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मनु श्रीवास्तव आई ए एस
एस० डी ० एम ० ,सिटी मजिस्ट्रेट.जबलपुर
यह पता था उनका जबलपुर में . प्रोबेशनर थे . मुझे भी सरकारी नौकर हुए तीन बरस हुए थे .मध्य-प्रदेश महिला आर्थिक विकास निगम ने पहली बार भोपाल के स्थान पर संभागीय स्तर पे मेला आयोजित किया । मेले की ज़वाबदेही कलेक्टर श्री विवेक डांड जी ने सौंपी थी युवा प्रोबेशनर मनु जी को । मैंने आई ए एस अधिकारीयों के बारे में जो देख सुना था सो मेरी राय भी वैसी ही थी जैसी एक आम अधिकारी की होनी चाहिए। सर से दूरी भी उसी अवधारणा के कारण मैंने बना ली थी । मेरे एक बाबू साब ने मुझे चेताया भी था कि अधिकारीयों से कितना पास रहें कितना दूर ... सो उनके अनुभव को मान्यता देते हुए अपने राम बस सर से दूर रहने की कोशिश मैं थे .... और सर थे कि ज़बरदस्त प्रतिभा के धनी ज़्यादा देर दूरी न बना सका उनसे । बस अधिकतम दो घंटे में सारे भ्रम दूर कर दिए मनु जी ने । मेरे उनके बीच कोई फासला न था बस 93 का ममत्व-मेला उनके निर्देशन में शुरू हुआ ।
उदघाटन सत्र में ही कलेक्टर श्री विवेक डांड जी के नाम का संचालन में उल्लेख न करने की भयंकर तम त्रुटि मुझसे संचालन के दौरान हुई किंतु मुझे क्षमा दान मिला बिना माफी मांगे इस भयंकर भूल का रिज़ल्ट कुछ भी हो सकता था जिसका एहसास भी मुझे मेरी एक सहयोगी श्रीमती माया भदौरिया ने कराई किंतु भूल तो भूल थी घबराया हुआ में जब नोडल-आफिसर मनु सर के सामने आया तो उनने मुझे इतना उत्साहित किया कि मन से अपराध बोध कहाँ गायब हुआ मुझे नहीं मालूम।
"आप,इप्टा का कोई नाटक करवा सकते हो ?"
"जी,सर लेकिन ये नाटक शासकीय "
"न भाई ऐसा नहीं है सामाजिक विषयों पर होते है "
मनु सर के निर्देश पर इप्टा/विवेचना के श्री अरुण पांडे जी से अनुरोध किया । अरुण भाई ने अपने अन्य प्रस्तावित नाटकों कि तिथियों में संशोधन कर लगातार तीन नाटकों का मंचन कराया ।
भंवरताल गार्डन में महिला उद्द्यमियों के उत्पाद और सांस्कृतिक छटा का ऐसा रंग जमा कि पूरा शहर उमड़ पडा था । एक नन्हीं बालिका दिव्या चौबे के नृत्य को उसी मंच से पहली बार देखे गए तो हास्य व्यंग्य के रंग भी बिखरे . रामलाल चडार राजस्व निरीक्षक के बुन्देली नृत्य,संजय खन्ना की कोरियोग्राफी,इंजीनियरिंग कालेज के युवाओं की टोली, स्कूली बच्चों की प्रस्तुतियां और जाने कितने कार्यक्रम लगातार पाँच दिन तक जारी थे । कुल व्यापार भी उस दौर में पाँच लाख के आसपास। जबलपुर ममत्व-मेलामें ही जबलपुर के कारीगरों नें मिट्टी के वाटर-फिल्टर की प्रविधि सीखी। छिन्दवाडा की फेनी कास्वाद अब तक बाकी है। याद आया मनु सर आपको
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एस डी एम होने के नाते गुमाश्ता क़ानून का पालन कराना उनका दायित्व था । सो एक रविवार पापा की दूकान में साफ़ सफाई का काम कराने गया । तभी कलेक्टोरेट से पीली बत्ती वाली जीप ऐन बिल्लोरे ब्रदर्स के सामने रुकी मैं लुंगी-बनियान पहना दूकान में रखी बरनियों को साफ़ कर रहा था जीप से उतरे सैनिक ने लगभग मुझे डपट हुए कहा साहब बुला रहे हैं ...!
जैसे ही मैं पहुंचा -वे हतप्रभ मुझे देखते रह गए ... क्यों दूकान ॥?
