15 अग॰ 2007

"काय.... आज आ रये हो का...!"

उनकी आवाज़ थी दूसरी ओर से , फ़ोन पर वो जो जनता के दुख दर्द के हिमायती लगते थे ,थे की नहीं ये दो लोग जानते एक तो वो ख़ुद जो फ़ोन पर दूसरी ओर से बोल रहे थे और दूसरा उनका भगवान . अब आपसे क्या छु पाएँ और क्यों छु पाएँ उनका नाम वो बेचारे नाम के लिए ही पैदा हुए, मरेंगें भी तो चलिए उनका नाम रख ही लेते हैं -"गोपाल जी" गोपाल जी नगर पंचायत में पार्षद हैं रसूख वाले हैं हम हैं कि उनके सामने पिद्दी से लगते हैं.
तो वो यानी गोपाल जी कई दिनों से मुझे अपने सियासी ज़लवे दिखाने बुला रहे थे.
तो वो यानी गोपाल जी कई दिनों से मुझे अपने सियासी ज़लवे दिखाने बुला रहे थे. सो तय हुआ कि आज यानी 15 अगस्त पर हम गोपाल जी के पास जाएँगे. गाँधी जी के देश में लोग जो गोपाल जैसे होते हैं अमूल निधि होते हैं , उनका होना इस दुनियाँ के लिए कितना ज़रूरी है मेरे और उनके वार्तालाप से आपको चल ही जाएगा:- "" काय आज आ रये हो का" "हाँ, भैया आज ज़रूर आना तो है " "आज हम ज़रा बिज़ी हैं" "काहे में ...?" "अरे..! का बताएँ जनता मानै नई…! "
दो जगह की अध्यक्षता है अपनी.. दो-तीन बज जै हैं आप तो आ जाओ टाइम लेकर अइयो...? गोपाल बाबू ने कस्बे में अपने रसूख का समाचार सुना दिया. कस्बाई मानसिकता के प्रतिनिधि गोपाल जी फुल टाइम मोहल्ला छाप नेता गिरी करतें हैं. अब तो लोग बाग़ उनसे डरने लगे हैं तभी तो उनको अध्यक्षता का बुलावा आने लगा. रसूख मे इज़ाफ़ा होने की सूचना...!
मुझे उनकी गाँधी-टोपी, सफ़ेद झक पोशाक ओँठो पे वतन परस्ती का दिखावा दिल में वो ही काईंयाँ पन जो हम सब आसानी से बांच सकते हैं. गोपाल जी जैसों को आज़ादी के अर्थ समझाने की ज़वाबदेही लादने वाले लोगो कुछ समझ आया .

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!