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8 जुल॰ 2014

chhand salila: durmila chhand -sanjiv

Rose
छंद सलिला:
दुर्मिला छंद   
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-१४, पदांत  गुरु गुरु, चौकल में लघु गुरु लघु (पयोधर या जगण) वर्जित।

लक्षण छंद
दिशा योग विद्या / पर यति हो, पद / आखिर हरदम दो गुरु हों
छंद दुर्मिला रच / कवि खुश हो, पर / जगण चौकलों में हों 
(संकेत: दिशा = १०, योग = ८, विद्या = १४)  
उदाहरण
. बहुत रहे हम, अब / न रहेंगे दू/र मिलाओ हाथ मिलो भी 
    बगिया में हो धू/ल - शूल कुछ फू/ल सरीखे साथ खिलो भी 
    कितनी भी आफत / आये पर भू/ल नहीं डट रहो हिलो भी 
    जिसको जो कहना / है कह ले, मुँह / मत खोलो अधर सिलो भी     

     
२. समय कह रहा है / चेतो अनुशा/सित होकर देश बचाओ         
    सुविधा-छूट-लूट / का पथ तज कद/म कड़े कुछ आज उठाओ  
    घपलों-घोटालों / ने किया कबा/ड़ा जन-विश्वास डिगाया   
    कमजोरी जीतो / न पड़ोसी आँ/ख दिखाये- धाक जमाओ    

३. आसमान पर भा/व आम जनता/  का जीवन कठिन हो रहा 
    त्राहिमाम सब ओ/र सँभल शासन, / जनता का धैर्य खो रहा      
    पूंजीपतियों! धन / लिप्सा तज भा/व् घटा जन को राहत दो       
    पेट भर सके मे/हनतकश भी, र/हे न भूखा, स्वप्न बो रहा  
  
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दुर्मिला, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, समान, सरस, सवाई, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: durmila chhand    -sanjiv
chhand, durmila chhand, acharya sanjiv verma 'salil',

24 जून 2014

chhand salila: kamand chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कमंदRoseछंद 


संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १५-१७, पदांत गुरु गुरु

लक्षण छंद:
  रखें यति पंद्रह-सत्रह पर, अमरकण्टकी लहर लहराती 
  छंद कमंद पदांत गुरु-गुरु, रसगंगा ज्यों फहर फहराती 

उदाहरण:
१. प्रभु को भजते संत सुजान, भुलाकर अहंकार-मद सारा
    जिसने की दीन की सेवा, उसने जन्म का पाप उतारा
    संग न गया कभी कहीं कुछ, कुछ संग बोलो किसके आया
    किसे सगा कहें हम अपना, किसको बोलो बोलें पराया 

२. हम सब भारत माँ के लाल, चरण में सदा समर्पित होंगे
    उच्च रखेंगे माँ का भाल, तन-मन के सुमन अर्पित होंगे
    गर्व है हमको मैया पर, गर्व हम पर मैया को होगा
    सर कटा होंगे शहीद जो, वे ही सुपूजित चर्चित होंगे
   
३. विदेशी भाषा में शिक्षा, मिले- उचित है भला यह कैसे?
    विरासत की सतत उपेक्षा, करी- शुभ ध्येय भला यह कैसे?
    स्वमूल्य का अवमूल्यन कर, परमूल्यों को बेहतर बोलें
    'सलिल' अमिय में अपने हाथ, छिपकर हलाहल कैसे घोलें?
                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: kamand chhand  -sanjiv
chhand, kamand chhand, acharya sanjiv verma 'salil',


16 जून 2014

chhand salila: marhatha chhand, sanjiv

छंद सलिला:
मरहठाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १०-८-११, पदांत गुरु लघु । 

लक्षण छंद:

    मरहठा छंद रच, असत न- कह सच, पिंगल की है आन  
    दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान  
    गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान 
    लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान  

उदाहरण:

१. ले बिदा निशा से, संग उषा के, दिनकर करता रास   
    वसुधा पर डोरे, डाले अनथक, धरा न डाले घास 
    थक भरी दुपहरी, श्रांत-क्लांत सं/ध्या को चाहे फाँस 
    कर सके रास- खुल, गई पोल जा, छिपा निशा के पास 
     
