आर्ची आज़ भी महफ़ूज़-भैया को तलाशती है
अंकुर-भैया और महफ़ूज़ भैया में उसके लिये कोई फ़र्क नहीं है.
आर्ची एक सा स्नेह बांटती है दौनो से दूर सपने संजोती है अंकुर भैया आएंगे मेरे पास खूब सारी गुडिया हो जाएंगी खेलने को ...
आर्ची मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
महफूज जी महफूज हैं
जवाब देंहटाएंकल ही बात हुई थी
आजकल कुछ व्यस्त लगते हैं महफूज़ मियां...आर्ची को देखना अच्छा लगा..शुभाशीष.
जवाब देंहटाएंआजकल दिलों में महफूज हैं महफूज भाई
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों पूर्व महफुज जी से प्रथम भेंट हुई थी, आज कल हिन्दी चिट्ठाकारी की दिव्य स्थान पर विराज रहे है।
जवाब देंहटाएंआपने आर्ची से हमें नही मिलवाया था ? सारे बोनस महफूज जी के लिये ही :)
प्रमेंद्र भाई.समीर जी,
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज़ खुद बताएंगे बड़ी रोचक और मर्म-स्पर्शी घटना है.. महफ़ूज़ उस बारे मे न लिख पाए तो फ़िर मैं पेश कर दूंगा
वर्मा सा’ब अविनाश जी, सच है
बिल्लोरे जी..... नमस्कार..... मैं यहीं पर हूँ..... बस! अब वक़्त ही नहीं मिल पाता ...... और कुछ विरक्ति सी भी है.... पर रोज़ एक घंटा सुबह और एक घंटा रात में कमेन्ट के लिए ज़रूर टाइम निकालता हूँ...... जबलपुर आ रहा हूँ.... जल्दी ही..... यूनिवर्सिटी में काम है...... डेट आपको बता दूंगा.....आर्ची को ढेर सारा प्यार......
जवाब देंहटाएंई ल्यो...महफ़ूज भाई को विरक्ति होती जारही है. लोगो जरा जल्दी से इनका बैंड बाजा बजवाय दो. वर्ना मुंडा हाथ से निकला जारहा है. फ़िर मत कहना कि टंगडीमार ने टाईम पे टंगडी नही अडायी थी.
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