छंद सलिला:
मरहठाछंद
संजीव
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छंद लक्षण: जाति महायौगिक, प्रति पद २९ मात्रा, यति १०-८-११, पदांत गुरु लघु ।
लक्षण छंद:
मरहठा छंद रच, असत न- कह सच, पिंगल की है आन
दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान
गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान
लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान
दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान
गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान
लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान
उदाहरण:
१. ले बिदा निशा से, संग उषा के, दिनकर करता रास
वसुधा पर डोरे, डाले अनथक, धरा न डाले घास
थक भरी दुपहरी, श्रांत-क्लांत सं/ध्या को चाहे फाँस
कर सके रास- खुल, गई पोल जा, छिपा निशा के पास
२. कलकलकल बहती, सुख-दुःख सहती, नेह नर्मदा मौन
चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
माया की भँवरें, मोह चक्र में, घुमा रहीं दिन-रात
संयम का शतदल, महके अविचल, खिले मिले जब प्रात
३. चल उठा तिरंगा, नभ पर फहरा, दहले दुश्मन शांत
दें कुचल शत्रु को, हो हमलावर यदि, होकर वह भ्रांत
आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ
सुख-दुःख के साथी, कदम मिला चल, रहें उठायें माथ आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!