29 दिस॰ 2009

देशी एंटी वायरस- इस्तेमाल करके देखें

का बताएं भैया! हम तो ठेठ गंवईहा ठहरे. कछु कहत हैं तो लोग मजाक समझत हैं. अरे भाई हमको मजाक आती ही नहीं है. लेकिन जो बात दिल से कह देत हैं (बिना दिमाग लगाये) वो मजाक बन जात है ससुरी. अगर हम बात दिमाग लगा के करत हैं तो लोगन का रोवे का परत है, का बताएं बड़ी समस्या हो गई है. अभी हम देखत रहे समस्या चहुँ ओर ठाडी है. टरने को नांव ही नहीं लेत है. लेकिन हम ठहरे गंवईहा बिना समस्या टारे हम ना टरे.
अब देखिये ना कितना शोर मचा रहता है कि कम्पूटर मा  कोई जिनावर घुस गवा है. जिसके कम्पूटर मा घुस जात है उसको कम्पूटर ठाड़ हो जात है, बिगाड़ हो जात है. कच्छू करई नई देत है. हम एक भैया से पूछे भैया ये कौन सा जिनावर है जो कम्पूटर को और तुमाये को भी हलाकान कर डारे है? तो उन्होंने बताये के वायरस होत है. एक तरह को कीट है. तो हमने पूछो "कम्पूटर में कीट को काय काम है?" तो बोले जब इंटरनेट चलत है तो जो दुश्मन बैरी होय ना, वो अपनों जासूस भेज देत है हलाकान करबे के लिए. ये कीट भी दो तरह के होत हैं, एक है मित्र कीट दुसर है दुश्मन कीट, फेर दुश्मन कीट के हटाने के लाने मित्र कीट को बुलाओ फेर दुनो में लड़ाई होत है और मित्र कीट दुश्मन कीट को खा के ख़तम कर देत है. बस इत्ती सी बात है. अब वा के लिए तो इत्ती सी बात है और हमारे जैसे देहाती गंवईहन के लिए इत्ती सारी बात है. हमारे तो भेजे में ही नहीं घुसी. चलो भलो हुवो भेजे मे नहीं घुसी, नहीं तो माथ अलग पिराई और डाक्टर की भेट पूजा अलग होती.
अब जो हमारे मित्र रहे कम्पूटर वारे, वो बुलागर रहे. कम्पूटर मा लिखत रहे, लिख लिख के बहुत बड़े लेखक बन गए. बड़ो नांव हो गयो वा को. हमने एक दिन पूछो बताओ तो भैया का लिखत हो? हमको तो कछु पतों चले. तो भईया उनने कम्पूटर खोल के दिखायो और वो बांचन लागे हम मूड हिला -हिला के सुनत रहे. एक जगह लिखे रहे,  हमकू चड्डी खरीदना है. पुरानी वाली फट गई है, वो पट्टे वाले कपडे की बनी थी अब वो कपड़ा नहीं मिल रहा है. हम बहुत ढूंढ़ डारे, हमारे सारे आस पास के मित्र भी ढूंढ़ डारे, उनको भी नहीं मिल रही है. हम आपसे गुजारिश कर रहे है.कि कोई हमें बता दे कि ये चड्डी को पट्टा वाला कपडा कहाँ मिलेगो. तो बताने वारे को हम बहुत बहुत धन्यवाद देंगे. हम ये चड्डी का कपड़ा इसलिए ढूंढ़ रहे हैं कि इसको धारण करने के बाद स्वर्गिक आनंद आता है. मिल जाये तो आप भी इस्तेमाल करके देखें.
एक जगह वो लिखे रहे हमारी भैंसिया गुम गई है. तालाब में गई थी नहाने. चरवाहों वही भूल गवो, कल से नहीं आई है. हम गांव में बहुत ढूंढ़ लिए, नहीं मिल रही है. भैंसिया जाने के गम में हमारी अम्मा ने रात को दूध नहीं पियो है. उनको बड़ा सदमा लगो है, सुबह-सुबह गश खा के गिर पड़ी. इधर हमारी बीवी भी परेशान किये दे रही है. उनके मईके से दो सारे आये हुए है. गांव में  पहलवानी करते हैं. उनको दूध की जरुरत है. जब से ये आये है इनको देख के भैंसिया फरार हो गई है. अब ये सारे हमारे महीने भर की तनखा को दूध तीन दिन में पी जायेंगे. मोल को दूध बहुतै मंहगो है. ये सारेन को देख के हमरो तो बी पी बढ़ जात है. 
