26 जून 2008

श्रद्धा जैन जी की भीगी गज़लें

ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली
ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली
थी जिसकी आरज़ू वही दौलत नहीं मिली

जो देख ले तो मुझसे करे रश्क ज़माना
सब कुछ मिला मगर वही क़िस्मत नहीं मिली

घर को सजाते कैसे,ये हर लड़की हैं सीखती
ज़िंदा रहे तो कैसे नसीहत नहीं मिली

किसको सुनाएँ क़िस्सा यहाँ, तेरे ज़ॉफ का
कहते हैं हम सभी से कि आदत नहीं मिली

देखा गिरा के खुद को ही क़दमों में उसके आज
“श्रद्धा” नसीब में तुझे क़ुरबत नहीं मिली
श्रद्धा जैन के ब्लॉग से साभार

2 टिप्‍पणियां:

  1. श्रृद्धा जी के यहाँ आज ही तो पढ़ी है.

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  2. जो देख ले तो मुझसे करे रश्क ज़माना
    सब कुछ मिला मगर वही क़िस्मत नहीं मिली
    ye paktiya kuch khas pasand aai. likhate rhe.

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!