घुप अंधेरा है कोई दीपक जलाना होगा ।
इन अंधेरों से अब आंख मिलाना
होगा।।
मेरे वज़ूद की वज़ह मैं ही हूं तू नहीं -
तेरा ऐलान हर दीवार से मिटाना होगा ।।
रश्क़ न कर,चल साथ मेरे कुछ दूर तलक
इक पैर का जलवा तुझको दिखाना होगा।।
बिन सिक्कों के तेरा जादू , जादू कहां ?
तेरी बाजीगरी पे अब सिक्के लुटाना होगा ।।
तू टपकती हुई छत है किसे मालूम नहीं?
अबके बरसात के पहले, चूने से
भराना होगा ।।
जहां देखो वहां कांटों के सिवा कुछ भी नहीं-
जलेगी आग तो, इन्हें खाक में जाना होगा।।
गिरीश
बिल्लोरे मुकुल
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!