29 अग॰ 2013

dwipadi: sanjiv

द्विपदी सलिला:
इस आभासी जग में :
संजीव 

इस आभासी जग में सचमुच, कोई न पहरेदार
शिक्षित-बुद्धिमान हमलावर, देते कष्ट हजार
*
जिनसे जानते हैं जीवन में, उन्हें बनायें मित्र
'सलिल' सुरक्षित आप रहेंगे, मलिन न होगा चित्र
*
भली-भाँति कर जाँच- बाद में, भले मित्र लें जोड़
संख्या अधिक बढ़ाने की प्रिय!, कभी न करिए होड़
*
नकली खाते बना-बनाकर, छलिए ठगते मीत
प्रोफाइल लें जाँच, यही है, सीधी-सच्ची रीत
*
पढ़ें पोस्ट खाताधारी की, कितनी-कैसे लेख
लेखक मन की देख सकेंगे, रचनाओं में रेख
*
नकली चित्र लगाते हैं जो, उनसे रहिए दूर
छल करना ही उनकी फितरत, रही सजग जरूर
*
खाताधारक के मित्रों को देखें, चुप सायास
वस्त्र-भाव मुद्राओं से भी, होता कुछ आभास 
*
देह-दर्शनी मोहकतामय, व्याल-जाल जंजाल
दिखें सोचिए इनके पीछे, कैसा है कंकाल?
*
संचित चित्रों-सामग्री को, देख करें अनुमान
जुड़ें-ना जुड़ें आप सकेंगे, उनका सच पहचान
*
शिक्षा, स्वजन, जीविका पर भी, तनिक दीजिए ध्यान 
चिंतन धरा से भी होता, चिन्तक का अनुमान 
*
नेता अभिनेता फूलों या, प्रभु के चिपका चित्र
जो परदे में छिपे- न उसका, विश्वसनीय चरित्र 
*
स्वजनों के प्रोफाइल देखें, सच्चे या अनमेल?
गलत जानकारी देकर, कर सके न कोई खेल 
*
शब्द और भाषा भी करते, गुपचुप कुछ संकेत
देवमूर्ति से तन में मन का, स्वामी कहीं न प्रेत
*
आक्रामक-अपशब्दों का जो, करते 'सलिल' प्रयोग 
दूर रहें ऐसे लोगों से- हैं समाज के रोग
*
पासवर्ड हो गुप्त- बदलते रहिए बारम्बार
जान न पाए अन्य, सावधानी की है दरकार
*

18 अग॰ 2013

doha salila: aaj ki baat -sanjiv

दोहा सलिला-
आज की बात :
संजीव
*
नर ने चुने नरेश बन,  भूल गए कर्तव्य
इसीलिये धुंधला लगे, आज 'सलिल' भवितव्य
*
रुपये को पैसा कहें, मिट जाएगा कष्ट
नीति यही सरकार की, बढ़ता रहे अनिष्ट
*
मुफ्त बाँट सौ कर बढ़ा, करें वसूल हजार
चतुर आई.ए.एस. हैं, सचिवालय-सरकार
*
मान न मोल करें तनिक, श्रम का- हम दुत्कार
फिर मजूर कोई बने, क्यों? सहने फटकार??
*
नाकाबिल इंजीनियर, गढ़ते हैं कोलेज
श्रेष्ठ बढ़ई-मिस्त्री बनें, कोई न दे नोलेज
*
रहे भीख पर आश्रित, मतदाता- दे वोट
शासन के अनुदान के, पीछे भारी खोट
*
रोजगार पाकर गहे, शक्ति न लोक-समाज
नेतागण चाहें यही, करें निबल पर राज
*
देश नहीं दीवालिया,  ले गये विदेश
वापिस लाने के , जनगण दे आदेश
*
सेना महज गुलाम है, मंत्रालय का दोष
मंत्री-सचिवों का बढ़े, कमा कमीशन कोष
*
पिठ्ठू है सरकार यह, अमरीका की मीत
उसके हित की नीतियाँ, गा रही गीत
*
होता है निर्यात कम, बहुत अधिक आयात
मंत्री-अफसर कमीशन ले, करते आघात
*
उत्पादन करते महज, यंत्री  श्रमिक किसान
शिक्षक डॉक्टर जरूरी, ज्ञान-जान की खान
*
शांति-व्यवस्था के लिए, सेना पुलिस सहाय
न्यायालय का भी नहीं,  दूजा कोई उपाय
*
बाबू अफसर भृत्य का, कहीं न कोई काम
मिटें दलाल-वकील भी, कर श्रम पायें नाम
*
जिसका उत्पादन अधिक, उसे मिले ईनाम
अन उत्पादक से छिनें, सुविधा 'सलिल' तमाम
*
जन-प्रतिनिधि दलहीन हों, राष्ट्रीय सरकार
रहें समर्थक सदन में, जैसे घर-परिवार
*
सब मिल संचालन करें, बने राष्ट्र-हित नीति
देश स्वावलंबी बने, महाशक्ति तज भीति
*
नर नरेश बनकर करे, सतत राष्ट्र-निर्माण
'सलिल' तभी हो सकेगा हर संकट से त्राण
==============

