24 जून 2014

chhand salila: kamand chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कमंदRoseछंद 


संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १५-१७, पदांत गुरु गुरु

लक्षण छंद:
  रखें यति पंद्रह-सत्रह पर, अमरकण्टकी लहर लहराती 
  छंद कमंद पदांत गुरु-गुरु, रसगंगा ज्यों फहर फहराती 

उदाहरण:
१. प्रभु को भजते संत सुजान, भुलाकर अहंकार-मद सारा
    जिसने की दीन की सेवा, उसने जन्म का पाप उतारा
    संग न गया कभी कहीं कुछ, कुछ संग बोलो किसके आया
    किसे सगा कहें हम अपना, किसको बोलो बोलें पराया 

२. हम सब भारत माँ के लाल, चरण में सदा समर्पित होंगे
    उच्च रखेंगे माँ का भाल, तन-मन के सुमन अर्पित होंगे
    गर्व है हमको मैया पर, गर्व हम पर मैया को होगा
    सर कटा होंगे शहीद जो, वे ही सुपूजित चर्चित होंगे
   
३. विदेशी भाषा में शिक्षा, मिले- उचित है भला यह कैसे?
    विरासत की सतत उपेक्षा, करी- शुभ ध्येय भला यह कैसे?
    स्वमूल्य का अवमूल्यन कर, परमूल्यों को बेहतर बोलें
    'सलिल' अमिय में अपने हाथ, छिपकर हलाहल कैसे घोलें?
                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: kamand chhand  -sanjiv
chhand, kamand chhand, acharya sanjiv verma 'salil',


16 जून 2014

chhand salila: marhatha chhand, sanjiv

छंद सलिला:
मरहठाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १०-८-११, पदांत गुरु लघु । 

लक्षण छंद:

    मरहठा छंद रच, असत न- कह सच, पिंगल की है आन  
    दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान  
    गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान 
    लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान  

उदाहरण:

१. ले बिदा निशा से, संग उषा के, दिनकर करता रास   
    वसुधा पर डोरे, डाले अनथक, धरा न डाले घास 
    थक भरी दुपहरी, श्रांत-क्लांत सं/ध्या को चाहे फाँस 
    कर सके रास- खुल, गई पोल जा, छिपा निशा के पास 
     
२. कलकलकल बहती, सुख-दुःख सहती, नेह नर्मदा मौन    
    चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
    माया की भँवरें, मोह चक्र में, घुमा रहीं दिन-रात 
    संयम का शतदल, महके अविचल, खिले मिले जब प्रात   

३. चल उठा तिरंगा, नभ पर फहरा, दहले दुश्मन शांत 
    दें कुचल शत्रु को, हो हमलावर यदि, होकर वह भ्रांत 
    आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ 
    सुख-दुःख के साथी, कदम मिला चल, रहें उठायें माथ 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

15 जून 2014

dohanjali: sanjiv

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म  
*
गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य 
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य 
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान 
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान 
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल 
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल 
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप 
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप 
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप 
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात 
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह 
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह 
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र 
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार 
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार 
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह 
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह 
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास 
*   

13 जून 2014

chhand salila: vidya chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विद्याRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                   यति १४-१४ , पदांत गुरु गुरु  

लक्षण छंद:

    प्रभु!कौशल-शिक्षा शुभ हो , श्रम-प्रयास हर सुखदा हो
    लघु शुरुआत अंत गुरु हो , विद्या-भुवन सुफलदा हो 
    संकेत: विद्या = १४, भुवन = १४ 

उदाहरण:

१. उठें सवेरे सेज तजें , नमन करें धरती माँ को        
    भ्रमण करें, देवता भजें , नवा शीश श्री-सविता को   
    पियें दूध अध्ययन करे , करें कार्य नित हितकारी    
    'सलिल' समाज देश का हित , करो बनो पर उपकारी   
     
२. करें पड़ोसी मनमानी , उनको सबक सिखाना है 
    अब आतंकी नहीं बचें , मिलकर मार मिटाना है         
    मँहगाई आसमां छुए , भाव भूमि पर लाना है 
    रह न सके रिश्वतखोरी , अनुशासन अपनाना है  

३. सखी! सजती ही रहीं तो , विरह कैसे मिट सकेगा?           
    पत्र पढ़तीं ही रहीं तो , मिलन कैसे साध सकेगा?
    द्वार की कुण्डी खटकती , कह रही सम्भावना है  
     रही यदि कोशिश ठिठकती , ह्रदय कैसे हँस सकेगा?

                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

12 जून 2014

chhand salila: vidhata chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विधाता/शुद्धगाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                   यति ७-७-७-७ / १४-१४ , ८ वीं - १५ वीं मात्रा लघु 
विशेष: उर्दू बहर हज़ज सालिम 'मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन' इसी छंद पर आधारित है. 

लक्षण छंद:

    विधाता को / नमन कर ले , प्रयासों को / गगन कर ले 
    रंग नभ पर / सिंधु में जल , साज पर सुर / अचल कर ले 
    सिद्धि-तिथि लघु / नहीं कोई , दिखा कंकर / मिला शंकर  
    न रुक, चल गिर / न डर, उठ बढ़ , सीकरों को / सलिल कर ले        
    संकेत: रंग =७, सिंधु = ७, सुर/स्वर = ७, अचल/पर्वत = ७ 
               सिद्धि = ८, तिथि = १५ 
उदाहरण:

१.  न बोलें हम न बोलो तुम , सुनें कैसे बात मन की?       
    न तोलें हम न तोलो तुम , गुनें कैसे जात तन की ?  
    न डोलें हम न डोलो तुम , मिलें कैसे श्वास-वन में?   
    न घोलें हम न घोलो तुम, जियें कैसे प्रेम धुन में? 
     जात = असलियत, पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात 

