नई दिल्ली। ‘नागरी लिपि पूर्णतयः वैज्ञानिक एवं विश्व की सर्वश्रेष्ठ लिपि है। भारत की सभी भाषाओं की एक अतिरिक्त लिपि के रूप में यह राष्ट्रीय एकता का सेतूबंध है इसलिए मैंने संसद सदस्य के रूप में पेश अपे प्राईवेट बिल के द्वारा हर भारतीय नागरिक के लिए इसका प्रशिक्षण अनिवार्य करने का सुझाव दिया है।’ सांसद जस्टिस एम.रामा जोइस ने आजाद भवन में नागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के पद से बोलते हुए संसद में विभिन्न स्थानों पर सुनहरी अक्षरों से नागरी लिपि में लिखे सद्वाक्यों की चर्चा भी की। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं नागरी लिपि परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस एक दिवसीय संगोष्ठी के अध्यक्ष सांसद डॉ. रामप्रकाश, विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद डॉ. रत्नाकर पाण्डेय, विशेष अतिथि लोकसभा चैनल के संपादक श्री ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, प्रवासी साहित्यकार डॉ. उषा राजे सक्सेना ने भी नागरी लिपि की जरूरत पर बल दिया। इससे पूर्व संस्था के महामंत्री डॉ. परमानंद डा. पांचाल ने आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित नागरी लिपि परिषद के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए नागरी को विश्वलिपि बनने के सर्वदा योग्य बताया। सभी का स्वागत श्री बलदेवराज कामराह ने किया।
इसी सत्र में प्रतिष्ठित विनोबा नागरी सम्मान कर्नाटक से पधारे नागरी सेवा डा. इसपाक अली को प्रदान किया गया। पुरस्कार में पुण्पगुच्छ, स्मृतिचिन्ह, प्रशस्तिपत्र, शाल तथा आठ हजार की नकद राशि प्रदान की गई। नागरी लिपि के प्रचार- प्रसार में अपना सर्वस्व समर्पित कर देने वाले प. गौरीदत्त की स्मृति में आरंभ किया गया प्रथम प.गौरीदत्त नागरी सेवी सम्मान श्री आनंद स्वरूप पाठक को उनकी दीर्घकालीन नागरी सेवाओं के लिए प्रदान किया गया। इसके अरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नागरी निबन्ध प्रतियोगिता के विजेता छात्रों और उनके विद्यालयों को भी पुरस्कार प्रदान किए गए। धन्यवाद ज्ञापन गगनांचल के संपादक डा. अजय गुप्ता ने किया।
भोजनोपरान्त सत्र ‘सूचना प्रौद्योगिकी और नागरी लिपि कम्प्यूटर प्रयोग के संदर्भ में’ विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा को समर्पित रहा। इस सत्र की अध्यक्षता जाने- माने पत्रकार श्री राहुलदेव ने की। वक्ता डॉ. ओम विकास, डॉ. बी.एन.शुक्ला, श्री अनिल जोशी, डॉ.. भारद्वाज ने वर्तमान युग को सूचना का युग बताते हुए इन्टरनेट पर हिन्दी के बढ़ते कदमों से परिचित करवाया वहीं इसके अधिकाधिक प्रयोग के लिए आधुनिकतम प्रौद्योगिकी की जानकारी पर बल दिया। बहुत बढ़ी संख्या में उपस्थित हिन्दी, नागरी प्रेमियों ने विशेषज्ञों से अनेक प्रश्न भी पूछे जो उनकी रूचि से अधिकं आवश्यकता का प्रमाण थे। अंत में संस्था की कार्यसमिति के सदस्य श्री विनोद बब्बर ने सभागार में उपस्थित विद्वानों, का आभार व्यक्त करते हुए ऐसी कार्यशालाओं की आवश्यकता पर बल दिया।
स्रोत: डा. परमानन्द पांचाल, महामंत्री द्वारा जारी प्रेस-नोट
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!