25 दिस॰ 2009

मेरा प्‍यार

तुम्‍हरी यादो के सहारे,
हम यूँ ही जी रहे है।
कभी तुमको देख कर,
हम यूँ जी-जी कर मर रहे है।

ग़र एहसास को समझो,
हम प्‍यार तुम्‍ही से करते है।
तुम समझो या न समझो,
हम प्‍यार तुम्‍ही से करते है।।

तोड़ के सारे बंधन को,
रिश्‍तो को उन नातो को।
प्‍यार तुम्‍हारा पाने को,
हद से गुजर जाने को।।

इश्‍क की गहराई को,
कभी नापा नही जाता।
प्‍यार को ग़र समझो,
तो प्‍यार की गहराई को खुद नापो।।

हीर रांझा तो हम इतिहास है,
इश्क हमारा तुम्‍हारा सिर्फ आज है।
मेरे दिल के सपनो में आती हो सिर्फ तुम,
आ कर पता नही कब चली जाती हो तुम।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. कभी तुमको देख कर,
    हम यूँ जी-जी कर मर रहे है।

    उसी को देखकर जीते हैं कि जिस काफिर पर दम निकले ....
    सुन्दर अहसासों से सजी कविता ...!!

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  2. बेहतरीन भाव..उम्दा अहसास!! आन्नददायी!!

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  3. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

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  4. बहुत उम्दा बहुत बेहतर। सुन्दर भावपूर्ण कविता।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!