25 जून 2008

प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम

प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम

प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम,
बाजे मन अकुलाए।
जोगी मन को करे बिजोगी,
नैनन नींद चुराए।।

बोले जो मिसरी रस घोले,
शकन हरे पूछ के कैसे?
बसी श्यामली मन में,
धड़कन का घर हिय हो जैसे,
मिलन यामिनी, मद मदिरा ले, जग के दु:ख बिसराए।

कटि नीचे तक, लटके चोटी,
चंद्र वलय के से दो बाले।
ओंठ प्रिया के सहज रसीले,
दो नयना मधुरस के प्याले।
प्रीति प्रिया की, धवल पूर्णिमा, नित अनुराग जगाए।

नयन बोझ उठाए क्षिति का,
तारों में अपने कल देखे।
इधर बावला धीरज खोता -
गीत प्रीत के नित लेखे।।
प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।

5 टिप्‍पणियां:

  1. नयन बोझ उठाए क्षिति का,
    तारों में अपने कल देखे।
    इधर बावला धीरज खोता -
    गीत प्रीत के नित लेखे।।
    प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।
    wah alankarik alfazon se saji priya ki cham cham bahut sundar hai badhai.

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  2. aapki priya bhut sundar hai. ati uttam likhate rhe.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम,
    बाजे मन अकुलाए।


    -बहुत उम्दा!! खूबसूरत गीत..

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!