14 अग॰ 2013

muktak: acharya sanjiv 'salil'

शहादतों को भूलकर सियासतों को जी रहे
पड़ोसियों से पिट रहे हैं और होंठ सी रहे
कुर्सियों से प्यार है, न खुद पे ऐतबार है-
नशा निषेध इस तरह कि मैकदे में पी रहे
*
जो सच कहा तो घेर-घेर कर रहे हैं वार वो
हद है ढोंग नफरतों को कह रहे हैं प्यार वो
सरहदों पे सर कटे हैं, संसदों में बैठकर-
एक-दूसरे को कोस, हो रहे निसार वो
*
मुफ़्त भीख लीजिए, न रोजगार माँगिए
कामचोरी सीख, ख्वाब अलगनी पे टाँगिए
फर्ज़ भूल, सिर्फ हक की बात याद कीजिए-
आ रहे चुनाव देख, नींद में भी जागिए
*
और का सही गलत है, अपना झूठ सत्य है
दंभ-द्वेष-दर्प साध, कह रहे सुकृत्य है
शब्द है निशब्द देख भेद कथ्य-कर्म का-
वार वीर पर अनेक कायरों का कृत्य है
*
प्रमाणपत्र गैर दे: योग्य या अयोग्य हम?
गर्व इसलिए कि गैर भोगता, सुभोग्य हम
जो न हाँ में हाँ कहे, लांछनों से लाद दें -
शिष्ट तज, अशिष्ट चाह, लाइलाज रोग्य हम
*
गंद घोल गंग में तन के मुस्कुराइए
अनीति करें स्वयं दोष प्रकृति पर लगाइए
जंगलों के, पर्वतों के नाश को विकास मान-
सन्निकट विनाश आप जान-बूझ लाइए
*
स्वतंत्रता है, आँख मूँद संयमों को छोड़ दें
नियम बनायें और खुद नियम झिंझोड़-तोड़ दें
लोक-मत ही लोकतंत्र में अमान्य हो गया-
सियासतों से बूँद-बूँद सत्य की निचोड़ दें
*
हर जिला प्रदेश हो, राग यह अलापिए
भाई-भाई से भिड़े, पद पे जा विराजिए
जो स्वदेशी नष्ट हो, जो विदेशी फल सके-
आम राय तज, अमेरिका का मुँह निहारिए
*
धर्महीनता की राह, अल्पसंख्यकों की चाह
अयोग्य को वरीयता, योग्य करे आत्म-दाह
आँख मूँद, तुला थाम, न्याय तौल बाँटिए-
बहुमतों को मिल सके नहीं कहीं तनिक पनाह
*
नाम लोकतंत्र, काम लोभतंत्र कर रहा
तंत्र गला घोंट लोक का विहँस-मचल रहा
प्रजातंत्र की प्रजा है पीठ, तंत्र है छुरा-
राम हो हराम, तज विराम दाल दल रहा
*
तंत्र थाम गन न गण की बात तनिक मानता
स्वर विरोध का उठे तो लाठियां है भांजता
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
लोक जन प्रजा नहीं दलों का हित ही साधता
*
धरें न चादरों को ज्यों का त्यों करेंगे साफ़ अब
बहुत करी विसंगति करें न और माफ़ अब
दल नहीं, सुपात्र ही चुनाव लड़ सकें अगर-
पाक-साफ़ हो सके सियासती हिसाब तब
*
लाभ कोई ना मिले तो स्वार्थ भाग जाएगा
देश-प्रेम भाव लुप्त-सुप्त जाग जाएगा
देस-भेस एक आम आदमी सा तंत्र का-
हो तो नागरिक न सिर्फ तालियाँ बजाएगा
*
धर्महीनता न साध्य, धर्म हर समान हो
समान अवसरों के संग, योग्यता का मान हो
तोडिये न वाद्य को, बेसुरा न गाइए-
नाद ताल रागिनी सुछंद ललित गान हो
*
शहीद जो हुए उन्हें सलाम, देश हो प्रथम
तंत्र इस तरह चले की नयन कोई हो न नम
सर्वदली-राष्ट्रीय हो अगर सरकार अब
सुनहरा हो भोर, तब ही मिट सके तमाम तम
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13 अग॰ 2013

सुलग रहे शहर शहर , खाक हो रहे हैं घर - सियासती गुनाहों से , वतन मेरा बिखर गया .

