार्थियों को इतना मह्त्व क्यों देता है जिनका अपना राज्य विलम्बित है।
बर्नडोटे की विरसत को सत्य सिद्ध करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ से फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये विशेष संस्थाओं की नियुक्ति की। इनमें से 1949 में स्थापित फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता और कार्य एजेंसी सबसे मह्त्वपूर्ण है। इसके साथ दोनों ही बाते हैं कि यह अकेला संगठन है जो कि विशेष रूप से विशेष लोगों के सम्बंध में कार्य करता है ( संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग सभी गैर फिलीस्तीनी शरणार्थियों का ध्यान रखता है) और दूसरा यह ( स्टाफ की दृष्टि से) सबसे बडा यू एन संगठन है।
फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता और कार्य एजेंसी या यूएनआरड्ब्ल्यूए अत्यंत स्पष्ट शब्दों में अपने को परिभाषित करता है, " फिलीस्तीनी शरणार्थी वे लोग हैं जून 1946 से मई 1948 मध्य तक फिलीस्तीन जिनका निवास स्थान था और 1948 के अरब इजरायल संघर्ष के चलते जिनकी जीविका और घरबार नष्ट हो गये"। इन शरणार्थियों की श्रेणी ( आरम्भ में जिनमें कुछ यहूदी भी थे) पिछले 64 वर्षों में काफी घट गयी है। यदि यूएनआरडब्ल्यूए की ( अतिरंजित) संख्या को स्वीकार भी कर लें तो मौलिक फिलीस्तीनी शरणार्थियों की संख्या जो कि 750,000 थी उनमें से कुछ ही अंश अब जीवित है 150,000।
यूएनआरडब्ल्यूए के स्टाफ ने तीन महत्वपूर्ण कदम उठाकर विगत वर्षों में फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा को बढाने का कार्य किया है। पहला, वैश्विक परिपाटी के विपरीत इसने उन लोगों को शरणार्थी का दर्जा जारी रखा जिनमें से अनेक अरब के नागरिक भी बन गये( विशेष रूप से जार्डन)। दूसरा, इसने 1965 में ऐसा निर्णय लिया जिसकी अधिक चर्चा नहीं हुई कि " फिलीस्तीनी शरणार्थियों" की परिभाषा बढाते हुए पुरुष शरणार्थियों की अगली पीढी को भी शरणार्थी का दर्जा दे दिया एक ऐसा परिवर्तन जिसके चलते फिलीस्तीनी शरणार्थी दर्जा अगली पीढी को चलता ही रहेगा। अमेरिकी सरकार जो कि इस एजेंसी को सबसे अधिक आर्थिक सहायता देती है उसने इस भारी परिवर्तन का आंशिक विरोध ही किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इसे 1982 में स्वीकृति दे दी , इसके अनुसार " अब फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा में आधिकारिक रूप से पुरुष फिलीस्तीनी शरणार्थियों की वंशज आते हैं जिसमें कि कानूनी रूप से गोद लिये बच्चे भी शामिल हैं" । तीसरा, यूएनआरडब्ल्यूए ने सूची देखकर छह दिन के युद्ध से शरणार्थियों की सूची बढा दी, आज की तिथि में वे कुल फिलीस्तीनी शरणार्थियों का 1\5 बनते हैं।
इन परिवर्तनों का नाटकीय परिणाम है। अन्य सभी शरणार्थी जनसन्ख्या के विपरीत जहाँ कि लोगों के बस जाने या मर जाने के बाद संख्या घट जाती है फिलीस्तीनी शरणार्थियों की संख्या बढ गयी है। यूएनआरडब्ल्यूए ने इस अजीब रुझान को संज्ञान में लिया है। " एजेंसी ने जब 1950 में कार्य आरम्भ किया था यह 750,000 फिलीस्तीनी शरणार्थियों की आवश्यकताओं के लिये कार्य कर रही थी । आज कुल 5 मिलियन या पाँच करोड शरणार्थी इस एजेंसी की सेवा के लिये तत्पर हैं"। इससे भी आगे यूएनआरडब्ल्यूए के पूर्व महानिदेशक सलाहकार जी लिंडसे यूएनआरडब्ल्यूए की परिभाषा का पाँच मिलियन का आँकडा केवल आधा आँकडा है भविष्य में और भी फिलीस्तीनी शरणार्थी होने की अहर्ता रखते हैं।
दूसरे शब्दों में छह दशक में पाँच गुना संख्या कम होने के स्थान पर यूएनआरडब्ल्यूए के पास शरणार्थियों की संख्या 7 गुना अधिक हो गयी। यह संख्या और भी बढ सकती है क्योंकि यह भावना बढ रही है कि महिला शरणार्थियों को भी शरणार्थी दर्जा मिलना चाहिये। तब तो यहाँ तक होगा कि 40 वर्षों में वास्तविक फिलीस्तीनी शरणार्थी मर चुके होंगे और छ्द्म शरणार्थी भरते चले जायेंगे। इस आधार पर तो " फिलीस्तीनी शरणार्थी" स्तर अनिश्चित ही हो जायेगा। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो जैसा मिडिल ईस्ट फोरम के स्टीवन जे रोसन ने कहा है, " यदि यूएनआरड्ब्ल्यूए के स्तर का अनुपालन हुआ तो सभी मानव फिलीस्तीनी शरणार्थी बन जायेंगे"
क्या फिलीस्तीनी शरणार्थी स्तर कोई स्वस्थ चीज है, इस प्रकार इसके शास्वत होने से शायद की कोई लाभ है। लेकिन इस स्तर का विनाशकारी परिणाम दो पक्षों के लिये है, इजरायल जो कि उस श्रेणी के लोगों से परेशान है जिनके जीवन को इस असम्भव स्वप्न के नीचे दबाकर नष्ट कर दिया गया है कि वे अपने दादा परदादा के देश वापस लौटेंगे और शरणार्थी स्वयं जिनका जीवन पराश्रित, शिकायत, आक्रोश और निर्थकता में अंतर्निहित है।
द्वितीय विश्व युद्ध के शरणार्थी ( जिसमें मेरे माता पिता भी थे) कब के स्थापित हो चुके हैं और बस चुके हैं , फिलीस्तीनी शरणार्थी पहले ही बहुत समय तक इस स्तर में रह चुके हैं और इससे पहले कि यह और अधिक क्षति पहुँचाये इस संख्या को कम करते हुए वास्तविक स्थिति सामने लानी चाहिये

