भोजपुरी दोहे:
आचार्य संजीव 'सलिल'
कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच.
कनके संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच..
कतने घाटल के पियल, पानी- बुझल न प्यास.
नेह नरमदा घाट चल, रहल न बाकी आस..
गुन अवगुन कम- अधिक बा, ऊँच न कोइ नीच.
मिहनत श्रम शतदल कमल, मोह-वासना कीच..
नेह-प्रेम पैदा कइल, सहज-सरल बेवहार.
साँझा सुख-दुःख बँट गइल, हर दिन बा तिवहार..
खूबी-खामी से बनल, जिनगी के पिहचान.
धुप-छाँव सम छनिक बा, मन अउर अपमान..
सहारण में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.
केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास..
फुनवा के आगे पडल, चीठी के रंग फीक.
सायर सिंह सपूत तो, चलल तोड़ हर लीक..
बेर-बेर छटनी क द स, हरदम लूट-खसोट.
दुर्गत भयल मजूर के, लगल चोट पर चोट..
दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.
एक कम दू खर्च के, ऊँची भरल उडान..
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
भाई भोज पुरी तो समझ मै नही आती लेकिन जहां तक पढे अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगल
जवाब देंहटाएंSaandar
जवाब देंहटाएंBadhaiya
सहारण में जिनगी भयल, कुंठा-दुःख-संत्रास.
केई से मत कहब दुःख, सुन करिहैं उपहास.