4 फ़र॰ 2009

एक-समारोह की चल-रिपोर्ट

समारोह की चल-रिपोर्ट
ठीकराफोड़ एवं टीकाकरणसमारोह http://billoresblog.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html के बाद मेरी और से बात समाप्त कर दी गयी है .अब अंत में सत्य को अनावृत करना ज़रूरी है वास्तव में मुझे दुःख हुआ इस पूरी घटना के पीछे इर्शोत्पादक तत्व की भूमिका थी साथ ही शहर के कुछ ऐसे लोग बेनकाब हुए जो मेरे धुर विरोधी हैं ..नामचीन भी हैं ... मामला साफ़ है
डाक्टर अमर कुमार जी समीर लाल जी अनूप जी ,जबलपुर ब्लागर्स मीट तो एक बहाना था समीर भाई कई दिनों से जबलपुर में हैं व्यस्त भी रहते है अत: मित्रों की सलाह पर मीट रखी गयी थी जिसके बाद विद्रोही स्वर उभरे मैंने उसे नज़र अंदाज़ किया बाई ने वन मेन शो,बिलोरन यानि बिगाड़ करना,कलम से भी विकालांग (वास्तव में मुझे पोलियो है ), अखबारी मेटर को हूँ ब हूँ पोस्ट बनाने वाला(जबकि ख़ुद इस पेशे के महारथी हैं जिसका ज्ञान एक बार मैंने इनको करा दिया था ),कहा गया किंतु जब मैंने सच लिखना शुरू किया तो हालत ख़राब हो गयी श्रीमन की . तनवीर जाफरी / के नाम से मेरी एक रचना वेब पत्रिका में आने से मैंने जब आपत्ति दर्ज की तो ये महाशय मेरे साथ थे ..ताज़ा पोस्ट में उस घटना को लेकर इन्होने टीक टिप्पणी की फ़िर इनके सुर में कई सुर मिले जो किसी करीब आते बवाल की ओर प्रतीक्षा भाव से निहार रहे थे . कुछ ऐसे लोग भी जो मेरी आस्तीन में थे उकसाने लगे . यहाँ तक तो ठीक था किंतु जब मैंने अपनी विकलांगता का उपहास कराने वाले इन मित्र से ओर कैफियत माँगी तो बचने के लिए इनने शोर-शराबा शुरू कर दिया. हर शहर में गुटबंदी लाम बंदी है साहित्यकार यही सब कर रहें हैं , सो मेरी मंशा थी कि किताबों के साथ हिन्दी अंतरजाल पर छा जाए जबलपुर के कवि लेखक इससे लाभान्वित हों ओर कारपोरेशन सीमा से बाहर आएं . कोशिश भी की . किंतु "मुंडे-मुंडे मतिर भिन्ना" लोग इस विधा को तार तार कराने मौका देख रहे थे .......... जब उनको पता चला कि मौका है तीर चला दिया कान्धा मिला बन्दूक रखी ओर दाग दी. अब ये लोग कभी आप से मिलेंगे तो ब्लागिंग की भद्द पीटेंगे. भाई क्रोध इतना की खुली गुंडई भाषा का प्रयोग उस पर 25 जनवरी से लगातार आ रही उनकी पोस्टों ने मुझे हिला कर रख दिया. जाने कितने असम्मानित शब्दों का प्रयोग लगातार ..... तब मुझे मज़बूरन सामने आना पडा सामने आयी अभद्रता . अपने ब्लॉग का ट्रैफिक बढाने भाई ने हर हथकंडे अपनाए .... चर्चा में लिपटने के बाद थोडी समझ आयी . इनने एक ब्लॉग पर टिप्पणी के साथ ब्लागर को लिंक हटाने की चेतावनी तक दे डाली . मुझे ज्ञात हुआ कि मीट के पहले बने काकस ने मेरी 26 जनवरी की सरकारी व्यस्तताओं के चलते बाकायदा संगठित रूप से मुहिम चला दी.जिन्होंने भी इन भोले महाशय को भड़काया है वे सच कितने महान हैं इस बात का पता इनको जल्द लग जाएगा ...
आप जो भी कहें हिंसा किस हद तक सही जा सकती है..........?अब बताएं कितने गाल ला दूँ इनकी तृप्ति के लिए फ़िर भी सीनियर्स की सलाह पर मैं विवाद को अपनी और समाप्त कर चुका हूँ सो चिट्ठा चर्चा में इस पर आधारित टिप्पणियाँ बंद कर दीं जाना ही उचित होगा,

4 टिप्‍पणियां:

  1. मैं विवाद को अपनी और समाप्त कर चुका हूँ


    -स्वागत योग्य कदम एवं आपको साधुवाद.

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  2. बेहतर है आप मेरे बारे में न लिखे अन्यथा मै चुप नही रहने वाला समझ ले . अपने कल लिखा था बड़े भाई क्षमा करे और रोज रोज न लिखे . मै भी एक सरकारी नौकर हूँ आपकी तरह . पर यदि आप विवाद को तूल देना चाहते है देते रहिये रोज इंतजार रहेगा और ये कलम जैसी ढाई सालो से चल रही है वैसी ही निरंतर चलती रहेगी , हाँ एक बात फ़िर से निवेदन है आप किसी को खोदना चाहते है तो नाम लेकर खोदे . मुझे जबलपुर के ब्लॉगर से कोई लेना देना नही और आपसे भी लेना देना नही है . आप हजार बार मीट करे सभी ब्लागरो को साथ लेकर चले तो अच्छा है मुझे कोई आपत्ति नही है मगर यदि इस तरह से लिखते रहे तो आगे बात बहुत बढ़ सकती है कृपया नोट करे.
    महेन्द्र मिश्र

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  3. मैं विवाद को अपनी और समाप्त कर चुका हूँ जे बड़ा भला काम किया भाई आपने। नर्मदा मैया कित्ती तो खुश होंगी। मौज मजे से रहिये। लड़ाई-झगड़ा भी करिये लेकिन मस्त रहिये। ये टाइम खोटी करने वाली कहा सुनी में मजा नहीं आ रहा इसलिये इसे तो इधरिच दफ़ना दीजिये। आजकी चर्चा पढिये, तब आगे बढ़िये!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!