बलोच आंदोलन अब वैचारिक धरातल से मजबूत होता नजर आ रहा है। स्पेस पर आयोजित वॉइस कॉन्फ्रेंस में एडमिन नादिर बलोच कहते हैं कि- सिर्फ 10 करोड़ उन लोगों को पढ़ने की जद्दोजहद में पूरा देश यानी पाकिस्तान लगा हुआ है । बलोच एक्टिविस्ट एक ऐसी सरकार की स्थापना करना चाहते हैं जो राष्ट्रवाद आधारित हो परंतु पंथ-निरपेक्ष रहे।
चीन पाकिस्तान कॉरिडोर ग्वादर के मसले का प्रारंभ से ही विरोध करने वाले बलूची नागरिक स्पेस पर मुखर थे। चीन के प्रति बलूचिस्तान के नागरिकों की अवधारणा विश्व के सभी लोगों की तरह ही है। वे जानते हैं कि चीन सीपैक के बहाने धीरे-धीरे पाकिस्तान पर अपना अधिकार जमा लेगा।
चीन पाकिस्तान कॉरिडोर ग्वादर के मसले का प्रारंभ से ही विरोध करने वाले बलूची नागरिक स्पेस पर मुखर थे। चीन के प्रति बलूचिस्तान के नागरिकों की अवधारणा विश्व के सभी लोगों की तरह ही है। वे जानते हैं कि चीन सीपैक के बहाने धीरे-धीरे पाकिस्तान पर अपना अधिकार जमा लेगा।
स्पेस में अधिकांश लोग पाकिस्तान में चीनी हस्तक्षेप को गैरज़रूरी मानते हैं और वे चाहते हैं कि- यह परियोजना तुरंत समाप्त हो। उन्हें यह भय भी है कि कहीं ऐसा न हो कि -"कंगाल होता पाकिस्तान कहीं उनके अस्तित्व को चीन के अस्तित्व में तब्दील न कर दें।"
इन दिनों खस्ताहाल बिकाऊ देश पाकिस्तान बलोच सिंध आंदोलन से परेशान है, इसी कारण से इन दोनों जगहों (सिंध/ब्लोचिस्तान) से राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर लोगों को गायब कर दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर पाक द्वारा हटाए गए कश्मीर की आवाम को भी समझ में आ चुका है कि किस तरह से पाकिस्तान ने उनके साथ नाइंसाफी गैर बराबरी का वातावरण तैयार किया है।
इन दिनों खस्ताहाल बिकाऊ देश पाकिस्तान बलोच सिंध आंदोलन से परेशान है, इसी कारण से इन दोनों जगहों (सिंध/ब्लोचिस्तान) से राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर लोगों को गायब कर दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर पाक द्वारा हटाए गए कश्मीर की आवाम को भी समझ में आ चुका है कि किस तरह से पाकिस्तान ने उनके साथ नाइंसाफी गैर बराबरी का वातावरण तैयार किया है।
मित्रों बलूचिस्तान अब आजादी के लगभग करीब है लेकिन विश्व बिरादरी पाकिस्तान पर ऐसा कोई जादुई मंत्र नहीं डाल पाई है जिससे मानव अधिकार की सुरक्षा और लोगों की जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। Socio-economic परिस्थितियों पर विचार किया जाए तो पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क बन गया है जो केवल बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान - "एक खास सूबे के लिए एक खास सूबे के द्वारा स्थापित व्यवस्था है।"
यह खास सूबा है -पंजाब का पाकिस्तानी प्रांत।
पूरी दुनिया जानती है कि ग्वादर परियोजना का असल मकसद पाकिस्तान की सबसे कीमती जमीन का उपयोग कर चीन की विस्तार वादी नीतियों को सफल बनाना। इस प्रक्रिया में पाकिस्तान के तमाम सियासी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। स्पेस में सभी लोगों का मानना था कि पाकिस्तान बलूच लोगों के प्रति द्वेष भाव रखता है और वह ब्लूज की सिंध की कमाई का अधिकतम प्रतिशत पंजाब सूबे पर खर्च करना चाहता है, और करता भी है। पाकिस्तान के 1971 के विखंडन को देखा जाए तो पाकिस्तान ने काली रंग वाली बंगाली जमात को कमजोर समझा था। जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी को सियासत में कमजोर नहीं समझना चाहिए, पाकिस्तान 1971 की जंग हार गया और मुजीब उर रहमान का सोनार बांग्ला स्वतंत्रता की सांस लेने लगा।