२. कलकलकल बहती, सुख-दुःख सहती, नेह नर्मदा मौन    
    चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
    माया की भँवरें, मोह चक्र में, घुमा रहीं दिन-रात 
    संयम का शतदल, महके अविचल, खिले मिले जब प्रात   

३. चल उठा तिरंगा, नभ पर फहरा, दहले दुश्मन शांत 
    दें कुचल शत्रु को, हो हमलावर यदि, होकर वह भ्रांत 
    आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ 
    सुख-दुःख के साथी, कदम मिला चल, रहें उठायें माथ 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

15 जून 2014

dohanjali: sanjiv

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म  
*
गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य 
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य 
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान 
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान 
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल 
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल 
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप 
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप 
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप 
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात 
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह 
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह 
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र 
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार 
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार 
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह 
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह 
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास 
*   

13 जून 2014

chhand salila: vidya chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विद्याRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                   यति १४-१४ , पदांत गुरु गुरु  

लक्षण छंद:

    प्रभु!कौशल-शिक्षा शुभ हो , श्रम-प्रयास हर सुखदा हो
    लघु शुरुआत अंत गुरु हो , विद्या-भुवन सुफलदा हो 
    संकेत: विद्या = १४, भुवन = १४ 

उदाहरण:

१. उठें सवेरे सेज तजें , नमन करें धरती माँ को        
    भ्रमण करें, देवता भजें , नवा शीश श्री-सविता को   
    पियें दूध अध्ययन करे , करें कार्य नित हितकारी    
    'सलिल' समाज देश का हित , करो बनो पर उपकारी   
     
२. करें पड़ोसी मनमानी , उनको सबक सिखाना है 
    अब आतंकी नहीं बचें , मिलकर मार मिटाना है         
    मँहगाई आसमां छुए , भाव भूमि पर लाना है 
    रह न सके रिश्वतखोरी , अनुशासन अपनाना है  

३. सखी! सजती ही रहीं तो , विरह कैसे मिट सकेगा?           
    पत्र पढ़तीं ही रहीं तो , मिलन कैसे साध सकेगा?
    द्वार की कुण्डी खटकती , कह रही सम्भावना है  
     रही यदि कोशिश ठिठकती , ह्रदय कैसे हँस सकेगा?

                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

12 जून 2014

chhand salila: vidhata chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विधाता/शुद्धगाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                   यति ७-७-७-७ / १४-१४ , ८ वीं - १५ वीं मात्रा लघु 
विशेष: उर्दू बहर हज़ज सालिम 'मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन' इसी छंद पर आधारित है. 

लक्षण छंद:

    विधाता को / नमन कर ले , प्रयासों को / गगन कर ले 
    रंग नभ पर / सिंधु में जल , साज पर सुर / अचल कर ले 
    सिद्धि-तिथि लघु / नहीं कोई , दिखा कंकर / मिला शंकर  
    न रुक, चल गिर / न डर, उठ बढ़ , सीकरों को / सलिल कर ले        
    संकेत: रंग =७, सिंधु = ७, सुर/स्वर = ७, अचल/पर्वत = ७ 
               सिद्धि = ८, तिथि = १५ 
उदाहरण:

१.  न बोलें हम न बोलो तुम , सुनें कैसे बात मन की?       
    न तोलें हम न तोलो तुम , गुनें कैसे जात तन की ?  
    न डोलें हम न डोलो तुम , मिलें कैसे श्वास-वन में?   
    न घोलें हम न घोलो तुम, जियें कैसे प्रेम धुन में? 
     जात = असलियत, पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात 

२. ज़माने की निगाहों से , न कोई बच सका अब तक
   निगाहों ने कहा अपना , दिखा सपना लिया ठग तक     
   गिले - शिकवे करें किससे? , कहें किसको पराया हम?         
   न कोई है यहाँ अपना , रहें जिससे नुमायाँ हम  

३. है हक़ीक़त कुछ न अपना , खुदा की है ज़िंदगानी          
    बुन रहा तू हसीं सपना , बुजुर्गों की निगहबानी
    सीखता जब तक न तपना , सफलता क्यों हाथ आनी?  
    कोशिशों में खपा खुदको , तब बने तेरी कहानी

