मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद
संजीव 'सलिल'
भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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bahut sundar. hindi ko maathe ki bindi banaaye
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात...हिन्दी की जय हो
जवाब देंहटाएंmaine pasand kar liyaa aap bhee click keejiye
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