हुज़ूर के चैंबर से इन्कलाब दहकने आया
गुलाब की क्यारियों में इत्र महकने आया
न था वक्त, मिला भी तो तुम न मिले –
कुछ यादों के लिफ़ाफ़े थे, पटकने आया !
अब तो बस मौत तेरा इंतज़ार है मुझको
आख़िरी लौ की मानिंद चमकने आया !!
यूँ तो उससे भी कह देता रूबरू उसके
लुफ्त आए है
क्या ? चुगलियों में समझने आया !!
वो मेरे पास मुस्कुराके आ रहा देखो
सपोला है वो आस्तीन में बसने आया !!
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
बेहतरीन ग़ज़ल :)
जवाब देंहटाएं+sunita agarwaljee Thank's
हटाएं+yashoda jee Naman
जवाब देंहटाएंIt's so nice
जवाब देंहटाएंhttps://www.amarbalecha.com/