२. ज़माने की निगाहों से , न कोई बच सका अब तक
   निगाहों ने कहा अपना , दिखा सपना लिया ठग तक     
   गिले - शिकवे करें किससे? , कहें किसको पराया हम?         
   न कोई है यहाँ अपना , रहें जिससे नुमायाँ हम  

३. है हक़ीक़त कुछ न अपना , खुदा की है ज़िंदगानी          
    बुन रहा तू हसीं सपना , बुजुर्गों की निगहबानी
    सीखता जब तक न तपना , सफलता क्यों हाथ आनी?  
    कोशिशों में खपा खुदको , तब बने तेरी कहानी

४. जिएंगे हम, मरेंगे हम, नहीं है गम, न सोचो तुम 
    जलेंगे हम, बुझेंगे हम, नहीं है तम, न सोचो तुम 
    कहीं हैं हम, कहीं हो तुम, कहीं हैं गम, न सोचो तुम 
    यहीं हैं हम, यहीं हो तुम, नहीं हमदम, न सोचो तुम 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

11 जून 2014

chhand salila: vishnupad chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विष्णुपदRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत गुरु 

लक्षण छंद:

    सोलह गुण आगार विष्णुपद , दस दिश बसें रमा
    अवढरदानी प्रभु प्रसन्न हों , दें आशीष उमा 
    गुरु पदांत शोभित हो गुरुवत , सुमधुर बंद रचें 
    भाव बिम्ब लय अलंकार रस , सस्वर छंद नचें       
    
उदाहरण:

१. भारत माता की जय बोलो , ध्वज रखो ऊँचा
   कोई काम न ऐसा करना , शीश झुके नीचा    
   जगवाणी हिंदी की जय हो , सुरवाणी बोलो        
   हर भाषा है शारद मैया , कह मिसरी घोलो 

२. सारी दुनिया है कुटुंबवत , दूर करो दूरी            
    भाषा-भूषा धर्म-क्षेत्र की , क्यों हो मजबूरी?
    दिल का दिल से नेता जोड़ो , भाईचारा हो 
    सांझी थाती रहे विरासत , क्यों बँटवारा हो?     

३. जो हिंसा फैलाते उनको , भारी दंड मिलें        
    नारी-गौरव के अपराधी , जीवित नहीं बचें 
    ममता समता सदाचार के , पग-पग कमल खिलें   
    रिश्वत लालच मोह लोभ अब, किंचित नहीं पचें 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: anugeet chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अनुगीतRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत लघु 

लक्षण छंद:

    अनुगीत सोलह-दस कलाएँ , अंत लघु स्वीकार
    बिम्ब रस लय भाव गति-यतिमय , नित रचें साभार     
    
उदाहरण:

१. आओ! मैं-तुम नीर-क्षीरवत , एक बनें मिलकर
   देश-राह से शूल हटाकर , फूल रखें चुनकर     
   आतंकी दुश्मन भारत के , जा न सकें बचकर      
   गढ़ पायें समरस समाज हम , रीति नयी रचकर    

२. धर्म-अधर्म जान लें पहलें , कर्तव्य करें तब            
    वर्तमान को हँस स्वीकारें , ध्यान धरें कल कल
    किलकिल की धारा मोड़ें हम , धार बहे कलकल 
    कलरव गूँजे दसों दिशा में , हरा रहे जंगल    

३. यातायात देखकर चलिए , हो न कहीं टक्कर        
    जान बचायें औरों की , खुद आप रहें बचकर
    दुर्घटना त्रासद होती है , सहें धीर धरकर  
    पीर-दर्द-दुःख मुक्त रहें सब , जीवन हो सुखकर
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

7 जून 2014

chhand salila: geeta chhand -sanjiv

छंद सलिला:

गीता Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १४ - १२, पदांत गुरु लघु.

लक्षण छंद:

    चौदह भुवन विख्यात है , कुरु क्षेत्र गीता-ज्ञान
    आदित्य बारह मास नित , निष्काम करे विहान  
    अर्जुन सदृश जो करेगा , हरी पर अटल विश्वास  
    गुरु-लघु न व्यापे अंत हो , हरि-हस्त का आभास    
     संकेत: आदित्य = बारह 
उदाहरण:

१. जीवन भवन की नीव है , विश्वास- श्रम दीवार
   दृढ़ छत लगन की डालिये , रख हौसलों का द्वार   
   ख्वाबों की रखें खिड़कियाँ , नव कोशिशों का फर्श   
   सहयोग की हो छपाई , चिर उमंगों का अर्श 

२. अपने वतन में हो रहा , परदेश का आभास         
    अपनी विरासत खो रहे , किंचित नहीं अहसास
    होटल अधिक क्यों भा रहा? , घर से हुई क्यों ऊब?
    सोचिए! बदलाव करिए , सुहाये घर फिर खूब 

३. है क्या नियति के गर्भ में , यह कौन सकता बोल?
    काल पृष्ठों पर लिखा क्या , कब कौन सकता तौल?
    भाग्य में किसके बदा क्या , पढ़ कौन पाया खोल?
    कर नियति की अवमानना , चुप झेल अब भूडोल।

४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
    है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
    है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
    है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

6 जून 2014

chhand salila: geetika chhand -sanjiv

छंदRose सलिला: 

गीतिका छंद 

संजीव 
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु 

लक्षण छंद: 

    लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते 
    लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते 

उदाहरण:

​​१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े 
    उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े 
    खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना 
    कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े

२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है       
   
​ ​
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है   
   
​ ​
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है   
   
​ ​
एक सा रहता समय कब
​?​
 , रात लाती प्रात है

​३. ​सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
    हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
    विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं 
    दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'