- सर्वत्र नकारात्मकता की घेरा बंदी
"नकारात्मकता"-का सर्वव्यापी होना के लिए घातक होता जा रहा है.... आप ही सोचिये कालांतर में जब मानवी सभ्यता बचेगी ही नहीं तो क्या सीमाएं बच सकतीं हैं अथवा धर्म संस्कृति समूह लोग अपने और अपने समूहों के संकट ग्रस्त होने का झंडा उठाए आए दिन सडकों की छाती छोलते नज़र आते हैं इनके सामने जब कोई अखबार मीडिया या चिन्तक आ जाए तो हजूर अपने आप को दुनिया का सबसे दु:खी साबित करते ये लोग अपने संकट को सर्वोपरि साबित कर हीन देते हैं । भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सन्दर्भों का ऐनक लगा के देखिये तो लगता है की "हर छाती पीटने वाला दु:खी हो यह कदापि सच नहीं है "
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- दुनिया ख़त्म होगी...? भाई हो चुकी
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आए दिन अखबार समाचार चैनल 2012 की धमकी दे दे कर विश्व को भयभीत कर रहे थे की दुनियाँ ख़त्म होने वाली है भाई दुनियाँ ख़त्म होने वाली क्या हो ही चुकी है जिसे देखिए उसकी अपनी आत्म केंद्रित दुनिया है आप किस दुनिया के खात्मे की बात की जा रही है वास्तव में दुनिया का खत्म होना तभी शुरू हो जाता है जब हम "आत्म-केंद्रित" हो उजाते हैं।
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आए दिन अखबार समाचार चैनल 2012 की धमकी दे दे कर विश्व को भयभीत कर रहे थे की दुनियाँ ख़त्म होने वाली है भाई दुनियाँ ख़त्म होने वाली क्या हो ही चुकी है जिसे देखिए उसकी अपनी आत्म केंद्रित दुनिया है आप किस दुनिया के खात्मे की बात की जा रही है वास्तव में दुनिया का खत्म होना तभी शुरू हो जाता है जब हम "आत्म-केंद्रित" हो उजाते हैं।
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- और अंत में
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वाकई, समूची मानवता संकट में है.
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