मित्रो बीमारी के चलते दिन भर टी.वी. के सहारे समय काट रहा था कि शाम को मेरे एक अन्ना समर्थक मित्र आए.. बोलो कि भाई क्या ज़रूरी था अन्ना- जी के मंच पर इन सबको बुलाना. ? उनके अचानक हुए इस सवाली हमले से मुक्ति पाने मैने पूछा:-"भाई, बुराई क्या है..?
बस मित्र भड़क गए और जो धारा प्रवाह मुझे कहा उसे मैं हूबहू नीचे चैंप रहा हूं..............
11 दिसंबर 2011 जंतर-मंतर पर अन्ना ने फ़िर भरी हुंकार . 10 दिसम्बर की प्रेस कांफ़्रेंस में पूरे देश ने देखा सारी बातों के अलावा केजरीवाल जी की उस सूची को पढ़ना जिसमें यह कहा गया जा रहा था कि अमुक दल से तमुक जी पधारेंगें केवल एक संकेत दे रहा था कि "अन्ना-टीम" आमंत्रण की स्वीकृतियों को अपनी उपलब्धि मान रही है.वास्तव में इस सबकी आज़ कोई ज़रूरत थी या नहीं इस सवाल का ज़वाब पाने अन्ना-टीम को बेशक़ आत्म-चिंतन की ज़रूरत है..!! संयोगवश ही सही कैमरे ने एक सही चित्र चुरा लिया है. टीम-अन्ना को इस बिंदु पर गौर करना ही होगा कि किसी भी स्थिति में जन लोकपाल विधेयक को हू ब हू पास कराने वाले जनांदोलन को कोई किसी भी स्थिति में ऐसी किसी बैसाखियों की ज़रूरत कदापि नहीं . आप आप मानें या न मानें अब आम जनता अपने आंदोलन में किसी तीसरे पक्ष को स्वीकारने की स्थिति में नहीं है.
यार तुम नही जानते सियासी सिर्फ़ अपने नफ़े-नुकसान का आंकलन कर आए थे..! इस मंच से उनको नफ़ा ही नफ़ा होगा........... फ़िर मेरे मित्र ने दो टूक कहा "जन आंदोलनों को सियासी बैसाखियों की ज़रूरत नहीं है "टीम अन्ना" ..फ़िर मित्र बोला आप तो ब्लाग लिखते.. हो न..? मेरी बात लिख दोगे हू ब हू
सो भई हम हमने अपने दोस्ताने की सलामति के लिये मित्र के विचार इधर लिख दिये ..
किताबी बातें करना और बात है, उन्हें मूर्तरूप देना दूसरी बात है. अन्ना एंड कंपनी को समझ कुछ देर से आया कि मगरमच्छ को मगरमच्छ कहना एक बात है तो पानी में रह कर मगरमच्छ से वैर करना दूसरी बात. ....बिल तो संसद ही पास करेगी न !
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