खण्ड-खण्ड बंट गया, "पंथ-रंग"-रंग गया 
अखंड था कहा गया-  कहो वो घर किधर गया ?
सुलग रहे शहर शहर , खाक हो रहे हैं घर -
सियासती गुनाहों से , वतन मेरा बिखर गया .
**********
आदतन  ज़ुर्म  की  बिखेरते किमाच हो
बोलते हो विष भरा,आदमी कि सांप हो..?
राज़पथ पे सरपट वोट-रथारूढ़  तुम-
मेरे फ़टे पे मत हंसो  पैबंद खुद के ढांप लो..!!
यहां तो बालकाल में दांत शेर के गिने 
वानरी हुंकार से  कनक-नगर बिखर गया !!
**********
रण में जब कहा गया, रण में जो सुना गया-
युगों युगों तलक उसी की ज्योति पे चला गया !
राम बिम्ब है नहीं कृष्ण को भरम न कह 
कर नमन मात को, और संग साथ रह !!
परम पिता की राह में मातु का आशीष संग

लिये बिना जो गया जाने वो किधर गया ?

12 अग॰ 2013

doha salila: bhavan mahatmya -acharya sanjiv verma 'salil'

दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
संजीव

*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।

1 अग॰ 2013

मोहम्‍मद रफ़ी : हां, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...:फ़िरदौस ख़ान

बहुमुखी संगीत प्रतिभा के धनी मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को पंजाब के अमृतसर ज़िले के गांव मजीठा में हुआ. संगीत प्रेमियों के लिए यह गांव किसी तीर्थ से कम नहीं है. मोहम्मद रफ़ी के चाहने वाले दुनिया भर में हैं. भले ही मोहम्मद रफ़ी साहब हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ रहती दुनिया तक क़ायम रहेगी. साची प्रकाशन द्वारा प्रकाशित विनोद विप्लव की किताब मोहम्मद रफ़ी की सुर यात्रा मेरी आवाज़ सुनो मोहम्मद रफ़ी साहब के जीवन और उनके गीतों पर केंद्रित है. लेखक का कहना है कि मोहम्मद रफ़ी के विविध आयामी गायन एवं व्यक्तित्व को किसी पुस्तक में समेटना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है, फिर भी अगर संगीत प्रेमियों को इस पुस्तक को पढ़कर मोहम्मद रफ़ी के बारे में जानने की प्यास थोड़ी-सी भी बुझ जाए तो मैं अपनी मेहनत सफल समझूंगा. इस लिहाज़ से यह एक बेहतरीन किताब कही जा सकती है.

मोहम्मद ऱफी के पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद और माता का नाम अल्लारखी था. उनके पिता ख़ानसामा थे. रफ़ी के बड़े भाई मोहम्मद दीन की हजामत की दुकान थी, जहां उनके बचपन का काफ़ी वक़्त गुज़रा. वह जब क़रीब सात साल के थे, तभी उनके बड़े भाई ने इकतारा बजाते और गीत गाते चल रहे एक फ़क़ीर के पीछे-पीछे उन्हें गाते देखा. यह बात जब उनके पिता तक पहुंची तो उन्हें काफ़ी डांट पड़ी. कहा जाता है कि उस फ़क़ीर ने रफ़ी को आशीर्वाद दिया था कि वह आगे चलकर ख़ूब नाम कमाएगा. एक दिन दुकान पर आए कुछ लोगों ने ऱफी को फ़क़ीर के गीत को गाते सुना. वह उस गीत को इस क़दर सधे हुए सुर में गा रहे थे कि वे लोग हैरान रह गए. ऱफी के बड़े भाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. 1935 में उनके पिता रोज़गार के सिलसिले में लाहौर आ गए. यहां उनके भाई ने उन्हें गायक उस्ताद उस्मान ख़ान अब्दुल वहीद ख़ान की शार्गिदी में सौंप दिया. बाद में रफ़ी ने पंडित जीवन लाल और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों से भी संगीत सीखा.

