16 सित॰ 2007

भाई विकास से बातचीत


विकास परिहार से आमने-सामने बात कर के लगा:- "विचार ख़त्म नहीं हुए लोग-बाग़ कह रहे हैं विषय ख़त्म हो गए" कुछ लोग तो मान भी गए की विषय चुक गए ! कुछ लोग अपने कहे को ब्रह्मवाक्य के रूप में देखतें हैं...कुछ इसके लिए तलवार भी भांजने लागतें हैं.वो बेचारे ये नहीं जानते की दुनियाँ से विषयों की विदाई कभी नहीं होगी.हजूर,लोगों का क्या तुक्के-पे-तुक्का लगा रहे हैं भगवान ने जीभ दी है दिमाग [थोड़ा] दिया सो थोड़ा सोचा खूब बोल बक दिया,मोहल्ले-मोहल्ले "खतीबे-शहर" होगे हैं हर मदक्की दार्शनिक की वाणी में प्रवचन देता नज़र आ रहा है हमको , अब बाबू प्रहलाद पटेल को ही लीजिये [डाक्टर प्रहलाद पटेल का अशोभनीय बर्ताव ]
किसी के सामने कुत्ते की तरह दुम कोई भी हिलाए मेरे संस्कार में श्रीमान ये नहीं सो कइयों का मुझे गाली देना स्वाभाविक ही है । मेरा युध्द व्यक्तिगत नहीं है उनका व्यक्तिगत था , मैं अपने लिए नहीं जीता अगर किसीको मेरे न्याय-प्रिय होने से कोई आघात मिले तो मेरा क्या कसूर ,
मोह के मद में अंधे धृतराष्ट्रों के वंश के अंत के लिए केवल ५ पांडव ही चाहिऐ
[०१] सत्यवादी-भाव [२] पराक्रमी व्यक्तित्व [३] लक्ष्य निर्धारण क्षमता
[४] चतुर रणनिति संयोजक [५] सफल समन्वयन क्षमता
यानी स्वार्थ और शोषण के शमन की पूरी तैयारी कर चुकी "एक-व्यक्ति" सेना ।
मेरा संकेत स्पष्ट है भाई :-"हमारे हाथों को भारतीय संविधान ने पूरी ताक़त दी है , जब हम वो जो आम आदमीं सरकार बदल सकतें हैं तो गलीच विचारों को "





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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!