४. जिएंगे हम, मरेंगे हम, नहीं है गम, न सोचो तुम 
    जलेंगे हम, बुझेंगे हम, नहीं है तम, न सोचो तुम 
    कहीं हैं हम, कहीं हो तुम, कहीं हैं गम, न सोचो तुम 
    यहीं हैं हम, यहीं हो तुम, नहीं हमदम, न सोचो तुम 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

11 जून 2014

chhand salila: vishnupad chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विष्णुपदRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत गुरु 

लक्षण छंद:

    सोलह गुण आगार विष्णुपद , दस दिश बसें रमा
    अवढरदानी प्रभु प्रसन्न हों , दें आशीष उमा 
    गुरु पदांत शोभित हो गुरुवत , सुमधुर बंद रचें 
    भाव बिम्ब लय अलंकार रस , सस्वर छंद नचें       
    
उदाहरण:

१. भारत माता की जय बोलो , ध्वज रखो ऊँचा
   कोई काम न ऐसा करना , शीश झुके नीचा    
   जगवाणी हिंदी की जय हो , सुरवाणी बोलो        
   हर भाषा है शारद मैया , कह मिसरी घोलो 

२. सारी दुनिया है कुटुंबवत , दूर करो दूरी            
    भाषा-भूषा धर्म-क्षेत्र की , क्यों हो मजबूरी?
    दिल का दिल से नेता जोड़ो , भाईचारा हो 
    सांझी थाती रहे विरासत , क्यों बँटवारा हो?     

३. जो हिंसा फैलाते उनको , भारी दंड मिलें        
    नारी-गौरव के अपराधी , जीवित नहीं बचें 
    ममता समता सदाचार के , पग-पग कमल खिलें   
    रिश्वत लालच मोह लोभ अब, किंचित नहीं पचें 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: anugeet chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अनुगीतRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत लघु 

लक्षण छंद:

    अनुगीत सोलह-दस कलाएँ , अंत लघु स्वीकार
    बिम्ब रस लय भाव गति-यतिमय , नित रचें साभार     
    
उदाहरण:

१. आओ! मैं-तुम नीर-क्षीरवत , एक बनें मिलकर
   देश-राह से शूल हटाकर , फूल रखें चुनकर     
   आतंकी दुश्मन भारत के , जा न सकें बचकर      
   गढ़ पायें समरस समाज हम , रीति नयी रचकर    

२. धर्म-अधर्म जान लें पहलें , कर्तव्य करें तब            
    वर्तमान को हँस स्वीकारें , ध्यान धरें कल कल
    किलकिल की धारा मोड़ें हम , धार बहे कलकल 
    कलरव गूँजे दसों दिशा में , हरा रहे जंगल    

३. यातायात देखकर चलिए , हो न कहीं टक्कर        
    जान बचायें औरों की , खुद आप रहें बचकर
    दुर्घटना त्रासद होती है , सहें धीर धरकर  
    पीर-दर्द-दुःख मुक्त रहें सब , जीवन हो सुखकर
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

7 जून 2014

chhand salila: geeta chhand -sanjiv

छंद सलिला:

गीता Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १४ - १२, पदांत गुरु लघु.

लक्षण छंद:

    चौदह भुवन विख्यात है , कुरु क्षेत्र गीता-ज्ञान
    आदित्य बारह मास नित , निष्काम करे विहान  
    अर्जुन सदृश जो करेगा , हरी पर अटल विश्वास  
    गुरु-लघु न व्यापे अंत हो , हरि-हस्त का आभास    
     संकेत: आदित्य = बारह 
उदाहरण:

१. जीवन भवन की नीव है , विश्वास- श्रम दीवार
   दृढ़ छत लगन की डालिये , रख हौसलों का द्वार   
   ख्वाबों की रखें खिड़कियाँ , नव कोशिशों का फर्श   
   सहयोग की हो छपाई , चिर उमंगों का अर्श 

२. अपने वतन में हो रहा , परदेश का आभास         
    अपनी विरासत खो रहे , किंचित नहीं अहसास
    होटल अधिक क्यों भा रहा? , घर से हुई क्यों ऊब?
    सोचिए! बदलाव करिए , सुहाये घर फिर खूब 

