इश्क कीजे खुलकर सरे आम कीजे भला पूजा भी कोई छिप-छिप के किया करता है..?
मेरे महबूब तुझसे इज़हार-ए-तमन्ना न कर सकने के कारण जो भी थे उन में उस वक़्त की मेरी मज़बूरियाँ थीं . और अब गुलाब तुमको भेजना ग़लत है .... तब भी तुम मुझे अक्सर याद आ ही जातीं हो ...? क्यों क्या मेरी बेबसी को तुम समझ न सकी थीं ...... तुमने ये गीत मुझे सुनाने के बहाने कितने बार गुनगुनाया होगा ?
और उन दिनों मैंने ये गीत कितनी बार गाया समझा तुम समझ न सकीं ।
"मेरे महबूब'' माना की वो दौर सादगी का था संजीदगी का था फ़िर मुझसे भी तो भूल हुई गोया मैं ये
गीत गा देता और तुम समझ जातीं ये गीत गातीं फ़िर मैं डोली लेकर तुम्हारे आँगन आने बेताब हो जाता .
ये सब न हुआ कोई बात नहीं तुम मेरी थीं हो और रहोगी । अब देखो न हमारे बच्चे बड़े हो रहें हैं दिन भर की बेकाबू व्यस्तताओं के बीच मनाएं प्रेम दिवस रोज़ मनाएं न बजरंगीयों का डर है यहाँ न तालिबानों का .... मेरे रहबर तुम एक मुसलसल प्रेम गीत की भूमिका हो मुझे मत भूलना अब मैं ऐसे मदिर और रूमानी - से ऊपर आ गया हूँ तुम भी प्रेमिका नहीं मेरी आत्मा हो चुकी हो आओ हम प्रीत में खो जाएँ । औरों को मणि-कंचन-संयोग की बानगी बताए ।
*हर *अन्दर लाइन शब्द *के *पीछे*एक रूमानी*गीत*सुनिए*और प्रेम दिवस*मनाइए *
" सभी गीतों को सुन कर बस वाह वाह वाह और खास कर " मेरे महबूब कयामत होगी अज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी....इस गीत से मुझे दीवानगी की हद तक प्यार है.... सभी गीतों के लिए आभार.."
जवाब देंहटाएंRegards
Shukriya
जवाब देंहटाएंseema ji
हम तो बस इतना ही कहेंगे मुकुल जी के हम सीमाजी की टिप्पणी में कही गई हर बात से सहमत हैं। लाजवाब गीत और बेहतरीन सलाह हा हा। आभार।
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