12 फ़र॰ 2012

लो गिरीश बाबू भी हो गये सम्मानित


एक आत्मीय समारोह बनाम "एक पंथ:बहुकाज"  कितना व्यग्र थे श्री डा० विजय तिवारी "किसलय" जी सोच रहे होंगे कि शहर भर की सड़कों का निर्माण काश आज तो रुक जाता. तो आमंत्रित लोग सहज विशुलोक आ सकते. जी सच ऐसा ही हुआ था पांच फ़रवरी २०१२ को मेरे पहुंचने के लिये नियत समय था अपरान्ह एक बजे पर ये क्या हर रास्ते में "टैफ़िक-जाम" इसकी पूर्व सूचना दे दी हमने जीजा श्री को कि हमारी बेचारी आल्टो के सामने विशालकार दैत्याकार डम्फ़र खड़े हैं पूरे पौना घण्टे से बाधक बने हैं. ठीक है फ़िर भी कोशिश करो जल्दी आओ...सभी आ गये है वेगड़ जी आने वाले हैं.दिये गये समय से तनिक विलम्ब से प्रारम्भ आयोजन का वातावरण निर्माण कार्यक्रमों के सर्वमान्य एवम सर्वप्रिय संचालक  राजेश पाठक प्रवीण आयोजन की कार्रवाई प्रारम्भ कर ही दी.कार्यक्रम के प्रारम्भ में द्वीप-प्रज्जवल स्वागत के बाद "नर्मदाष्टक आडियो" का विमोचन हुआ . जिसे आप ने यू ट्यूब पर भी सुना ही होगा . और फ़िर ... क्या हम भी सम्मानित हुए.. ब्लागिंग के क्षेत्र में हमारी  उपलब्धियां  गिनी-गिनाईं गईं.. अनूप जी ने माला पहनाई स्वामी जी ने शाल ओढ़ाई.. रमाकांत ताम्रकार जी ने मोमेंटो दिया.. आभार हुआ लज़ीज़ भोजन किया और घर आ गये हम और कुछ  नहीं बस घर आ गये हम
          घर आते ही हमारी श्रीमती जी बोलीं -"खूब घूमो दिन भर.. घर की परवाह नहीं समझा क्या रक्खा है "
हमने जब नारियल और शाल प्रतीक चिंह के साथ दिखाया तो बोलीं ठीक है नारियल के  चटनी बनाने का मन था कई दिनों से अच्छा किया ले आये .. शाल.. रख दो कहीं देने लेने के काम आ जाएगी ..  हा   हा  हा

