भैया हम ठहरे गंवईहा, निपट मुरख. लेकिन संगत हमेशा ज्ञानियों और विज्ञानियों का ही किये. कहते हैं ना "सत्संगति किम ना करोति पुंसाम" इनकी संगत करने से हमें बिना पढ़े ही ज्ञान मिल जाता है. ....
कौन पुस्तकों में मगज खपाए. अपना उल्लू सीधा करने के लायक समझ ही लेते हैं. बस किसी ज्ञानी के पास जाकर पाँव लागी किये और मुंह फार के चेथी खुजाते हुए बैठ गए. फिर धीरे कोई एक प्रश्न ढील दिये. अब ज्ञानी महाराज हमको मुरख जान कर प्रश्न का उत्तर धारा प्रवाह दे देते हैं. अगर उसका उत्तर नहीं मिलता तो हमें चाय पिला कर कह देते हैं कि कल आना यार आज मूड नहीं कर रहा है.....
हम उसनके सामने एक प्रश्नवाचक जिन्न खड़ा करके रात भर चैन की नींद सोते हैं और उधर ज्ञानी जी रात भर जाग के ग्रंथों के पन्नो में अपना मूड खपाते रहते हैं. क्योकि कल उनको एक मुरख के सवाल का जवाब देना है. अगर नहीं दे पाए तो उनकी विद्वता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जायेगा. इज्ज़त का सवाल है....
अगर नहीं दे पाए तो हम तो गंवईहा मुरख ठहरे, पुरे गांव में घूम - घूम के कह आयेंगे सुबह-सुबह लोटा धर के कि ज्ञानी जी को तो कुछ नहीं आता फालतू विद्वान् बनने का ढोंग करते रहते हैं. अब ज्ञानी जी अपनी इज्जत बचाने के लिए रात भर जाग कर हमारे प्रश्न का उत्तर ढूंढते हैं, हम सुबह सुबह उनके घर जा धमकते हैं और गरमा-ग़रम चाय और पकोड़े के साथ मनवांछित ज्ञान भी पा जाते हैं. ज्ञानी जी की भी इज्जत बच जाती है और हमें भी बिना पढ़े ,बैठे बिठाये गुप्त ज्ञान मिल जाता है.
भैईया हम तो निपट गंवईहा ठहरे. एक दिन पान की गुमटी के सामने खड़े थे पान लगवाने के लिए. अम्मा ने भेजा था और कहा था सीधा जाना और आना बीच में कहीं रुक मत जाना. हम जब पहुंचे तो कई लोग वहां खड़े थे.
चंदू बोला- पंडित जी आप तो बहुत ज्ञानी हैं. हमारे भानजों की शादी है और विवाह करने के लिए कोई महाराज नहीं मिल रहे हैं. अक्षय तृतीया है. सभी पंडित बुक हो गये हैं. अगर आप ये शादी करवा देते तो हमारा बोझ हल्का हो जाता. ........
हम भी खाली थे. क्योंकि कोई तो हमारे पास आता ही नहीं था. इसलिए कि हम चौथी फेल, बस सुन सुन के याद कर लेते थे और जब कभी मौका मिलता दुसरे गंवारों के बीच अपने ज्ञान का छौंक लगा कर विद्वान् बन जाते थे. हमने भी सोचा कुछ कमाने का मौका मिल रहा है. काहे हाथ से जाने दें. बस हाँ कर दी.
अगला भी बहुत कांईया जजमान था. ये हम जानते थे. हमने वहीं पर सौदा पॉँच सौ एक रूपये में तय कर लिया. अब अम्मा का पान पंहुचा कर हम पहुँच गये ज्ञानी जी के पास और प्रश्न कर दिया की "विवाह में कितने मंत्र पढ़े जाते हैं और भांवर कैसे कराई जाती है? उन्होंने मुझे दो घंटे समझाया. हम विधि ज्ञान तो ले लिए लेकिन बात अब मंत्र पाठ पर अटक गई. अरे जब पढ़ना आये तब तो मंत्र पढेंगे.
तभी हमें शोले फिलम का जय और बीरू का सीन याद आ गया. बीरू कहता है हम एक-एक, दस-दस पे भारी पड़ेंगे और फिर जय से कहता है, "कंही ज्यादा तो नहीं बोल दिया. तब बीरू कहता है "अरे जब कह ही दिया है तो देख भी लेंगे". जब हमने भांवर का ठेका ले ही लिया तो देखा जायेगा. निपटा के ही आयेंगे.