श्रीमती कह रही है के दूध लेके आओ हमारे भैया लोगों के लिए, नहीं तो हम मईके जात हैं और भईया लोगो दूध नहीं मिलत है तो ये बौरा जात है कहत रहे की दूध नहीं मिलो तो जीजी! आज जीजाजी को राम-नाम-सत् समझो. तुम्हारे लिए नयो जीजा ढूंढ़ देंगे. अब बताओ भैया हम फँस गए है. एक तरफ कुंवा दूसरी तरफ खाई, और ये खाई भी हमने एक होंडा के चक्कर में खुदाई. तो भईया बाकी बात तो मैं बाद में भी लिख दूंगा. अभी हमारी भैंसिया को पता बताय दो. आपकी मेहरबानी होगी. मुर्रा नसल की भैंस है टेम्पलेट का रंग काला है. अगल बगल में विजेट लगे हैं. दो कान, दो सींग एक मुहं, दो आंख, चार पैर, एक पूंछ है और एक निशानी है उसके पहचान की, वो जहाँ कही भी जात है, दांत निपोर के पगुरावत रहत है. 
हमने भी कहा क्या बढ़िया लिखते हैं मान गए भैया. आप तो हमारे शहर की नाक है. अब हमें भी कुछ लिखना सीखा दीजिये ना कंप्यूटर में. देखिये अभी एक सुन्दर गजल उतर रही है. लिख तो देंगे लेकिन छापेंगे कहाँ? इस लिए हमें भी ये बुलागरी सीखा दीजिये. 
अब उनसे गुरु मन्त्र पा के नर्मदा मैईया को नांव ले के बुलागरी चालू कर दी. अब जैसे ही हमने दो चार गजल लिखी हमारे कम्पूटर पे भी दुश्मन कीट को हमला हो गवो. हमने इजीनियर बुलावो तो उसने बताया कि इन दुश्मन कीटों को मारने के लिए एक हजार को खर्च है  मित्र कीट की फ़ौज बुलानी पड़ेगी. हम तो डर गए थे. दे दिये हजार रूपये, भईया वो इंजिनियर हजार रूपये की सीडी लाया और हमारे कम्पूटर में लगा के बोला" अब ठीक हो गया है" कोई समस्या नहीं है. कुछ दिन भईया बढ़िया चलो कम्पूटर, फेर एक दिन खड़ो हो गवो. चल के नहीं दे. हमने सोचा इंजिनियर बुलाएँगे, वो फेर हजार रूपये ले जायेगा. मित्र कीट डाले हैं करके मुरख बना के चले जायेगा. 
तो हमने भी जुगत लगाईं और इसकी देशी दवाई करबे की सोची. भाई देशी दवाई बहुत फायदा करत है. बस रोग पकड़ में आ जाये. हमारे घर में लकड़ी के चक्का वारी बैल गाड़ी है. वा में जब चक्का जाम हो जाय, तब कालू राम काला वाला मोबिल आईल पॉँच रूपये का डालते रहे हैं. गाड़ी भी बढ़िया चलत है और बैलान को भी आराम है. वो भी दुआ दे रहे हैं. तो हमने ठान लिया देशी इलाज करना है कम्पूटर का. पाच रूपये का तेल मंगाए और डाल दिये कम्पूटर में. 
बस फिर क्या था? तब से हमारा कम्पूटर शानदार चल रहा है. अब बता देते हैं क्या हुआ? जैसे ही हमने काला मोबिल आईल डाला, सारे दुश्मन कीट (वायरस) का मुंह काला हो गया. अब उनको डर हो गया. अगर बाहर निकले तो पहचाने जायेंगे, काला मुंह लेके कहाँ जायेंगे? जो देखेगा वो दुत्कारेगा. और बिरादरी वाले भी बोलेंगे.  कहाँ काला मुंह करवा के आये हो? इसलिए उस दिन से वो हमारे कम्पूटर में दुबके बैठे है. बाहर निकालने की हिम्मत नहीं कर रहे और हम मजे से बुलागरी कर रहे हैं. अगर आपको भी कम्पूटर में कोई वायरस की समस्या हो तो देशी ईलाज करके देखो. हमने किया है और उसका भरपूर लाभ उठा रहे है. बुजुर्ग कहत रहे "फायदे की चीज हो तो सबको बताओ और घाटे की है तो हजम कर जाओ, इसलिए ये बात हम बुजुर्गों का सम्मान करते हुए कह रहे हैं. भईया हम तो गंवईहा ठहरे.

