28 जुल॰ 2016

इरोम शर्मिला मेरी नज़र से

इरोम तुम ने अन्न न ग्रहण किया
मुझे साल-दर-साल ये व्रत
सालता रहा ........
आज मन खुश है... तुमने उपवास तोड़
मानवीय काम किया है......
अगर ये उपवास तुम कश्मीर के निर्वासितों को लेकर करतीं
तो साल-दर-साल
तुम्हारा व्रत मुझे शायद न सालता !!
इरोम तुम्हारी जीवटता को नमन ..... 
हरेक के मानवाधिकार की रक्षा 
के लिए 
संकल्प लेना ...... अब पर अन्न न छोड़ना ......
सेना .......  देश की रक्षा के लिए ज़रूरी है.. 

1 टिप्पणी:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!