३. है क्या नियति के गर्भ में , यह कौन सकता बोल?
    काल पृष्ठों पर लिखा क्या , कब कौन सकता तौल?
    भाग्य में किसके बदा क्या , पढ़ कौन पाया खोल?
    कर नियति की अवमानना , चुप झेल अब भूडोल।

४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
    है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
    है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
    है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

6 जून 2014

chhand salila: geetika chhand -sanjiv

छंदRose सलिला: 

गीतिका छंद 

संजीव 
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु 

लक्षण छंद: 

    लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते 
    लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते 

उदाहरण:

​​१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े 
    उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े 
    खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना 
    कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े

२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है       
   
​ ​
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है   
   
​ ​
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है   
   
​ ​
एक सा रहता समय कब
​?​
 , रात लाती प्रात है

​३. ​सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
    हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
    विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं 
    दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

17 मई 2014

doha salila: hindi -sanjiv

​​
दोहा सलिला
संजीव
*
हिंदी जगवाणी बने, वसुधा बने कुटुंब
सीख-सीखते हम रहें, सदय रहेंगी अम्ब
पर भाषा सीखें मगर, निज भाषा के बाद
देख पड़ोसन भूलिए, गृहणी- घर बर्बाद
हिंदी सीखें विदेशी, आ करने व्यवसाय
सीख विदेशी जाएँ हम, उत्तम यही उपाय

तन से हम आज़ाद हैं, मन से मगर गुलाम
अंगरेजी के मोह में, फँसे विवश बेदाम
हिंदी में शिक्षा मिले, संस्कार के साथ
शीश सदा' ऊंचा रहे, 'सलिल' जुड़े हों हाथ
अंगरेजी शिक्षा गढ़े, उन्नति के सोपान
भ्रम टूटे जब हम करें, हिंदी पर अभिमान

16 मई 2014

chhand salila: kavya chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

काव्य छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति ग्यारह-तेरह, मात्रा बाँट ६+४+४+४+६, हर चरण में ग्यारहवीं मात्रा लघु

लक्षण छंद:
   काव्य छंद / चौबी/, कला / ग्यारह/-तेर हो
   रखें कला / लघु रू/द्र, षट क/ली आ/दि-अं हो 
   मध्य चतुष्/कल ती/, द्विमा/ता क/र्मदे वत 
   अवतारी / की सुं/,र छवि / लख शं/का क मत  
(संकेत: रूद्र = ग्यारह, द्विमाता कर्मदेव = नंदिनी-इरावती तथा चित्रगुप्त)  

उदाहरण:  १. चमक-दमक/कर दिल / हला/ती बिज/ली गिकर
   दादुर ना/चे उछ/-कूद/कर, मट/क-मटकर
   सनन-सनन / सन पव/ खेल/ता मच/ल-मचकर
   ढाँक सूर्य / को मे/ अकड़/ता गर/ज-गरकर      

२. अमन-चैन / की है / लाश / दुनिया / में सको
    फिर भी झग/ड़े-झं/ट घे/रे हैं / जन-ज को
    लोभ--मोह / माया-/मता / बेढब / चक्क है

    हर युग में /परमा/र्थ-स्वार्थ / की ही /टक्क है 

   ३. मस्जिद-मं/दिर ध/र्म-कर्म / का म/र्म न सझे 
    रीति-रिवा/ज़ों में / हते / हैं हर/दम उझे
    सेवा भू/ले पथ / नको / मेवा / का रुता
    लालच ने / मोहा,/ तिल भर / भी त्या/ग न दिता                    
                              *********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

14 अग॰ 2013

muktak: acharya sanjiv 'salil'

