मुद्दत हुई है
साथ निवाला लिये हुए !
माँ साथ में बैठी है दुशाला लिये हुए.!!
वो दौर देर रात तलक़ गुफ़्तगूं का दौर
लौटी ये शाम यादों का हाला लिये हुए !!
आंखों में थमें अश्क़ अमानत उसी की है
है मांगती दुआ जो माला लिये हुए ..!!
जा माँ की गोद में, सर रख के सिसक ले
क्यों अश्क़ गिराता है रिसाला लिए हुए !!
ज़िंदगी को मत बना , अखबार आज का-
आने लगा जो आज़कल, मसाला लिये हुए !
ज़िंदगी को मत बना , अखबार आज का-
आने लगा जो आज़कल, मसाला लिये हुए !
बहुत देर तक चली कहां से कहां पहुंची हम सब कहते सुनते हंसते हंसाते बतियाते रहे .
वाह, मन न जाने सृजन करने पर तुल जाये..
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