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15 जून 2010

महफ़ूज़ भाई किधर हो आज़ कल

आर्ची आज़ भी महफ़ूज़-भैया  को तलाशती है
अंकुर-भैया  और महफ़ूज़ भैया में उसके लिये कोई फ़र्क नहीं है.
आर्ची एक सा स्नेह बांटती है दौनो से दूर सपने संजोती है अंकुर भैया आएंगे मेरे पास खूब सारी गुडिया हो जाएंगी खेलने को ...
आर्ची

7 टिप्‍पणियां:

  1. महफूज जी महफूज हैं
    कल ही बात हुई थी

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  2. आजकल कुछ व्यस्त लगते हैं महफूज़ मियां...आर्ची को देखना अच्छा लगा..शुभाशीष.

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  3. आजकल दिलों में महफूज हैं महफूज भाई

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  4. कुछ दिनों पूर्व महफुज जी से प्रथम भेंट हुई थी, आज कल हिन्‍दी चिट्ठाकारी की दिव्‍य स्‍थान पर विराज रहे है।

    आपने आर्ची से हमें नही मिलवाया था ? सारे बोनस महफूज जी के लिये ही :)

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  5. प्रमेंद्र भाई.समीर जी,
    महफ़ूज़ खुद बताएंगे बड़ी रोचक और मर्म-स्पर्शी घटना है.. महफ़ूज़ उस बारे मे न लिख पाए तो फ़िर मैं पेश कर दूंगा
    वर्मा सा’ब अविनाश जी, सच है

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  6. बिल्लोरे जी..... नमस्कार..... मैं यहीं पर हूँ..... बस! अब वक़्त ही नहीं मिल पाता ...... और कुछ विरक्ति सी भी है.... पर रोज़ एक घंटा सुबह और एक घंटा रात में कमेन्ट के लिए ज़रूर टाइम निकालता हूँ...... जबलपुर आ रहा हूँ.... जल्दी ही..... यूनिवर्सिटी में काम है...... डेट आपको बता दूंगा.....आर्ची को ढेर सारा प्यार......

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  7. ई ल्यो...महफ़ूज भाई को विरक्ति होती जारही है. लोगो जरा जल्दी से इनका बैंड बाजा बजवाय दो. वर्ना मुंडा हाथ से निकला जारहा है. फ़िर मत कहना कि टंगडीमार ने टाईम पे टंगडी नही अडायी थी.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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