शहादतों को भूलकर सियासतों को जी रहे
पड़ोसियों से पिट रहे हैं और होंठ सी रहे
कुर्सियों से प्यार है, न खुद पे ऐतबार है-
नशा निषेध इस तरह कि मैकदे में पी रहे
*
जो सच कहा तो घेर-घेर कर रहे हैं वार वो
हद है ढोंग नफरतों को कह रहे हैं प्यार वो
सरहदों पे सर कटे हैं, संसदों में बैठकर-
एक-दूसरे को कोस, हो रहे निसार वो
*
मुफ़्त भीख लीजिए, न रोजगार माँगिए
कामचोरी सीख, ख्वाब अलगनी पे टाँगिए
फर्ज़ भूल, सिर्फ हक की बात याद कीजिए-
आ रहे चुनाव देख, नींद में भी जागिए
*
और का सही गलत है, अपना झूठ सत्य है
दंभ-द्वेष-दर्प साध, कह रहे सुकृत्य है
शब्द है निशब्द देख भेद कथ्य-कर्म का-
वार वीर पर अनेक कायरों का कृत्य है
*
प्रमाणपत्र गैर दे: योग्य या अयोग्य हम?
गर्व इसलिए कि गैर भोगता, सुभोग्य हम
जो न हाँ में हाँ कहे, लांछनों से लाद दें -
शिष्ट तज, अशिष्ट चाह, लाइलाज रोग्य हम
*
गंद घोल गंग में तन के मुस्कुराइए
अनीति करें स्वयं दोष प्रकृति पर लगाइए
जंगलों के, पर्वतों के नाश को विकास मान-
सन्निकट विनाश आप जान-बूझ लाइए
*
स्वतंत्रता है, आँख मूँद संयमों को छोड़ दें
नियम बनायें और खुद नियम झिंझोड़-तोड़ दें
लोक-मत ही लोकतंत्र में अमान्य हो गया-
सियासतों से बूँद-बूँद सत्य की निचोड़ दें
*
हर जिला प्रदेश हो, राग यह अलापिए
भाई-भाई से भिड़े, पद पे जा विराजिए
जो स्वदेशी नष्ट हो, जो विदेशी फल सके-
आम राय तज, अमेरिका का मुँह निहारिए
*
धर्महीनता की राह, अल्पसंख्यकों की चाह
अयोग्य को वरीयता, योग्य करे आत्म-दाह
आँख मूँद, तुला थाम, न्याय तौल बाँटिए-
बहुमतों को मिल सके नहीं कहीं तनिक पनाह
*
नाम लोकतंत्र, काम लोभतंत्र कर रहा
तंत्र गला घोंट लोक का विहँस-मचल रहा
प्रजातंत्र की प्रजा है पीठ, तंत्र है छुरा-
राम हो हराम, तज विराम दाल दल रहा
*
तंत्र थाम गन न गण की बात तनिक मानता
स्वर विरोध का उठे तो लाठियां है भांजता
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
लोक जन प्रजा नहीं दलों का हित ही साधता
*
धरें न चादरों को ज्यों का त्यों करेंगे साफ़ अब
बहुत करी विसंगति करें न और माफ़ अब
दल नहीं, सुपात्र ही चुनाव लड़ सकें अगर-
पाक-साफ़ हो सके सियासती हिसाब तब
*
लाभ कोई ना मिले तो स्वार्थ भाग जाएगा
देश-प्रेम भाव लुप्त-सुप्त जाग जाएगा
देस-भेस एक आम आदमी सा तंत्र का-
हो तो नागरिक न सिर्फ तालियाँ बजाएगा
*
धर्महीनता न साध्य, धर्म हर समान हो
समान अवसरों के संग, योग्यता का मान हो
तोडिये न वाद्य को, बेसुरा न गाइए-
नाद ताल रागिनी सुछंद ललित गान हो
*
शहीद जो हुए उन्हें सलाम, देश हो प्रथम
तंत्र इस तरह चले की नयन कोई हो न नम
सर्वदली-राष्ट्रीय हो अगर सरकार अब
सुनहरा हो भोर, तब ही मिट सके तमाम तम
=============================

12 अग॰ 2013

doha salila: bhavan mahatmya -acharya sanjiv verma 'salil'

दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
संजीव

*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।

10 जुल॰ 2013

kriti charcha: kabhee sochen -sanjiv



kriti charcha: kabhee sochen -sanjiv

कृति चर्चा:
कभी सोचें -  तलस्पर्शी चिंतन सलिला

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

कृति विवरणः कभी सोचें, चिंतनपरक लेख संग्रह, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी-पेपरबैक, पृष्ठ 143, मूल्य 180 रु., पाथेय प्रकाशन जबलपुर

