30 जन॰ 2009

बापू से


हे राम !
और जय श्री राम में अब अंतर हो गया है
र+अ +म+अ=राम अब सिर्फ़ शब्द रह गया है !
जो भी था राम उस राम में से खो गया है !
तब से अब तक मैं ही पिट रहा हूँ !
चल नहीं बापू मैं तो घिसट रहा हूँ !!
आम आदमीं हूँ न !
ख़ास को मिलने वाले प्रिवलेज से वंचित हूँ
बापू ये कहना :-" मिलने पर कुंठित हूँ "
बापू
धर्म,वर्ण,वर्ग का शिकार
प्रजातंत्र के ध्वज-वाहकों का सामंती व्यवहार !
बताओ बापू.... अब कितने गाल कहाँ से लाऊं
अपनी इस पीर को कैसे बताऊँ
भरे और भारी मन से तुमको याद कर रहा हूँ......!

6 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!