अब अक्षय तृतीया को चल दिये विवाह संपन्न कराने. सब तैयारी करके दूल्हा दुल्हन को बैठा कर जैसे ही हमने मंत्र पढना शुरू किया तभी एक बोला .............
"महाराज क्या पढ़ा रहे हो?"
हमने कहा "मंत्र पढ़ रहे हैं और क्या?"
तो वो बोला " ये मंत्र नहीं है. ये तो आप हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं. इससे क्या शादी होती है?
हमने कहा-" भैया पॉँच सौ रूपये में क्या बेद पढने वाला महाराज मिलेगा? अगर तेरे घर में बहु को ठहरना है तो हनुमान चालीसा से ही ठहर जाएगी, नहीं तो गुरु वशिस्ठ को भी बुलाने के बाद भी नहीं रुकेगी.............
जजमान ने सोचा की महाराज नाराज हो कर मत चले जाएँ नहीं तो विवाह कौन करावेगा, जजमान ने बोलने वाले को धमका कर चुप कराया और हमें कहा महाराज आप नाराज ना हों, आपके मुंह से निकला हुआ हर वाक्य मंत्र है बस आप पढ़ते रहिये, बस फिर क्या था. हमने हनुमान चालीसा पढ़ के शादी करवा दी, माल अन्दर किया और आ गए.
कौन पुस्तकों में मगज खपाए. अपना उल्लू सीधा करने के लायक समझ ही लेते हैं. बस किसी ज्ञानी के पास जाकर पाँव लागी किये और मुंह फार के चेथी खुजाते हुए बैठ गए. फिर धीरे कोई एक प्रश्न ढील दिये. अब ज्ञानी महाराज हमको मुरख जान कर प्रश्न का उत्तर धारा प्रवाह दे देते हैं. अगर उसका उत्तर नहीं मिलता तो हमें चाय पिला कर कह देते हैं कि कल आना यार आज मूड नहीं कर रहा है.....
हम उसनके सामने एक प्रश्नवाचक जिन्न खड़ा करके रात भर चैन की नींद सोते हैं और उधर ज्ञानी जी रात भर जाग के ग्रंथों के पन्नो में अपना मूड खपाते रहते हैं. क्योकि कल उनको एक मुरख के सवाल का जवाब देना है. अगर नहीं दे पाए तो उनकी विद्वता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जायेगा. इज्ज़त का सवाल है....
अगर नहीं दे पाए तो हम तो गंवईहा मुरख ठहरे, पुरे गांव में घूम - घूम के कह आयेंगे सुबह-सुबह लोटा धर के कि ज्ञानी जी को तो कुछ नहीं आता फालतू विद्वान् बनने का ढोंग करते रहते हैं. अब ज्ञानी जी अपनी इज्जत बचाने के लिए रात भर जाग कर हमारे प्रश्न का उत्तर ढूंढते हैं, हम सुबह सुबह उनके घर जा धमकते हैं और गरमा-ग़रम चाय और पकोड़े के साथ मनवांछित ज्ञान भी पा जाते हैं. ज्ञानी जी की भी इज्जत बच जाती है और हमें भी बिना पढ़े ,बैठे बिठाये गुप्त ज्ञान मिल जाता है.
भैईया हम तो निपट गंवईहा ठहरे. एक दिन पान की गुमटी के सामने खड़े थे पान लगवाने के लिए. अम्मा ने भेजा था और कहा था सीधा जाना और आना बीच में कहीं रुक मत जाना. हम जब पहुंचे तो कई लोग वहां खड़े थे.
चंदू बोला- पंडित जी आप तो बहुत ज्ञानी हैं. हमारे भानजों की शादी है और विवाह करने के लिए कोई महाराज नहीं मिल रहे हैं. अक्षय तृतीया है. सभी पंडित बुक हो गये हैं. अगर आप ये शादी करवा देते तो हमारा बोझ हल्का हो जाता. ........
हम भी खाली थे. क्योंकि कोई तो हमारे पास आता ही नहीं था. इसलिए कि हम चौथी फेल, बस सुन सुन के याद कर लेते थे और जब कभी मौका मिलता दुसरे गंवारों के बीच अपने ज्ञान का छौंक लगा कर विद्वान् बन जाते थे. हमने भी सोचा कुछ कमाने का मौका मिल रहा है. काहे हाथ से जाने दें. बस हाँ कर दी.
