22 जुल॰ 2008

मन मोहन संग रास-रस,अंग-अंग बस जाय!
अनुभव मत पूछो सखि ,मोसे कहो नै जाय !!
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देखूं तो प्रिय के नयन,सुनूं तो प्रिय के गीत !
हिय हारी मैं तुम कहो, तभी तो मोरी जीत !!
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मैं प्रियतम की बावरी,प्रीत रंग चहुँ ओर !
आया सावन बावला,देने पीर अछोर !!
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3 टिप्‍पणियां:

  1. देखूं तो प्रिय के नयन,सुनूं तो प्रिय के गीत !
    हिय हारी मैं तुम कहो, तभी तो मोरी जीत !!


    --बहुत सही!!

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  2. Girishbhai

    It is a very good poem.
    Can you tell the meaning of Achchor plz?
    -Thank you & Rgds.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!