17 अक्तू॰ 2010

बनाओगे दल तो "दलदल" निर्मित होना अवश्यम्भावी है.

मेरी आवाज कौन सुनता है वही न जो मेरे गुट का हो . यानी कि हम व्यापक हो ही नहीं सकते हम सुन तो सकते ही नहीं. हम एल दल बना लेते हैं फ़िर दूसरा भी यही करता है तीसरा भी ....अनंत लोग जब बनातें हैं दल तो "दलदल" निर्मित होना अवश्यम्भावी है. यही तो है पशुवृत्तिवत जीवनप्रणाली. कोई माने न माने लेखकों,विचारकों,चिंतकों, में गुटीय संघर्ष सड़कों पर नहीं आता किंतु ऐसी स्थिति निर्मित कर देता है कि युद्धों का होना लगभग तय हो जाता है. साहित्य,सृजन,चिंतन में इसे स्थान मत दीजिये. हमारी कमज़ोरी ये है कि हम कानों से देखने लगे हैं. अक्सर विवाद यहीं से प्रसूतते हैं. वर्धा मीट को लेकर कोई भी अप्रसन्न नहीं है होगा भी क्यों हिंदी ब्लागिंग को लेकर इतना अच्छा काम. अकादमिक-स्तर पर हुआ सभी को संतोष है. किंतु जिसने भी सवाल उठाए वो व्यवस्था को लेकर ही थे. सभी वहां जाते यह सम्भव नहीं. किंतु आमंत्रण के सम्बन्ध में कुछ मतभेद ज़रूर दिखे. जैसे मुझे सूत्रों से मालूम हुआ कि मुझे बुलाना सम्भव है बुलाया नहीं गया तो सोचा हो सकता है कि सूत्र को भ्रम होगा कि मुझे बुलाएंगे. या उनने नाम प्रपोज़ किया होगा. जाता तो भी क्या करता मेरे लेखन को कार्यशालाएं/मीटिंग्स नहीं बल्कि मेरा विज़न परिमार्जित कर सकता न कि कोई अनुबन्धन. रहा ब्लागिंग को बढ़ावा देने का मामला सो मौन साधकों से काफ़ी कुछ सीखने को मिल रहा है. ब्लागर दर्शन बावेजा के ब्लाग पर नियमित जाता हूं. लिमिट खरे से ताज़ा समाचार मिलते हैं संगीता पुरी जी वत्स जी से ज्योतिष की भूख शांत होती है, अर्चना गीत सुना देतीं हैं, महेंद्र मिश्र जी भी मुदिता का तरीका सुझाते है, युनुस गीत-संगीत की बात करते हैं, ललित भाई हंगामा किये रहते है मज़ेदार पोस्ट के ज़रिये, पाबला जी अखबार तलाशते रहते है या जन्म दिन मनवाने में जुटे हैं कुल मिला के वार्ताएं, चर्चाएं, आलेख, रामायण,क़ुरान,गीता, सेकुलर,नान-सेकुलर, वेद पुराण , धर्म दर्शन, स्वास्थ्य, आहार,व्यव्हार,परिवार,इन सब पर लिखने वालों की कमीं नहीं है. निरपेक्ष भाव से मुझको ब्लाग देखना अच्छा लगता है. आवश्यक है कि हिंदी/अन्य भारतीय भाषाओं में जितना हो सके अच्छी सामग्री डाल दीजिये फ़िज़ूल बक़वास नेतागिरी, गाल-बज़ाउ खेमे निर्मित न किये जावें. ब्लागिंग पर किसी वर्ग विशेष की का हक़ नहीं. मैं राम जी के  इस विचार से सहमत हूं:-" हम हिन्दुस्तानी लोग बहुत भावुक होते हैं और इस लिए हर चीज में संगठन और समूह पहले बनाने लगते हैं ! ब्लोग्गिंग में भी यही कुछ कभी कभी होता रहता है, लिखने से ज्यादा लोग अपने आप को एक ग्रुप विशेष का मुखिया बनाने की मुहिम में जुड जाते हैं ! और कुछ लोग अपने आप को ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधि और शुभचिंतक समझ हर इन समारोहों में शिकरत की उम्मीद पाल बैठते हैं और फिर परेशान भी होते हैं जब अपेक्षाएं खरी नहीं उतरती !!ब्लागिंग स्वतंत्र है जिसे किसी भी दायरे में बांधना मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। हम तो ब्लागर मित्रों से मिलते ही रहते हैं। आभासी दुनिया से बाहर निकल कर आमने-सामने मिलना अपुर्व आनंद देता है। हम तो सिर्फ़ इसी बात के हिमायती हैं कि मिलते जुलते रहो,आनंद लेते रहो। लड़ने-झगड़ने के अड़ोसी पड़ोसी ही काफ़ी हैं। "
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चलिये विवाद के इस रावण का अन्त कर दें हम सब मिल कर
तुमको नहीं लगता कि आज जी का दिन है यदि लगता है तो
चलो उठो किसी का दिल जीत लो भूखे का नंगे का बीमार का
घायल का दु:खी का यानि उन सबका जिनका मन हताश है जो 
जो अवसादों में जी रहे हैं.
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विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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8 टिप्‍पणियां:

  1. चलो दशहरा मनाते हैं धूम से ! बात बस इतनी सी है कि लोग आलोचना सुनने के लिए भी तैयार रहें ! सार्वजनिक कार्यक्रमों के आयोजनकर्ता की जिम्मेदारी भी सार्वजनिक हो जाती है !

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  2. कहते हैं ब्लागिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है। सबको अपनी बात कहने का हक है और हमने भी कही। जो कुछ लोगों को नागवार गुजरी। व्यक्ति से मानवीय भूल हो जाती है तो उसे सुधारने का प्रयत्न किया जाता है न कि उसके विषय में अनावश्यक दलीलें देकर उसे सत्य सिद्ध करने की कोशिश की जाए।
    ब्लॉगिंग में नित्य नए लोग आ रहे है आवश्यक हैं कि हम उन्हे भी पहचाने और उचित सम्मान दें और उनका उत्साह बढाएं जिससे उन्हे भी अपनी पहचान बनाने का मौका मिले।
    वैसे भी मुझे किसी से वाद-विवाद करना पसंद नहीं है। इससे स्वयं के समय का ही ह्रास होता है। लेकिन कहीं गलत हो रहा है तो उसके खिलाफ़ आवाज उठानी ही चाहिए।

    विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. ललित जी वही तो बताया गया है है. सफ़लता का यश नदी में बहा देना चाहिये. कमियों पर चिंतन करना चाहिये .

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  4. आप सब को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक त्योहार दशहरा की शुभकामनाएं.
    आज आवश्यकता है , आम इंसान को ज्ञान की, जिस से वो; झाड़-फूँक, जादू टोना ,तंत्र-मंत्र, और भूतप्रेत जैसे अन्धविश्वास से बाहर आ सके. तभी बुराई पे अच्छाई की विजय संभव है.

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  5. आपकी पोस्‍ट पर विषय देखकर आयी थी लेकिन यहाँ भी ब्‍लागिंग का ही फेर निकला। मैं अपना मत बताती हूँ कि मैं किसी भी दल में बंधकर रहने में यकीन नहीं करती। दल से बंधने पर उसकी खराब बात को भी सहन करना पड़ता है।

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  6. हम तो भईया आजाद हे, कोई दल बल नही, मस्त मोला.
    विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!