मोहम्मद रफ़ी उस वक़्त के मशहूर गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल के दीवाने से और उनके जैसा ही बनना चाहते थे. वह छोटे-मोटे जलसों में सहगल के गीत गाते थे. क़रीब 15 साल की उम्र में उनकी मुलाक़ात सहगल से हुई. हुआ यूं कि एक दिन लाहौर के एक समारोह में सहगल गाने वाले थे. रफ़ी भी अपने भाई के साथ वहां पहुंच गए. संयोग से माइक ख़राब हो गया और लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. व्यवस्थापक परेशान थे कि लोगों को कैसे ख़ामोश कराया जाए. उसी वक़्त रफ़ी के बड़े भाई व्यवस्थापक के पास गए और उनसे अनुरोध किया कि माइक ठीक होने तक रफ़ी को गाने का मौक़ा दिया जाए. मजबूरन व्यवस्थापक मान गए. रफ़ी ने गाना शुरू किया, लोग शांत हो गए. इतने में सहगल भी वहां पहुंच गए. उन्होंने रफ़ी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन तुम्हारी आवाज़ दूर-दूर तक फैलेगी. बाद में रफ़ी को संगीतकार फ़िरोज़ निज़ामी के मार्गदर्शन में लाहौर रेडियो में गाने का मौक़ा मिला. उन्हें कामयाबी मिली और वह लाहौर फ़िल्म उद्योग में अपनी जगह बनाने की कोशिश करने लगे. उस दौरान उनकी रिश्ते में बड़ी बहन लगने वाली बशीरन से उनकी शादी हो गई. उस वक़्त के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर और फ़िल्म निर्माता अभिनेता नासिर ख़ान से रफ़ी की मुलाक़ात हुई. उन्होंने उनके गाने सुने और उन्हें बंबई आने का न्यौता दिया. ऱफी के पिता संगीत को इस्लाम विरोधी मानते थे, इसलिए बड़ी मुश्किल से वह संगीत को पेशा बनाने पर राज़ी हुए. रफ़ी अपने भाई के साथ बंबई पहुंचे. अपने वादे के मुताबिक़ श्याम सुंदर ने रफ़ी को पंजाबी फ़िल्म गुलबलोच में ज़ीनत के साथ गाने का मौक़ा दिया. यह 1944 की बात है. इस तरह रफ़ी ने गुलबलोच के सोनियेनी, हीरिएनी तेरी याद ने बहुत सताया गीत के ज़रिये पार्श्वगायन के क्षेत्र में क़दम रखा. रफ़ी ने नौशाद साहब से भी मुलाक़ात की. नौशाद ने फ़िल्म शाहजहां के एक गीत में उन्हें सहगल के साथ गाने का मौक़ा दिया. रफ़ी को सिर्फ़ दो पंक्तियां गानी थीं-मेरे सपनों की रानी, रूही, रूही रूही. इसके बाद नौशाद ने 1946 में उनसे फ़िल्म अनमोल घड़ी का गीत तेरा खिलौना टूटा बालक, तेरा खिलौना टूटा रिकॉर्ड कराया. फिर 1947 में फ़िरोज़ निज़ामी ने रफ़ी को फ़िल्म जुगनूं का युगल गीत नूरजहां के साथ गाने का मौक़ा दिया. बोल थे- यहां बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है. यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ. इसके बाद नौशाद ने रफ़ी से फ़िल्म मेला का एक गीत ये ज़िंदगी के मेले गवाया. इस फ़िल्म के बाक़ी गीत मुकेश से गवाये गए, लेकिन रफ़ी का गीत अमर हो गया. यह गीत हिंदी सिनेमा के बेहद लोकप्रिय गीतों में से एक है. इस बीच रफ़ी संगीतकारों की पहली जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम के संपर्क में आए. इस जोड़ी ने अपनी शुरुआती फ़िल्मों प्यार की जीत, बड़ी बहन और मीना बाज़ार में रफ़ी की आवाज़ का भरपूर इस्तेमाल किया. इसके बाद तो नौशाद को भी फ़िल्म दिल्लगी में नायक की भूमिका निभा रहे श्याम कुमार के लिए रफ़ी की आवाज़ का ही इस्तेमाल करना पड़ा. इसके बाद फ़िल्म चांदनी रात में भी उन्होंने रफ़ी को मौक़ा दिया. बैजू बावरा संगीत इतिहास की सिरमौर फ़िल्म मानी जाती है. इस फ़िल्म ने रफ़ी को कामयाबी के आसमान तक पहुंचा दिया. इस फ़िल्म में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां साहब और डी वी पलुस्कर ने भी गीत गाये थे. फ़िल्म के पोस्टरों में भी इन्हीं गायकों के नाम प्रचारित किए गए, लेकिन जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो मोहम्मद रफ़ी के गाये गीत तू गंगा की मौज और ओ दुनिया के रखवाले हर तरफ़ गूंजने लगे. रफ़ी ने अपने समकालीन गायकों तलत महमूद, मुकेश और सहगल के रहते अपने लिए जगह बनाई. रफ़ी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तक़रीबन 26 हज़ार गाने गाये, लेकिन उनके तक़रीबन पांच हज़ार गानों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें ग़ैर फ़िल्मी गीत भी शामिल हैं. देश विभाजन के बाद जब नूरजहां, फ़िरोज़ निज़ामी और निसार वाज्मी जैसी कई हस्तियां पाकिस्तान चली गईं, लेकिन वह हिंदुस्तान में ही रहे. इतना ही नहीं, उन्होंने सभी गायकों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा देशप्रेम के गीत गाये. रफ़ी ने जनवरी, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के एक माह बाद गांधी जी को श्रद्धांजलि देने के लिए हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में राजेंद्र कृष्ण रचित सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों, बापू की ये अमर कहानी गीत गाया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे. भारत-पाक युद्ध के वक़्त भी रफ़ी ने जोशीले गीत गाये. यह सब पाकिस्तानी सरकार को पसंद नहीं था. शायद इसलिए दुनिया भर में अपने कार्यक्रम करने वाले रफ़ी पाकिस्तान में शो पेश नहीं कर पाए. ऱफी किसी भी तरह के गीत गाने की योग्यता रखते थे. संगीतकार जानते थे कि आवाज़ को तीसरे सप्तक तक उठाने का काम केवल ऱफी ही कर सकते थे. मोहम्मद रफ़ी ने संगीत के उस शिखर को हासिल किया, जहां तक कोई दूसरा गायक नहीं पहुंच पाया. उनकी आवाज़ के आयामों की कोई सीमा नहीं थी. मद्धिम अष्टम स्वर वाले गीत हों या बुलंद आवाज़ वाले याहू शैली के गीत, वह हर तरह के गीत गाने में माहिर थे. उन्होंने भजन, ग़ज़ल, क़व्वाली, दशभक्ति गीत, दर्दभरे तराने, जोशीले गीत, हर उम्र, हर वर्ग और हर रुचि के लोगों को अपनी आवाज़ के जादू में बांधा. उनकी असीमित गायन क्षमता का आलम यह था कि उन्होंने रागिनी, बाग़ी, शहज़ादा और शरारत जैसी फ़िल्मों में अभिनेता-गायक किशोर कुमार पर फ़िल्माये गीत गाये.