8 फ़र॰ 2012

कैस्टेलोरिजो – भूमध्यसागर का संघर्ष बिंदु ? डैनियल पाइप्स


डैनियल
पाइप्स



           कैस्टेलोरिजो का नाम स्मरण करिये ; यह नाम आप पहली बार सुन रहे हैं। यह साइप्रस से 170 मील दूर, रोडेश से 80 मील दूर तथा ग्रीस प्रायद्वीप से सुदूर उत्तर में है लेकिन तुर्की के तट से मात्र एक मील की दूरी पर स्थित है। कैस्टेलोरिजो अत्यंत छोटा है जो कि मात्र 5 वर्ग मील में विस्तृत है और उससे भी लघुतम स्वरूप यह कि यहाँ लोगों की बस्ती नहीं है। उन्नीसवीं शताब्दी में इसके 10,000 निवासी अब 430 तक सीमित रह गये हैं। इसके अकेलेपन के कारण यह ग्रीक प्रायद्वीप के सबसे अच्छे चार द्वीपों में है जो कि मौजमस्ती के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है। अनातोलिया के निकट से यहाँ के लिये कोई सार्वजनिक वाहन नहीं है केवल सुदूर रोडेश से विमान या नाव मिल सकते हैं। इसके अधिकाँश क्षेत्र पर एथेंस का नियंत्रण है जिसके चलते भूमध्यसागर के विशेष आर्थिक क्षेत्र पर इसका दावा बनता है जिसे इसने अभी व्यक्त नहीं किया है और इसके चलते भूमध्यसागर में अंकारा को उस विशेष आर्थिक क्षेत्र से वंचित रखा गया है जो उसे प्राप्त होता यदि इस द्वीप पर उसका नियंत्रण होता। साइप्रस के एक समाचार पत्र Simerini के मानचित्र के वर्णन से ही प्रतीत होता है । मानचित्र का ऊपरी भाग संकेत करता है कि ग्रीस इसके 200 नाटिकल मील के विशेष आर्थिक क्षेत्र पर दावा करता है और ( लाल तीर के द्वारा) कैस्टेलोरिजो पर भी इसका नियन्त्रण है, मानचित्र का निचला भाग संकेत देता है कि ग्रीक के पास विशेष आर्थिक क्षेत्र है जिसमें कि कैस्टेलोरिजो शामिल नहीं है ( श्वेत तीर के द्वारा यह प्रदर्शित किया गया है) । यदि एथेंस इसके सम्पूर्ण विशेष आर्थिक क्षेत्र पर अपना दावा करता है तो इसका कैस्टोलोरिजो की उपस्थिति के चलते यह विशेष आर्थिक क्षेत्र साइप्रस के निकट आ जायेगा जो कि साइप्रस में गैस और तेज की हाल की खोज के चलते अत्यंत मह्त्व का हो जाता है। एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के साथ कैस्टोलोरिजो उदीयमान ग्रीस साइप्रस और इजरायल गठबंधन के लिये लाभदायक है ताकि साइप्रस या इजरायल को प्राकृतिक गैस ( पाइपलाइन) या विद्युत ( केबल) से पश्चिमी यूरोप को तुर्की की अनुमति के बिना भेजी जा सके। यह विषय अत्यंत तात्कालिक महत्व का हो गया जब कि 4 नवम्बर को तुर्की के ऊर्जा मंत्री ने घोषणा कर दी कि कि उनकी सरकार इजरायल के लिये प्राकृतिक गैस तुर्की के रास्ते नहीं जाने देगी और इस बात की सम्भावना है कि अंकारा साइप्रस के आयात को भी प्रतिबंधित कर दे। तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन और उनकी सत्तारूढ पार्टी एकेपी के सहयोगी कैस्टोलोरिजो पर ग्रीक के नियंत्रण को स्वीकार करते हैं और इसके 6 नाटिकल मील के जलक्षेत्र को भी लेकिन इससे अधिक नहीं और विशेष आर्थिक क्षेत्र पर नियंत्रण तो बिलकुल भी नहीं। निश्चित रूप से उनके अनुसार विशेष आर्थिक क्षेत्र पर ग्रीक का आगे बढना एक विवाद को जन्म देता है कैस्टेलोरिजो को निष्पक्ष बनाकर अंकारा भूमध्यसागर के अधिकाँश आर्थिक क्षेत्र पर दावा करते हुए इसके विरोधियों के साथ सहयोग को रोक सकता है। यही कारण है कि यह प्रायद्वीप एक संघर्ष का बिंदु बन सकता है।   