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17 दिस॰ 2009

यह कैसे हो सकता है कि जबलपुर ब्रिगेड हो और जबलपुर के बारे में जानकारी न हो

भारत के भौगोलिक केन्द्र महाकोशल क्षेत्र में स्थित, शुभ्र संगमरमर के धवल चट्टानों के लिये प्रसिद्ध, मध्यप्रदेश की संस्कारधानी, जबलपुर का नाम भला किसने नहीं सुना होगा? अत्यन्त पावन नर्मदा नदी के तट पर बसा हुआ जबलपुर मध्यप्रदेश के प्रमुख नगरों में से एक है और वर्तमान में यह मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक एवं शैक्षणिक केन्द्र है। जबलपुर चारों ओर से वन्यप्रान्तों से घिरा हुआ नगर है अतः इस अनेक अभ्यारण्यों का प्रवेशद्वार भी कहा जा सकता है।
नामकरण
माना जाता है महर्षि जाबालि, जिन्हें जब्बल ऋषि के नाम से भी जाना जाता है, की तपोभूमि होने के कारण इस क्षेत्र का नाम जबलपुर हुआ। पूर्व में इसे जब्बलपुर कहा जाता था, अंग्रेजों के शासनकाल में भी इस नगर के नाम का अंग्रेजी हिज्जा Jabbalpore (जब्बलपोर) ही था जो कि कालान्तर में Jabalpur (जबलपुर) हो गया।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जबलपुर शब्द अरेबिक शब्द "जबल" अर्थात् पर्वत और संस्कृत शब्द "पुरा" अर्थात् नगर के मेल से बना है।
इतिहास
जबलपुर का अत्यन्त ही प्राचीन गौरवशाली इतिहास रहा है। महाभारत में भी इस नगर का उल्लेख पाया जाता है। किसी समय यह महान मौर्य और गुप्त साम्राज्य का भी हिस्सा रह चुका है। ईसा पूर्व 875 में कल्चुरि वंश के राजाओं का आधिपत्य इस क्षेत्र में हुआ और जबलपुर उनकी राजधानी बनी। 13 वीं सदी में इस क्षेत्र को गोंड शासकों ने हथिया लिया और यह नगर उनकी राजधानी बनी। इसीलिये यह क्षेत्र गोंडवाना के नाम से भी जाना जाता है। 16 वीं सदी तक यह गोंडवाना के शक्तिशाली राज्य के रूप में परिणित हो चुका था। इस नगर को हैहयवंशी राजाओं की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है। उस काल में इस नगर को त्रिपुरी के नाम से जाना जाता था।
अनेक बार मुगल शासकों ने इस राज्य पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास किया। अपने राज्य की स्वतन्त्रता बनाये रखने के लिये गोंड महारानी दुर्गावती ने बादशाह अकबर की से सेना से लोहा लेते हुए अपने प्राण विसर्जित किया। अंततः यह क्षेत्र सन् 1789 में मराठों के अधिकार में गया। सन् 1817 में इसे ब्रिटिश शासन ने मराठों से जीत लिया और यहाँ पर अपनी महत्वपूर्ण छावनी स्थापित किया।
दर्शनीय स्थल
जबलपुर मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। विश्वप्रसिद्ध भेड़ाघाट में चांदनी रात में शुभ्र संगमरमर की धवल छटा का आनन्द लेने के लिये देश विदेश के पर्यटकों का यहाँ मेला सा लगता है। मदनमहल का किला, संग्राम सागर, तिलवारा घाट, भेड़ाघाट, धुँआधार, चौंसठ योगिनी मन्दिर, त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर आदि अनेक दर्शनीय स्थल यहाँ पर स्थित हैं।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया अवधिया जी
    दो तथ्य हैं
    एक:-महर्षि जाबाली की तपोभूमि
    के लिए दो स्थान पर दावे किये
    जाते रहे हैं
    जबलपुर और जालौर
    दूसरा तथ्य यह भी है विक्की पीडिया के अनुसार
    जबलपुर को संस्कार धानी का नाम नेहरू जी ने दिया जो
    गलत है इसे यह नाम आचार्य बिनोबा भावे ने दिया,

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  2. बहुत अच्‍छी बात, जया भदुड़ी का गृह जनपद भी आपनी संस्‍कारधानी ही है।

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  3. तो चलिए आज अपना एक राज हम भी खोल देते हैं हमारी जन्मस्थली जबलपुर ही है ..जबलपुर सैनिक अस्पताल ..और इस शहर से बहुत सी यादें जुडी हुई हैं हमारे परिवार की ।अपनी बार करें तो आज तक जबलपुर स्टेशन पर पी गई चाय देश के किसी भी रेलवे स्टेशन पर पी गई अब तक की सबसे स्वादिष्ट चाय थी । जानकारी के लिए अवधिया जी का आभार । इश्ववर ने चाहा तो जल्दी ही जबलपुर की धरती को सर माथे लगाएंगे

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  4. प्रमेन्द्र सर वो तो भोपाल है
    अवधिया जी का स्वागत है

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  5. भेड़ाघाट और धुँआधार तो मुझे भी बहुत पसंद हैं। बहुत सुन्दर जगह है।
    घुघूती बासूती

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  6. ये बढ़िया कार्य किया आपने. बधाई.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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