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15 अक्तू॰ 2009

काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं

                                                                       उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार मेरे विरुद्ध जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान क के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ?नाम सहित छपे इस समाचार से मैं हताशा से भर गए  उन बेईमान मकसद परस्तों को अपने आप में कोस रहा था  किंतु कुछ न कर सका राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही मेरी नियति है.
एक दिन मैं एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ?
आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..!
तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर मैने  अपनी उपलब्धियों को गिनाया जिनको  सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा  भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?
मैं -अनोखी बात…….?
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो….?
भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया
संजय:-इस बात का प्रमाण,है कोई !
मैं:-……………..?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापूं भैया जी न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा जबरदस्त काम …..?

गूगल जी से साभार
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या ?,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो यह घटना मेरे जीवन की अनोखी घटना थी  जीवन का यही टर्निंग पाइंट था मैं निकल पडा कुत्तों की तलाश में . पग पग पर कुत्ते ही मिले सोचा काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं    को किंतु मन बार बार सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था "भई तुम तो आदमीयत मत तजो "

7 टिप्‍पणियां:

  1. छपने के लिये खपना तो पडेगा ही

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  2. कुत्तो को क्या काटना इन्हें अपन बझिया बनवा देंगे आदेश तो दे.......... ये संजयजी कौन है ?

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  3. बहुत सही...वाकई..महेन्द्र जी की जिज्ञासा ही मेरी भी है..संजय कौन है.. :)

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  4. वर्मा जी
    मिसिर जी
    समीर भाई
    सादर अभिवादन
    इस आलेख के सभी नाम व्यक्ति काल्पनिक है
    संजय नाम उस व्यक्ति का प्रतीक है जो
    महाभारत काल का प्रथम पत्रकार रहा है
    वर्मा जी आभारी हूँ

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. बढिया पोस्ट है....अब अखबार में नाम छपवाना है तो कुछ तो ऐसा करना ही पड़ेगा....देखते नही क्या ? चैनलों पर क्या क्या कैसे कैसे हथकंडे अपनाए जाते हैं......

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  7. आया है ऐसा ज़माना नाम हो कमाना तो झूठी उपलब्धियाँ भी गिनवाना । वरना मुह छुपाने का ढँऊढ्ना ठिकाना । आप अपने आद्र्शो पर बने रहियए उसी मे जीवन है ।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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