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12 जुल॰ 2007

"हरियाली-महोत्सव"


"हरियाली-महोत्सव"


हुज़ूर आज हरियाली महोत्सव में पौधा लगाने आने वाले हैं. ये सरकारी रिवायती फरमान ज़ारी हुआ,फरमान में बाक़ायदा लोगों की डियूटी लगी थी, व्यवस्था चॉक चौबंद कोई कमी कैसे होती..?हुज़ूर जो आ रहे हैं.... हुज़ूर जो इस ज़िले के हुज़ूर हैं क्या मज़ाल किसी की जो ग़लती कर दे, ग़लती का मतलब सार्वजनिक बेइज़्ज़ती…! बाल बच्चे दार लोग अपनी इज़्ज़त बचाते क्यों ना ? निम्न मध्यम वर्गी लोगों के पास केवल यही तो हैबचाके रखने के लिए.पैसॆ नाम की चीज़ जो उसे “पे रूपी विशेषण” के साथ मिलतॆं हैं, जॊ उधार खातों को निर्बाध प्रवाह मान बनाए रखने के लिए बनिये को दे दी जाती है.खैर , सो बड़ी मेहनत से इंतज़ामात पुख़्ता किए गए सब अपने कार्य और हज़ूर के मिज़ाज़ के बीच जुगल बंदी में व्यस्त हो गये. यानी ग़लतियों को करीने से छिपाए रखनेकी तरकीबे सोचने लगे,यानी बहानों की लिस्ट पर इन सरकारियों ने तो हुज़ूर आए ,हुज़ूर ने पेड़ लगाए तालियाँ बजी भाषण हुए, फिर तालियाँ बजीं, फिर हुज़ूर ने पूछा -"आप लोगों को कोईतखलीफ़ हो तो बताइए...?" और चुगलखोरी का दौर चला हुज़ूर ने कुछ को ठसाई की, कुछ-एक की पगार काटी, कुछेक की बदली कर दी ..........! इस दुकान दारी से दूर बिसनू गड्ढा खोद रहा था, राम दीन उसे भर रहा था ..! हमसे ना रहा गया सो हमने पूछ ही लिया-"क्यों रे तुम लोग ये क्या कर रहे हो ?" पूरी लाइन में एक भी पेड़ नहीं लगा हुज़ूर देख लेंगे तो लाई लुट जाएगी तुम्हारी भी हमारी भी...! पेड़ लगा के गड्ढा पूरो . ज़बाब मिला -"सा'ब डरो तुम हम तो बता देंगे ..पेड़ लगानेकी डिवटी {ड्यूटी} फुल्लू की हती फुल्लू बीमार पड़ गओ" सो हमायी का ग़लती...? हम तो अपनी डिवटी पूरी कर रएहैं...!

गिरीश बिल्लोरे मुकुल /GIRISH BILLORE"MUKUL"

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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