जी सर, पापा रेलवे से रिटायर्ड हैं समय के सदुपयोग के लिए दूकान डाली है ...... आज संडे का दिन दूकान की साफ़ सफाई ........... ?
ठीक है, शटर आधा बंद करके पापा के काम में मदद करिए ।
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उनकी सादगी और सहजता पर सब मोहित थे . मैं जान चुका था कि वे कवि ह्रदय साहित्य प्रेमी हैं किंतु कभी बैठक का मौका नहीं मिला. छिंदवाडा में पदस्थी के दौरान मनु सर से फोन पर शासकीय काम के सिलसिले में चर्चा हो जाया करती थी । फ़िर मुझे भी ट्रांसफर की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा । सिलसिला थम सा गया । कल ही प्रशांत कौरव ने प्रज्ञा जी के कुशल क्षेम का ज़िक्र किया विष्णु बैरागी जी की पोस्ट में विवरण मिला आई डी सहित सो बता दूँ जी कि आज ही मनु सर याद आए थे जब मैं न जा सका बिटिया दिव्या चौबे की शादी में । विष्णु जी संयोग ही कहिए आपकी पोस्ट,बीते दिनों का ममत्व मेला, १९९३ की यादें सब न्यूज़-रील सी आंखों के सामने से गुज़र रहीं हैं आज उसी दिव्या की शादी भी थी जिसने तब शुरुआती मंचीय प्रस्तुति दीं थीं जब मनु सर जबलपुर में थे ।
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सर याद होगी ये कविता "
दिन में सरोवर के तट पर
सांझ ढ्ले पीपल "
सूर्य की सुनहरी धूप में
या रात के भयावह रूप में
गुन गुनाहट पंछी की
मुस्कराहट पंथी की बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
हर दिन नया दिन है
हर रात नई रात
मेरे मीट इनमे
दिन की धूमिल स्मृति
रात की अविरल गति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
सपने सतरंगी
समर्पण बहुरंगी
जीवन के हर एक क्षण
दर्पण के लघुलम कण
टूट बिखर जाएँ भी
हर कण की "क्षण-स्मृति"
हर क्षण की कण स्मृति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
दिन में सरोवर के तट पर
सांझ ढ्ले पीपल "
सूर्य की सुनहरी धूप में
या रात के भयावह रूप में
गुन गुनाहट पंछी की
मुस्कराहट पंथी की बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
हर दिन नया दिन है
हर रात नई रात
मेरे मीट इनमे
दिन की धूमिल स्मृति
रात की अविरल गति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
सपने सतरंगी
समर्पण बहुरंगी
जीवन के हर एक क्षण
दर्पण के लघुलम कण
टूट बिखर जाएँ भी
हर कण की "क्षण-स्मृति"
हर क्षण की कण स्मृति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
बहुत मनमोहक पोस्ट लिखी है
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम
vinay ji
जवाब देंहटाएंshukriya
बड़ी शिद्दत से याद किया है मनु जी को और उनके साथ बिताये पलों को...
जवाब देंहटाएंकविता बहुत पसंद आई..बाकी रह जाती है..
Sameer bhai
जवाब देंहटाएंsach hai
shukriya
गिरीशजी!
जवाब देंहटाएंक्या कहूं? आपने तो सवेरे-सवेरे भिगो दिया मुझे। निहाल कर दिया। मेरा और मेरी पोस्ट का मान बढा दिया। आभारी हूं आपका।
यह 'ब्लाग' की महिमा ही है कि अपरिचित/अनजान लोग परस्पर शुभाकांक्षी बन जाएं और चलें एक दूसरे के साथ-साथ।
चिट्ठाकरों की वंश-बेल इसी तरह बढती होगी।
विष्णु जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
मुझे कई प्रशासनिक अधिकारीयों के साथ काम का अवसर मिला
उनमें जिनके लिए मन में मानवीय गुणों के कारण सम्मान है उन
में से हैं एक मनु जी
बेहद संवेदित सजग और "कानों से न देखने वाले" मनु जी है...!
आप ने आभारी बनाया है मुझे जो उनकी याद ताज़ा करा दी
सादर
बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है।
जवाब देंहटाएंmanish bhai
जवाब देंहटाएंaapake fon se pata chala ki agyatanand aap hain
aap bhee ek blog banaa leejie
tippani ka abhar
bali ji sameer ji vinay bhai
Thank's
Sahi kaha mukul ji
जवाब देंहटाएंaap ke दिन की धूमिल स्मृति
रात की अविरल गति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।