सुदर्शन व्यक्तित्व, सूक्ष्मदृष्टि तथा उन्मुक्त चिंतन-सामर्थ्य संपन्न वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ को तत्व-प्रेम विरासत में प्राप्त है। पत्रकारिता काल के संघर्ष ने उन्हें मूल-शोधक दृष्टि, व्यापक धरातल, सुधारोन्मुखी चिंतन तथा समन्वयपरक सृजनशील लेखन की ओर उन्मुख किया है। सतत सृजनकर्म की साधना ने उन्हें शिखर स्पर्श की पात्रता दी है। सनातन जीवनमूल्यों की समझ और सटीक पारिस्थितिक विश्लेषण की सामर्थ्य ने उन्हें सर्वहितकारी निष्कर्षपरक आकलन-क्षमता से संपन्न किया है। विवेच्य कृति ‘कभी सोचें’ सुमित्र जी द्वारा लिखित 98 चिंतनपरक लेखों का संकलन है।

चिंतन जीवनानुभवों के गिरि शिखर से नि:सृत निर्झरिणी के निर्मल सलिल की फुहारों की तरह झंकृत-तरंगित-स्फुरित करने में समर्थ हैं। सामान्य से हटकर इन लेखों में दार्शनिक बोझिलता, क्लिष्ट शब्दचयन, परदोष-दर्शन तथा परोपदेशन मात्र नहीं है। ये लेख आत्मावलोकन के दधि को आत्मोन्नति की अरणि से मथकर आत्मोन्नति का नवनीत पाने-देने की प्रक्रिया से व्युत्पन्न है। सामाजिक वैषम्य, पारिस्थितिक विडंबनाओं तथ दैविक-अबूझ आपदाओं की त्रासदी को सुलझाते सुमित्र जी शब्दों का प्रयोग पीडित की पीठ सहलाते हाथ की तरह इस प्रकार करते हैं कि पाठक को हर लेख अपने आपसे जुड़ा हुआ प्रतीत होता है।

अपने तारुण्य में कविर्मनीषी रामानुजलाल श्रीवास्तव ‘उंट बिलहरीवी’ तथा सरस गीतकार नर्मदाप्रसाद खरे का स्नेहाशीष पाये सुमित्र सतत प्रयासजनित प्रगति के जीवंत पर्याय हैं। वे इन लेखों में वैयक्तिक उत्तरदायित्व को सामाजिक असंतोष की निवृत्ति का उपकरण बनाने की परोक्ष प्रेरणा दे सके है। प्राप्त का आदर करो, सामर्थ्यवान हैं आप, सच्चा समर्पण, अहं के पहाड़, स्वतंत्रता का अर्थ, दुख का स्याहीसोख, स्वागत का औचित्य, भाषा की शक्ति, भाव का अभाव, भय से अभय की ओर, शब्दों का प्रभाव, अप्राप्ति की भूमिका है, हम हिंदीवाले, जो दिल खोजा आपना, यादों का बसेरा, लघुता और प्रभुता, सत्य का स्वरूप, पशु-पक्षियों से बदतर, मन का लावा, आज सब अकेले हैं, विसर्जन बोध आदि चिंतन-लेखों में सुमित्र जी की मित्र-दृष्टि विद्रूपता के गरल को नीलकण्ठ की तरह कण्ठसात् कर अमिय वर्षण की प्रेरणा सहज ही दे पाते हैं। एक बानगी देखें-   
      
‘‘सामर्थ्यवान हैं आप

विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और श्रेय की सीढि़याँ चढ़ते लोगों को देख सामान्य व्यक्ति को लगता है कि यह सब सामर्थ्य का प्रतिफल है और इतनी सामर्थ्य उसमें है नहीं।

अपने में छिपी सामर्थ्य को जानने, प्रगट करने का एक मार्ग है अध्यात्म। ‘सोहम्’ अर्थात् मैं आत्मा हूँ। अपने को आत्मा मानने से विशिष्ट ज्ञान उपलब्ध होता है। अंधकार में प्रकाश की किरण फूटती है।

आध्यात्मिक दृष्टि मनुप्य को आचरण से ऊपर उठने में मदद करती है। जब उस पर रजस और तमस का वेग आता है जब भी वह भयभीत, चिंतित या हताश नहीं होता। उसके भीतर से उसे शक्ति मिलती रहती है।