वह 1955 से 1965 के दौरान अपने करियर के शिखर पर थे. यह वह व़क्त था, जिसे हिंदी फ़िल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जा सकता है. उनकी आवाज़ के जादू को शब्दों में बयां करना नामुमकिन है. उनकी आवाज़ में सुरों को महसूस किया जा सकता है. उन्होंने अपने 35 साल के फ़िल्म संगीत के करियर में नौशाद, सचिन देव बर्मन, सी रामचंद्र, रोशन, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन, ओ पी नैयर, चित्रगुप्त, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सलिल चौधरी, रवींद्र जैन, इक़बाल क़ुरैशी, हुस्नलाल, श्याम सुंदर, फ़िरोज़ निज़ामी, हंसलाल, भगतराम, आदि नारायण राव, हंसराज बहल, ग़ुलाम हैदर, बाबुल, जी एस कोहली, वसंत देसाई, एस एन त्रिपाठी, सज्जाद हुसैन, सरदार मलिक, पंडित रविशंकर, उस्ताद अल्ला रखा, ए आर क़ुरैशी, लच्छीराम, दत्ताराम, एन दत्ता, सी अर्जुन, रामलाल, सपन जगमोहन, श्याम जी-घनश्यामजी, गणेश, सोनिक-ओमी, शंभू सेन, पांडुरंग दीक्षित, वनराज भाटिया, जुगलकिशोर-तलक, उषा खन्ना, बप्पी लाह़िडी, राम-लक्ष्मण, रवि, राहुल देव बर्मन और अनु मलिक जैसे संगीतकारों के साथ मिलकर संगीत का जादू बिखेरा.

रफ़ी साहब ने 31 जुलाई, 1980 को आख़िरी सांस ली. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. जिस रोज़ उन्हें जुहू के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया, उस दिन बारिश भी बहुत हो रही थी. उनके चाहने वालों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी. लग रहा था मानो ऱफी साहब कह रहे हों-
हां, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीते मेरे
संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे…