6 मार्च 2009

होली तो ससुराल

बावरे फकीरा एलबम की लांचिंग में व्यस्तता के कारण पुराना हास्य ठेल रहा हूँ ......... ताली बजाओ भाई जी
होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर
सरहज मिश्री की डली,साला पिंड खजूर
साला पिंड-खजूर,ससुर जी ऐंचकताने
साली के अंदाज़ फोन पे लगे लुभाने
कहें मुकुल कवि होली पे जनकपुर जाओ
जीवन में इक बार,स्वर्ग का सुख पाओ..!!
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होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर
न्योता पा हम पहुंच गए मन में संग लंगूर,
मन में संग लंगूर,लख साली की उमरिया
मन में उठे विचार,चलॆ लें नयी बंदरिया .
कहत मुकुल कविराय नए कानून हैं आए
दो होली में झौंक, सोच जो ऐसी आए ...!!
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होली तो ससुराल की ,बाक़ी सब बेनूर
देवर रस के देवता, जेठ नशे में चूर,
जेठ नशे में चूर जेठानी ठुमुक बंदरिया
ननदी उमर छुपाए कहे मोरी बाली उमरिया .
कहें मुकुल कवि सास हमारी पहरेदारिन
ससुर “देव के दूत” जे उनकी पनिहारिन..!!
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सुन प्रिय मन तो बावरा, कछु सोचे कछु गाए,
इक-दूजे के रंग में हम-तुम अब रंग जाएं .
हम-तुम अब रंग जाएं,फाग में साथ रहेंगे
प्रीत रंग में भीग अबीरी फाग कहेंगे ..!
कहें मुकुल कविराय होली घर में मनाओ
मंहगे हैं त्यौहार इधर-उधर न जाओ !!

1 टिप्पणी:

  1. आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
    बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!