एक आत्मीय समारोह बनाम "एक पंथ:बहुकाज" कितना व्यग्र थे श्री डा० विजय तिवारी "किसलय" जी सोच रहे होंगे कि शहर भर की सड़कों का निर्माण काश आज तो रुक जाता. तो आमंत्रित लोग सहज विशुलोक आ सकते. जी सच ऐसा ही हुआ था पांच फ़रवरी २०१२ को मेरे पहुंचने के लिये नियत समय था अपरान्ह एक बजे पर ये क्या हर रास्ते में "टैफ़िक-जाम" इसकी पूर्व सूचना दे दी हमने जीजा श्री को कि हमारी बेचारी आल्टो के सामने विशालकार दैत्याकार डम्फ़र खड़े हैं पूरे पौना घण्टे से बाधक बने हैं. ठीक है फ़िर भी कोशिश करो जल्दी आओ...सभी आ गये है वेगड़ जी आने वाले हैं.दिये गये समय से तनिक विलम्ब से प्रारम्भ आयोजन का वातावरण निर्माण कार्यक्रमों के सर्वमान्य एवम सर्वप्रिय संचालक राजेश पाठक प्रवीण आयोजन की कार्रवाई प्रारम्भ कर ही दी.कार्यक्रम के प्रारम्भ में द्वीप-प्रज्जवल स्वागत के बाद "नर्मदाष्टक आडियो" का विमोचन हुआ . जिसे आप ने यू ट्यूब पर भी सुना ही होगा . और फ़िर ... क्या हम भी सम्मानित हुए.. ब्लागिंग के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां गिनी-गिनाईं गईं.. अनूप जी ने माला पहनाई स्वामी जी ने शाल ओढ़ाई.. रमाकांत ताम्रकार जी ने मोमेंटो दिया.. आभार हुआ लज़ीज़ भोजन किया और घर आ गये हम और कुछ नहीं बस घर आ गये हम
घर आते ही हमारी श्रीमती जी बोलीं -"खूब घूमो दिन भर.. घर की परवाह नहीं समझा क्या रक्खा है "
घर आते ही हमारी श्रीमती जी बोलीं -"खूब घूमो दिन भर.. घर की परवाह नहीं समझा क्या रक्खा है "
हमने जब नारियल और शाल प्रतीक चिंह के साथ दिखाया तो बोलीं ठीक है नारियल के चटनी बनाने का मन था कई दिनों से अच्छा किया ले आये .. शाल.. रख दो कहीं देने लेने के काम आ जाएगी .. हा हा हा
बहुत बहुत बधाई हो आपको...
जवाब देंहटाएंबधाई !
जवाब देंहटाएंमाला पहनने की बधाई :)
जवाब देंहटाएं