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27 दिस॰ 2008

माँम भिक्षामदेहि

10 टिप्‍पणियां:

  1. सच है आज की यही मानसिकता है |

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  2. वे सब आज की आधुनिक महिलाएँ थीं. उनके अहम की तुष्टि तभी हुई जब उन्हें आजकल की ख्याति (?) प्राप्त अभिनेत्रियों से जोड़ा गया.आभार.

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  3. कहानी बहुत बढ़िया लगी . लिखते रहिए . धन्यवाद्.

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  4. आज के प्रगतिशील समाज पर एक अच्छा व्यंग है. आज की प्रगतिशील नारी सीता नहीं केटरीना बनना चाहती है.

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  5. भाई साहब
    नमस्कार
    टिप्पणीयों के लिए सभी मित्रो का आभार

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  6. बिल्लोरे जी
    आप की कलम में दम है
    बधाइयां

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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