हममें सत्य, प्रेम, न्याय, शांति, अहिंसा की दिव्य शक्तियाँ स्थित हैं। इन दिव्य शक्तियों को जानने और उनके जागरण का सतत प्रयत्न होना चाहिए।

इनका विकास ही हमें पशुओं और सामान्य मनुष्य से ऊपर उठा सकता है। विश्वास करें कि आप सामर्थ्यवान हैं। आपका सामर्थ्य आपके भीतर है। दृष्टि परिवर्तित करें और सामर्थ्य पायें। ’’

सुमित्र जी अध्यात्म पथ की दुप्करता से परिचित होते हुए भी सांसारिक बाधाओं और वैयक्तिक सीमाओं के मद्देनजर कबीरी वीतरागिता असाध्य होने पर भी सामान्य जन को उसके स्तर से ऊपर उठकर सोचने-करने की प्रेरणा दे पाते हैं। यही उनके चिंतन और लेखन की उपलब्धि है। अधिकांश लेख ‘कभी सोचें’ या ‘सोचकर तो देखें’ जैसे आव्हान के साथ पूर्ण होते हैं और पूर्ण होने के पूर्व पाठक को सोचने की राह पर ले आते हैं। ये लेख मूलतः दैनिक जयलोक जबलपुर में दैनिक स्तंभ के रूप में प्रकाशित-चर्चित हो चुके हैं। आरंभ में डॉ. हरिशंकर दुबे लिखित गुरु-गंभीर पुरोवाक् सुमित्र की लेखन कला की सम्यक्-सटीक विवेचना कर कृति की गरिमा वृद्वि करता है।  
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salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

28 जून 2013

kriti charcha / book review : Achcarya Sanjiv Verma 'Salil'


