9 अक्तू॰ 2007

भिक्षुक



गाँव में रोज़गार न मिला,योग्यता थी संस्कृत में एम०ए० संविदा नियुक्ति,गरीबी-रेखा, लोन-वोन, हर कोशिश में नाकाम उसने सोचा शादी हो गयी बच्चे तो पालना ही है...?
चुनाव भी पास नहीं हैं कोई काम धाम की दूर तक कोई उम्मीद नहीं राजेश ने उठाई अधारी और निकल पड़ा भिक्षा मांगने पास के शहर में सोचा था गाँव वालों को बता दूंगा शहर मे रोटी कमा रहा हूँ.....!
पॉश-कालोनी में राजेश ने पुकार लगाईं-"देवी सीता,जमुना, जशोदा एक मुट्ठी आटा देदो देवी....!"
किसी घर का दरवाज़ा न खुला हताशा मन की झोली मैं लिए लौटा भिक्षुक पेड़ के नीचे भाग्य को कोसता थकान से चूर सो गया .
नींद मे सपना सपने में यक्ष,यक्ष है तो सवाल भी ...?
नहीं..!
इस युग के यक्ष ने पूछा नहीं सवाल बल्कि उसे बताया....कान में हौले से. कुछ कहा
यक्ष ने
भिक्षु लौटा उलटे पाँव शहर की उसी पॉश-कालोनी में अबके उसने पुकारा -" मल्लिका जी,ऐश्वर्या जी,केटरीना जी, बिपाशा जी दो-मुट्ठी आटा मिले .....!
घरों के द्वार धड़ाधड़ खुल गए सभी के हाथों में इस भले भिखारी के लिए थी भिक्षा ......!
संस्कृत में एम०ए० भिक्षुक, यक्ष और रमणियों के प्रति आभार और अधारी का भार उठाए चल पड़ा गाँव के ओर वापस।
चिट्ठाजगत

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!