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10 अप्रैल 2009

लगाए फिरते हैं तस्वीरें शहीदों की भुनाएंगे

सियासत तेरे ज़लवे देखे हैं
हमने मुफलिसों के तलवे देखे हैं
दफ़न करने इस लाश के पहले
होते बीसियों बलवे देखें हैं
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इश्क वफ़ा इकरार ऐतबार
सजे उस की जुबाँ पे
इससे बड़ा झूठ क्या होगा ?
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लगाए फिरते हैं तस्वीरें शहीदों की भुनाएंगे
ये नेता हैं इनको तिजारत भी सिखाई है
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1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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