ललित शर्मा, लीजिये छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का आनंद 

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                     ::  कमांडर के आदेश  ::
इस धारदार जानदार पोस्ट के 24 घंटे बाद ही कोई ब्रिगेडीअर पोस्ट
                                चिपकाएँगें 
आदेश का तत्काल पालन सुनिश्चित हो

15 टिप्‍पणियां:

  1. अहम अभी देखते है कायसे अब हमें लिखने खूब है .... बत्ती भी देने है की कुछ वायरस भी ट्रांसफर करते है .

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  2. बहुत ही बढ़िया लिखा है ललित भाई आपने. पढ़कर मजा आ गया.

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  3. अच्छा आलेख। बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. पोस्ट रोचक भी है और धारदार भी!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  5. भाईया हम आ रहे है भारत मै तो पहले गुरु के लेपटाप मै यह कर क्र देखे गे, फ़िर लठठन मार मार कर इन कल मुंए को आप के लेपटाप से निकाले गे, फ़िर दुसरो का भला करे गै:)

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  6. फायदे की चीज बताना जरुरी है..सही कहे बुजुर्ग.


    जय हो ललित भाई की


    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  7. इस धारदार जानदार पोस्ट के 24 घंटे बाद ही कोई ब्रिगेडीअर पोस्ट चिपकाएँगें आदेश का तत्काल पालन सुनिश्चित हो
    sarkar ka aadesh sar mathe
    jo aagya hazoor

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  8. गुसाई तुलसी बाबा ने कहा था कि
    "बधे कीट मरकट के नाई सबही नचावत राम गुसाई."

    हम अगियानी का कहे सब राम की माया है. अब ये कम्प्युटर भी गुसाई को जानता है यह नही पता था, अब जान गये है तो कीट नाचेंगे ही ना.

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  9. वाह ललित भैया! क्या लिखा है आपने-पढ कर मजा आ गया, गंवईहा बन के अपनी बात कहने का आपका अंदाज निराला है। धन्यवाद

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  10. व्यंग्य के माध्यम से आपने सही बात रखी है,
    पढ कर मजा आ गया।

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  11. बहुत से लोगों को लपेट में ले लिया सच कहत हूं। आपके लेख से पूरी तरह सहमत हूँ, इसलिए तो निरंतर लिख रहा हूं। अब टिप्पणी मोह और वायरस मोह छोड़ दिया है। बस लिखो...किसी ब्लॉगर को पसंद आए तो ठीक नहीं तो अन्य पाठकों के लिए तो है ही। वैसे कुछ ब्लॉग़र ऐसे हैं कि वो कब जंगल पानी जा रहे हैं, और उनकी वहां मोबाईल पर किसी ब्लॉगरिया से बात हो गई लिखकर डाल देते हैं। इतना ही नहीं, कभी कभी तो पूछते हैं इसका पता बताओ..हम क्या पता भाई तुम किसका पता मांग रहे हो।

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  12. वाह वाह ! वाक़ई धारदार पोस्ट है। मज़े आ गए।

    कीट हा हा।

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  13. लेख बहुत पसंद आया पर उससे भी ज्यादा पसंद आया आपके ब्लोगर मित्र के पोस्ट!

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  14. आप भी गज़ब की मौज़ लेना सीख गए हैं ललित जी :-)

    बी एस पाबला

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!