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22 फ़र॰ 2011

याद तो होगा ही आज़तक की ये खास रपट



इस प्रसारण में आज़ तक ने नेट पर हिंदी के लिये सकारात्मक प्रसारण किया था.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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