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25 मई 2007

देह राग से गीत अटे हैं

देह राग से अटे हैं ,जिधर भी देखो जिस्म सजे हैं
नकली मुस्कानों के डेरे,हर चेहरे पे आज लगे हैं !
ये व्यापारिक जीवन देखो ,योगी महलों के वासिंदे
ज्ञानी, ध्यानी, आम आदमी -केवल अदने से कारिन्दे !!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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