अनेक ऐसे घटनाक्रम है जो एकेपी द्वारा कैस्टेलोरिजो पर ग्रीस को बाधित करते नजर आते हैं। पहला, सितम्बर में उसने नार्वे के एक जहाज को समुद्री साज के साथ सुसज्जित कर कैस्टेलोरिजो के दक्षिण में तेल और गैस की सम्भावनायें देखने के लिये अनुमति दी जिसमें की महाद्वीप का कुछ क्षेत्र भी था।
दूसरा, तुर्की के लडाकू जहाजों ने रोडेश और कैस्टेलोरिजो के मध्य प्रशिक्षण किया। अंत में वर्ष 2010 में तुर्की की सेना के विमान कैस्टेलोरिजो से चार बार बिना अनुमति के उडे और कुछ अवसरों पर तो अत्यंत नीचे सर्वेक्षण करने वाले विमानों के साथ।  कटुता का भाव एक बडी परिपाटी के अनुसार उपयुक्त है। एकेपी सरकार ने जब से जुलाई के अंत में सेना का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है तभी से इसने साइप्रस, इजरायल, सीरिया और इराक के विरुद्ध अपनी शत्रुता प्रदर्शित की है। इसके अतिरिक्त अंकारा ने साइप्रस के विशेष आर्थिक क्षेत्र से इसे वंचित किया है और अब कैस्टेलोरिजो के साथ यही कुछ नीतिगत रूप से इसे स्थापित करता है। 1974 में साइप्रस के 36 प्रतिशत क्षेत्र को निर्दयतापूर्वक अपने अधीन कर लेने का उदाहरण दर्शित करता है वह इस प्रायद्वीप पर पूरा नियंत्रण स्थापित कर सकता है। कैस्टेलोरिजो को हथियाने में निश्चय ही यह लेख पढ्ने से अधिक समय लगेगा। अभी तक भूमध्यसागर में तुर्की की बढती आक्रामकता को लेकर केवल साइप्रस के विशेष आर्थिक क्षेत्र से उसे तेल और गैस निकालने से रोकने तक सीमित रखा गया है और अनेक नौसिखिये लोग या फिर अमेरिका और रूस साइप्रस के आर्थिक संसाधनों को प्राप्त करने के अधिकारों का समर्थन करते दिखे हैं। साइप्रस के राष्ट्रापति देमेत्रिस क्रिस्टोफियास ने चेतावनी दी है कि "यदि अंकारा अपनी बदूकआधारित नौका की नीति को जारी रखता है तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे" । इजरायल के उप विदेश मंत्री डैनी अयालोन ने ग्रीक से कहा है, "यदि कोई भी इन उत्खननन को चुनौती देता है तो हम उन चुनौतियों का सामना करेंगे" और उनकी सरकार ने न केवल अपने सामुद्रिक क्षेत्र में वरन साइप्रस के उत्खनन जलक्षेत्र में भी सुरक्षा बढा दी है। एक अवसर पर तो इजरायल के लडाकू विमान तुर्की के जहाज से भिड भी गये थे। समस्या के समाधान के ऐसे स्पष्ट संकेत स्वागततोग्य हैं। जैसे कि यूरोपियन यूनियन ने ग्रीस को इस बात के लिये प्रेरित किया है कि वह अपनी आय बढाने के लिये हाइड्रोकार्बन का उत्खनन करे वैसे ही इसे एथेंस का इस बात के लिये समर्थन करना चाहिये कि वह विशेष आर्थिक क्षेत्र घोषित करे और एकेपी द्वारा समस्या खडी करने के प्रयास को निरस्त करे और इस बात का संकेत दे कि इस मौज मस्ती वाले द्वीप के लिये कोई समस्या खडा करने के गम्भीर परिणाम होंगे।

नेशनल रिव्यू आनलाइन
7 फरवरी, 2012
मौलिक अंग्रेजी सामग्री: Kastelorizo - Mediterranean Flashpoint?
हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी