20 मार्च 2022

सहदेव ने स्थापित किया था कश्मीर


       12 वीं शताब्दी में  वर्तमान कश्मीर के परिहास पूर्व में जन्में कल्हण के पिता हर्ष देव के दरबार में दरबारी थे। लोहार वंश का साम्राज्य था कश्मीर में। लोहार राजवंश कश्मीर 11वीं और 12वीं शताब्दी में राज करता था। लोहार वंश की स्थापना संग्राम राज ने की थी। राजा संग्राम राज के वंशज हर्ष देव का शासन काल विसंगतियों भरा था। इस राजा ने मंदिरों तक को लूटा था। किसी राजा के दरबार में उनके एक महामात्य चंपक के 2 पुत्र थे। एक पुत्र का नाम कल्हण था तथा दूसरा पुत्र कनक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कल्हण कवि थे जबकि कनक संगीतज्ञ।
यूरोपीय विद्वान विंटरनिट्स भारत के प्रथम इतिहासकार के रूप में कल्हण का नाम सर्वोच्च स्थान पर रखा उसका कारण था कि कल्हण अपनी कृति-"राजतरंगिणी" में व्यवस्थित ढंग से इतिहास का लेखन किया। इतिहास लेखन के लिए जिन बिंदुओं का विशेष ध्यान दिया जाता है उसका ध्यान रखते हुए कल्हण ने काव्य के रूप में राजतरंगिणी की रचना की। इस कृति का रचनाकाल 1147 से लेकर 1149 ईस्वी था। कुछ लोगों की मान्यता है कि सन 1150 तक यह इतिहास लिखा गया। कुछ लोगों का मंतव्य है कि-"कल्हण ही राज तरंगिणी का लेखन काल कल्हण के बाद भी जारी रहा। और उसके सह लेखक थे जोनराज, प्रज्ञा भट्ट, श्रीवर अथवा सीवर एवम सुका ।
   अर्थात राज तरंगिणी में कई और लेखक भी शामिल हुए।
   राज तरंगिणी का जिन भाषाओं में रूपांतरण हुआ वह है राजा जैनुबुद्दीन के दरबारी कवि मुरला अहमद शाह जिन्होंने इस कृति का फारसी भाषा में अनुवाद बसीर उल अरमाद नाम से किया था। इसी नाम से मुगल बादशाह अकबर के राज कवि शाह मुल्लाह शाहबादी ने भी किया है।
अंग्रेजी विद्वान शाहजहां के कार्यकाल में भारत आए और उन्होंने अपनी किताब पैराडाइज ऑफ इंडिया में इस किताब का अनुवाद प्रकाशित किया था। परंतु यह कृति अब विश्व में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी भाषा में ऑरेलेस्टाइन द्वारा किए गए अनुवाद की उपलब्धता विश्व साहित्य में है।
   मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 1600 पूर्व में महाभारत के काल का विवरण प्रस्तुत कर दिया है। महाभारत काल से लेकर लोहार वंश के अंतिम हिंदू राजावंश तक 36 वर्ष और 64 उप जातियों का उल्लेख करते हुए कल्हण ने इतिहास का लेखन किया है। कल्हण ने अपने इतिहास में अर्थात राज तरंगिणी में यह तथ्य स्थापित किया है कि पांडवों के छोटे भाई सहदेव ने कश्मीर में राज्य की स्थापना की थी।
   राज तरंगिणी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में भी अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। प्रारंभ में अशोक शैव संप्रदाय का मानने वाला था। तदुपरांत वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। इस कृति में कुषाण वंश के राजा कनिष्क के कश्मीर में विस्तार का भी उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वहां कनिष्क पुर नामक नगर की स्थापना कनिष्क ने ही की थी। कनिष्क के काल में चौथी बौद्ध संगति का विवरण भी है।
   राजा अवंती बर्मन के दरबार में सूर नामक प्रथम इंजीनियर ने झेलम पर पुल बनाया था ऐसा उल्लेख इस कृति में मिलता है।
   कल्हण ने 813 ईसा पूर्व से 1150 ईस्वी तक अपनी कृति में दर्ज किया है। कृपया देखिए महाभारत का कालखंड 3762 ईसा पूर्व की पुष्टि आचार्य मृगेंद्र विनोद एवं वेदवीर आर्य ने भी की है। तदनुसार इसका उल्लेख मेरी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में प्रश्न क्रमांक 192 से 197 तक में दर्ज है।
  मित्रों कल्हण ने अपनी संस्कृत में लिखी गई कृति राज तरंगिणी में जिस इतिहास लेखन के मूल  तत्वों का ध्यान रखा है उन्हें हम क्रमशः निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं....
[  ] प्राचीन राजवंश की क्रमवार जानकारी। राज तरंगिणी का अर्थ होता है राजाओं की नदियां अर्थात राज सत्ता का प्रवाह।
[  ] अपने ग्रंथ को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए उन्होंने (कल्हण ने) 7826 श्लोकों में महाभारत काल से लेकर 1150 ईस्वी तक का इतिहास लिखा है।
[  ] प्रथम 3 तरंगिणीयों में अर्थात अध्याय में राजवंशों का रामायण एवं महाभारत कालीन राजवंशों का तत्सम कालीन संबंध उल्लेखित किया है।
[  ] कल्याण में कश्मीर में बौद्ध धर्म की स्थापना 273 ईसा पूर्व उल्लेखित की है।
[  ] परमाणु की पुष्टि के लिए श्रुति परंपरा पुरातात्विक प्रमाण आदि का विश्लेषण भी राज तरंगिणी में डाला है।
[  ] राज तरंगिणी में आठ तरंगिणीयां 7826 श्लोक हैं।
[  ] राज तरंगिणी में सभी राजवंशों का तटस्थ भाव से विश्लेषण किया है राजाओं के गुण दोषों का स्पष्ट चित्रण किया है।
[  ] सामाजिक व्यवस्था धार्मिक आर्थिक एवं आध्यात्मिक परिस्थितियों का सटीक विवरण प्रदर्शित है।
          भारत के प्राचीनतम इतिहास को समझने के लिए रोमिला थापर जैसे भ्रामक मंतव्य स्थापित करने वाले इतिहासकारों की जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन कल्हण की राज तरंगिणी से शुरू करें।
नोट:- युवाओं को यह आर्टिकल इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि ताकि वे पीएससी यूपीएससी एवं अन्य प्रतियोगी स्पर्धाओं के लिए *प्राचीन भारतीय इतिहास* उपयोगी पाठ्य सामग्री है।
  अन्य सभी को इस हेतु पढ़ना चाहिए ताकि आप भारत को समझ सकें।

18 मार्च 2022

दिनकर जी और राहुल सांकृत्यायन का झूठ पकड़ा गया पढ़िए


   भारत के इतिहास को काल्पनिक साबित करने का क्रम आज से नहीं बल्कि वर्षों से चल रहा है। विगत 70 वर्षों से तो यह बहुत तेजी से चला है। वामपंथी विचारक और लेखक भारत के अस्तित्व को ही न करते हैं।  वामपंथी इतिहासकारों ने तो हद ही कर दी भारतीय महानायक श्रीराम और श्रीकृष्ण को मिथक चरित्र बता दिया। मित्रों जैनिज्म के प्रथम महापुरुष नेमिनाथ तक को इन साजिश करने वालों ने कृष्ण के समकालीन होते हुए व्याख्या और चर्चा से बाहर कर दिया ताकि कृष्ण को कल्पनिक घोषित किया जा सके। साहित्यकार अक्सर कल्पना में लेखन करते हैं। मेरा हमेशा से एक ही उद्देश्य रहा है कि जो लिखो यथार्थ लिखो लोकोपयोगी लिखो राष्ट्र के अस्तित्व को स्थापित करने वाला कंटेंट लिखो। परंतु दुर्भाग्य है इस देश का रामधारी सिंह दिनकर ने राम को लोक कथाओं का नायक निरूपित कर दिया।
लोक साहित्य में भारतीय वैदिक साहित्य में  विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के यथार्थ को चित्रित किया है। फिर भी हम अपने प्रमाद वश तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाते। हम पढ़ते नहीं हैं इसलिए हम जवाब नहीं दे पाते।
रामधारी सिंह दिनकर को नकारना मेरे लिए कोई कठिन नहीं था हो सकता है आपके लिए कठिन हो।
  *चर्चिल ने भारत को केवल एक भौगोलिक शब्द कहा है उनका मानना था भारत एक भौगोलिक शब्द है जैसे भूमध्य रेखा कोई राष्ट्र नहीं भारत भी एक राष्ट्र नहीं है।*
*सर जॉन स्ट्रैची कहते हैं-" भारत के बारे में जानने वाली पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत नाम का कोई देश ना कभी था न कभी है*
  इन तमाम मान्यताओं और नैरेटिवस को यूरोपियन नेपोटिज्म के अलावा क्या नाम दिया जाए?
   मित्रों अब समय आ गया है जब वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों, संहिताओं, महाकाव्य क्रमशः रामायण महाभारत, शास्त्रों आदि पर स्पष्ट मीमांसा करते हुए अपनी बात रखी जाए। इस क्रम में मैंने *भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व* कृति की रचना की है। यह एक ऐतिहासिक कृति है। इसी क्रम में जनरल जीडी बक्शी ने सरस्वती सभ्यता के जरिए भी भारत को भारतीय नजरिए से समझने की पेशकश की है । मित्रों आइए विंस्टन चर्चिल और स्ट्रैची को नकारते हुए मैक्स मूलर तथा वामपंथी लेखकों साहित्यकारों जैसे संस्कृति के चार अध्याय लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर को वोल्गा से गंगा तक लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्थापित मंतव्य को जड़ से समाप्त किया जाए। वरना हम अपनी संतानों को क्या जवाब देंगे।
कृपया अमेजॉन फ्लिपकार्ट गूगल बुक्स किंडल पर उपलब्ध ऐसी कृतियों को अवश्य पढ़ें और जाने भारत का सच्चा इतिहास भारतीय नजरिया से।
  Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व )