मुद्दत हुई है
साथ निवाला लिये हुए !
माँ साथ में बैठी है दुशाला लिये हुए.!!
वो दौर देर रात तलक़ गुफ़्तगूं का दौर
लौटी ये शाम यादों का हाला लिये हुए !!
आंखों में थमें अश्क़ अमानत उसी की है
है मांगती दुआ जो माला लिये हुए ..!!
जा माँ की गोद में, सर रख के सिसक ले -
क्यों अश्क़ गिराता है रिसाला लिए हुए !!
ज़िंदगी को मत बना , अखबार आज का-
आने लगा जो आज़कल, मसाला लिये हुए !!
ज़िंदगी को मत बना , अखबार आज का-
आने लगा जो आज़कल, मसाला लिये हुए !!
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05 जनवरी 2013 की शाम हरीष भैया यानी बड़े भैया के प्रमोशन की पार्टी शाम प्रो. परवीन हक़ के साथ बैठकर पुराने दिनों की बातें चल रही थी. कि मां यानी परवीन हक़ साहिबा ने कहा
मुद्दत हुई है साथ निवाला लिये हुए
और फ़िर ग़ज़ल कलचुरी के पेपर नेपकिन पर लिखी गई. हमने मिलकर हमारी गज़ल पूरी तो न हो सकी वज़ह थी गुड़िया आपा और ज़मील जीजू आ गये हमें दुलारने जीजू नें स्वीट डिश खिलाई बात निकली बहुत दूर तलक गई
बहुत देर तक चली कहां से कहां पहुंची हम सब कहते सुनते हंसते हंसाते बतियाते रहे .
वाह, मन न जाने सृजन करने पर तुल जाये..
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