31 मार्च 2009

एक ख़त प्रशांत जी के नाम


पंडित जी , श्रीयुत ईश्वरदास जी रोहाणी , श्रीमती रोहाणी
p ये अनुशासित जन
प्रिय मित्र प्रशांत कौरव जी
मित्र के उपरोक्त मेल से प्रभावित तो हूँ किन्तु आपको याद होगा की उस दिन जब मन हताश उदास सा था नितिन,आप और योगेश के कारण संबल मिला . जिससे आयोजन का स्थगन टल गया था. वरना टल जाता और हजारों निगाहें मुझे घूरतीं सैकडों हाथों की शरारती अंगुली मुझे तंज़ करती इंगित कर औरौं को बतातीं की जी ये हैं "फ्लॉप एंड फ्रॉड" किन्तु ईश्वरीय प्रेरणा से आप सब आए आगे मुझे सम्हालनें मैं था ही नहीं वहां वहां थे आप जिनने मेरे लिए बुने थे सपन कुछ मेरे सपने भी थे जिनको आपने ही तो रंग-रोगन कर सजीला बना दिया था ... सभी तो मेरी जीत चाह रहे थे सभी बाबा का काम कर रहे थे . सभी ने मुझे जिताया ! याद होगी उस एकल नाट्य "सुसाईटनोट "की प्रस्तुति का दिन जो भी हुआ तरंग प्रेक्षागार वो भी था खचाखच मैं आपकी सफलता से उतना ही रसीला हो गया था जितना नहीं उससे भी अधिक परिमाण आप सब . मुझे आज स्नेह दे रहें हैं ...अन्दर की बात ये है की "मैं तो 08 मार्च 2009 तक हारा बैठा था "चार दिन में कोई विजय हासिल कर सकता है नहीं कभी नहीं बस विजय के पीछे जो था उसे चमत्कार कहतें हैं जिसे आपने भी तो महसूस किया था . आप को नहीं लगा सारा काम साईनाथ महाराज कर रहे थे . सव्यसाची थी उनकी दुआऐं थी आभास ने बताया "चचा .... आज का शो सबसे बेहतर था " और आज ही संजय का फोन था उसने बताया:-"भैया जब आप मंच से बोल रहे थे दादा रोहाणी सहित कई आँखें नम थीं " मुझे याद नहीं मैंने क्या बोला था बोल कोई और रहा मानो मेरे मन में बैठकर मुझे तो तीन मिनट का भाषण देना था सब भूल गया मंच पर जाते ही. जो उस दिन मेरे ह्रदय में था वो "साईं" के अलावा कोई था .

1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!