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5 दिस॰ 2007

उफ़...ये चुगलखोरियाँ....!!


मुझे उन चुगली पसंन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं जो चुगल खोरी के शगल से खुद को बचा लेतें हैं ।। इंसान नस्ल के बारे में किताबें पड़ते है ....!!
अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने चुगली करने वालों की आप किसी तरह की सज़ा दें न दें कृपया उनके सामने केवल जानवरों की तारीफ़ कीजिए। कम-अस-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए । आप सोच रहें होंगें मैं भी किसी की चुगली भड़ास पर पोस्ट कर रहा हूँ सो सच है ..परन्तु अर्ध-सत्य है .. परन्तु ये चुगली करने वालों की नस्ल के समूल विनिष्टी-करण की दिशा में किया गया एक प्रयास मात्र है।
अगर मैं किसी का नाम लेकर कुछ पोस्ट करूं तो चुगली समझिए । यहाँ उन कान से देखने वाले लोगों को भी जीते जी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगा जो पति धृतराष्ट्र का अनुकरण करते हुए आज भी अपनीं आँखें पट्टी से बाँध के हस्तिनापुर में की साम्राज्ञी बनी कौरवों का पालन पोषण कर रहें है। मेरा सचमुच उनकी चतुरी जिन्दगी में मेरा कोई हस्तक्षेप कतई नहीं है । होना भी नहीं चाहिए । पर एक फिल्म की कल्पना कीजिए जिसमें विलेन नहीं हों हुज़ूर फिल्म को कौन फिल्म मानेगा ...? अपने आप को हीरो-साबित करने मुझे या मुझ जैसों को विलेन बना के पहले पेश करतें है। फिर अपनी जोधागिरी का एकाध नमूना बताते हुए यश अर्जित करने के लिए मरे जातें हैं ।
ऐसा हर जगह हों रहा है....हम-आप में ऐसे अर्जुनों की तलाश है जो सटीक एवं समय पे निशाना साधे ...... हमें चुगलखोरों की दुनियाँ को नेस्तनाबूत जो करना है.....आमीन......
कबिरा चुगली चाकरी चलती संगै-साथचुगली बिन ये चाकरी ,ज्यों बिन घी का भात ।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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