कृति चर्चा:
बिजली का बदलता परिदृश्य : कमी कैसे हो अदृश्य?
चर्चाकार : संजीव
*
[कृति विवरण : बिजली का बदलता परिदृश्य, तकनीकी जनोपयोगी, इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', आकार डिमाई, आवरण बहुरंगा पेपरबैक, पृष्ठ १००, मूल्य १५० रु., जी नाइन पब्लिकेशन्स रायपुर छतीसगढ़ ]
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHMxMYpoqjb-NhTwT5oQ9MU11tpostoFUvPcyi5wZ2C6lStlVkgZQqx3M6q9ZyFMoSe5NTzOFbicpgrf_aA_ntffjP-qer0OW32W3oisRqZV6XCX2yiJd4mHMGjBlEdFZf3BQYgE5d3QdX/s220/vivek+photo.bmp*                                    
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् भी मानसिक गुलामी समाप्त नहीं हुई। फलतः राजनैतिक आज़ादी दलीय द्वेष तथा सत्ता प्रतिष्ठान के स्वार्थों की हथकड़ी-बेदी में क़ैद होकर रह गयी। जनमत के साथ-साथ जनभाषा हिंदी भी ऊंचे पदों की लालसा पाले बौने नेताओं की दोषपूर्ण नीतियों के कारण दिनों-दिन अधिकाधिक उपेक्षित होती गयी। वर्तान समय में जब विदेशी भाषा अंग्रेजी में माँ के आँचल की छाया में खेलते शिशुओं का अक्षरारंभ और विद्यारम्भ हो रहा है तब मध्य प्रदेश पूर्वी क्षेत्र विद्युत् वितरण कम्पनी जबलपुर में अधीक्षण यंत्री व जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' ने बिजली उत्पादन-वितरण संबंधी नीतियों, विधियों, वितरण के तरीकों, बिजली ग्रिड की क्षतिग्रस्तता, विद्युत्-बचत, परमाणु बिजली घरों के खतरे और उनका निराकरण, सूचना प्रौद्योगिकी, बिजली देयक भुगतान की अधुनातन प्रणाली, विद्युत् उत्पादन में जन भागीदारी, ग्रामीण आपूर्ति विभक्तिकरण योजना,विद्युत् चोरी और जनजागरण, आदि तकनीकी-सामाजिक विषयों पर हिंदी में पुस्तक लिखकर सराहनीय कार्य किया है। इन विषयों पर जनोपयोगी साहित्य अभी अंग्रेजी में लगभग अप्राप्य है।
विवेच्य कृति 'देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर' की तरह तकनीकी और दुरूह विषयों पर सामान्य जनों के ग्रहणीय सरल-सहज भाषा में सरसता के साथ प्रस्तुत करने की चुनौती को विनम्र ने पूरी विनम्रता सहित न केवल स्वीकारा है अपितु सफलतापूर्वक जीता भी है। तकनीकी विषयों पर हिंदी में लेखन कार्य की कठिनाई का कारण हिंदी में तकनीकी पारिभाषिक शब्दों का अभाव तथा उपलब्ध शब्दों का अप्रचलित होना है। विनम्र ने इस समस्या का व्यवहारिक निदान खोज लिया है। उन्होंने रिएक्टर,ब्लैक आउट, पॉवरग्रिड फेल, फीडर, ई-पेमेंट, ए.टी.पी., कंप्यूटर, टैकनोलोजी, ट्रांसफोर्मर, मीटर रीडिंग जैसे लोकप्रिय-प्रचलित शब्दों का हिंदी शब्दों की ही तरह निस्संकोच प्रयोगकर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है।
इस कृति का वैशिष्टय  भारतीय वांग्मय की अगस्त्य संहिता में दिए गए विद्युत् उत्पादन संबंधी सूत्र, ऑक्सीजन को नाइट्रोजन में परिवर्तित करने की विधि, विविध प्राकृतिक उपादानों से विदुत उत्पादन, इलेक्ट्रोप्लेटिंग आदि संबंधी श्लोक दिया जाना है।
बैंकाक, कनाडा आदि देशों की बिजली व्यवस्था पर लेखों ने भारतीय विद्युत् व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर सुलभ कराया है।
सम सामयिक विषयों में ऊर्जा की बचत, विद्युत् चोरी रोकने, बिजली देयकों के भुगतान में  रोकने  ई-प्रणाली, ए.टी.पी. से भुगतान, विद्युत् उत्पादन में जन भागीदारी आदि महत्वपूर्ण हैं। जबलपुर के समीप चुटका में प्रस्तावित परमाणु बिजली घर के बारे में तथाकथित पर्यावरणवादियों द्वारा फैलाये जा रहे भय, हानि संबंधी दुष्प्रचार, तथा भ्रमित जनांदोलनों के परिप्रेक्ष्य में विनम्र ने संतुलित ढंग से तथ्यपरक जानकारी देते हुए इस परियोजना को निष्पादित किये जाने का औचित्य प्रमाणित किया है।
आलोच्य पुस्तक के अंतिम अध्यायों में विद्युत् मंडल के विखंडन तथा विद्युत् अधिनियम २००३ जन जानकारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भविष्य तथा युवाओं की दृष्टि से विद्यत संबंधी नवोन्मेषी प्रयोगों पर लेखन ने एक स्वतंत्र अध्याय में जानकारी दी है। तिरुमला मंदिर में सौर बिजली, गाँवों के लिए धन की भूसी (हस्क) से विद्युत् उत्पादन, चरखे से सूत कातने के साथ-साथ बिजली बनाना, कुल्हड़ों में गोबर के घोल से बिजली बनाना, पन बिजली उत्पादन, नाले के गंदे पानी और बैक्टीरिया से बिजली बनाना, कोल्हू से तेल पिराई के साथ-साथ बिजली बनाना, कम लगत के ट्रांसफोर्मर, भूमिगत विद्युत् स्टेशन आदि जानकारियाँ आँखें खोल देनेवाली हैं. इन विधियों के प्रोटोटाइप या व्यावहारिक क्रियान्वयन संबंधी सामग्री व् तकनीक विवरण, परियोजना विवरण, प्रक्रिया संविधि, सावधानियां, लागत, हानि-लाभ आदि व्यावहारिक क्रियान्वयन की दृष्टि से दिया जाता तो सोने में सुहागा होता।
इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' की इस स्वागतेय तथा जनोपयोगी कृति को हर घर तथा शिक्षा संस्था में विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाना चाहिए।

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कितना असरदार

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