अगला भी बहुत कांईया जजमान था. ये हम जानते थे. हमने वहीं पर सौदा पॉँच सौ एक रूपये में तय कर लिया. अब अम्मा का पान पंहुचा कर हम पहुँच गये ज्ञानी जी के पास और प्रश्न कर दिया की "विवाह में कितने मंत्र पढ़े जाते हैं और भांवर कैसे कराई जाती है? उन्होंने मुझे दो घंटे समझाया. हम विधि ज्ञान तो ले लिए लेकिन बात अब मंत्र पाठ पर अटक गई. अरे जब पढ़ना आये तब तो मंत्र पढेंगे.
तभी हमें शोले फिलम का जय और बीरू का सीन याद आ गया. बीरू कहता है हम एक-एक, दस-दस पे भारी पड़ेंगे और फिर जय से कहता है, "कंही ज्यादा तो नहीं बोल दिया. तब बीरू कहता है "अरे जब कह ही दिया है तो देख भी लेंगे". जब हमने भांवर का ठेका ले ही लिया तो देखा जायेगा. निपटा के ही आयेंगे.
अब अक्षय तृतीया को चल दिये विवाह संपन्न कराने. सब तैयारी करके दूल्हा दुल्हन को बैठा कर जैसे ही हमने मंत्र पढना शुरू किया तभी एक बोला .............
"महाराज क्या पढ़ा रहे हो?"
हमने कहा "मंत्र पढ़ रहे हैं और क्या?"
तो वो बोला " ये मंत्र नहीं है. ये तो आप हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं. इससे क्या शादी होती है?
हमने कहा-" भैया पॉँच सौ रूपये में क्या बेद पढने वाला महाराज मिलेगा? अगर तेरे घर में बहु को ठहरना है तो हनुमान चालीसा से ही ठहर जाएगी, नहीं तो गुरु वशिस्ठ को भी बुलाने के बाद भी नहीं रुकेगी.............
जजमान ने सोचा की महाराज नाराज हो कर मत चले जाएँ नहीं तो विवाह कौन करावेगा, जजमान ने बोलने वाले को धमका कर चुप कराया और हमें कहा महाराज आप नाराज ना हों, आपके मुंह से निकला हुआ हर वाक्य मंत्र है बस आप पढ़ते रहिये, बस फिर क्या था. हमने हनुमान चालीसा पढ़ के शादी करवा दी, माल अन्दर किया और आ गए.
तो का बताएं भैया! हम तो निपट गंवईहा ठहरे.
भैया साँची कहत हो
जवाब देंहटाएंअरे बहू टिकाऊ होय तो बिना मंतर कै
टिकट है...
हा हा मगर गवहियाँ नहीं मित्र अपना काम केवल गवईं से चला लें -गवहियाँ बोले तो गेस्ट -मेहमान !
जवाब देंहटाएंवाह, अरविंद मिश्रजी की बात पर ध्यान दिया जाये.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गवाईया होब इतना आसान काम नाही बा, ओकरे बिना बहुतै मेहतन करै का पड़त है। वैसन तो आपकै प्रयासवा बहुत नीक रहै।
जवाब देंहटाएंअरविंद भैया,
जवाब देंहटाएंगंवैईहा=ग्रामीण, देहाती, गाँव का होता है।
हा हा हा मस्त पोस्ट शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअरे भाई हो गया शब्द भरम का अपना महत्त्व है
जवाब देंहटाएंवैसे गंवैईहा में भ्रम जैसी स्थिति न थी
अब इस पोस्ट को पढ़ कर हम जैसे गंवईहा को भी एक रास्ता तो बता दिया आपने....आप जब चाय की तलब लगेगी......किसी के ज्ञानी के घर चल देगें प्रश्न दागनें....:))
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक पोस्ट है॥
भैयाजी ...एक ठो नाम हमारा भी जोड़ लिया जाए गंवईहा की लिस्ट में ....काहे के हमहो बिना कुछ नाम धाम के ज्ञानजी को प्राप्त करे हैं ....!!
जवाब देंहटाएंइसीलिये हमसे भी मंतर माँगने आये थे क्या गुरू?
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