वर्तमान परिस्थितियों में अब पाकिस्तान के भीतर आवाम क्रांतिकारी हो चुकी है। केवल सिंध और बलोच ही नहीं वरन पाकिस्तान की कई हिस्सों जैसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, आदि।
कुल मिलाकर पाकिस्तान अब अपने 75 साल पुराने पापों रिटर्न गिफ्ट प्राप्त करने की स्थिति में आ चुका है।
बलोच एक्टिविस्ट सेक्युलर राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं। इस पर से पता चलता है कि वह पाकिस्तान की तरह धर्मांध शासन व्यवस्था पर सहमत नहीं है पुरातन पंथी रूढ़ीवादी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से सहमत नहीं है। वह पूरी तरह से वामपंथ को भी अस्वीकार करते हैं। स्पेस में उन्होंने अपनी मंशा जाहिर करते हुए कहा कि हम किसी डिक्टेटरशिप किसी तरह के धर्म आधारित राष्ट्र की कल्पना को लेकर संघर्षरत नहीं है बल्कि हम शुद्ध सेकुलर आजाद बलूचिस्तान की परिकल्पना कर रहे हैं।
बलूचिस्तान मुक्ति आंदोलन आधार नागरिक स्वतंत्रता एवं जन्मभूमि में उपलब्ध संसाधनों का स्थानीय नागरिकों के हक का आंदोलन भी है। बलूच नागरिक एक्टिविस्ट और अन्य संगठन चाहते हैं कि वह पाकिस्तान से जितना जल्द हो सके मुक्ति पा ली और इसके लिए वे अंतरराष्ट्रीय दबाव की पृष्ठभूमि तैयार करना चाहते हैं। परंतु विश्व का हर एक देश बड़ी समस्या पर बात नहीं करता है यह उनका दर्द है।
मानव अधिकारों पर अतिक्रमण करता पाकिस्तान ना तो बलूच जनता को स्वीकार है और ना ही सिंधु देश के एक्टिविस्ट इसे स्वीकारते हैं।
यह खास सूबा है -पंजाब का पाकिस्तानी प्रांत।
पूरी दुनिया जानती है कि ग्वादर परियोजना का असल मकसद पाकिस्तान की सबसे कीमती जमीन का उपयोग कर चीन की विस्तार वादी नीतियों को सफल बनाना। इस प्रक्रिया में पाकिस्तान के तमाम सियासी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। स्पेस में सभी लोगों का मानना था कि पाकिस्तान बलूच लोगों के प्रति द्वेष भाव रखता है और वह ब्लूज की सिंध की कमाई का अधिकतम प्रतिशत पंजाब सूबे पर खर्च करना चाहता है, और करता भी है। पाकिस्तान के 1971 के विखंडन को देखा जाए तो पाकिस्तान ने काली रंग वाली बंगाली जमात को कमजोर समझा था। जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी को सियासत में कमजोर नहीं समझना चाहिए, पाकिस्तान 1971 की जंग हार गया और मुजीब उर रहमान का सोनार बांग्ला स्वतंत्रता की सांस लेने लगा।
वर्तमान परिस्थितियों में अब पाकिस्तान के भीतर आवाम क्रांतिकारी हो चुकी है। केवल सिंध और बलोच ही नहीं वरन पाकिस्तान की कई हिस्सों जैसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, आदि।
कुल मिलाकर पाकिस्तान अब अपने 75 साल पुराने पापों रिटर्न गिफ्ट प्राप्त करने की स्थिति में आ चुका है।
बलोच एक्टिविस्ट सेक्युलर राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं। इस पर से पता चलता है कि वह पाकिस्तान की तरह धर्मांध शासन व्यवस्था पर सहमत नहीं है पुरातन पंथी रूढ़ीवादी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से सहमत नहीं है। वह पूरी तरह से वामपंथ को भी अस्वीकार करते हैं। स्पेस में उन्होंने अपनी मंशा जाहिर करते हुए कहा कि हम किसी डिक्टेटरशिप किसी तरह के धर्म आधारित राष्ट्र की कल्पना को लेकर संघर्षरत नहीं है बल्कि हम शुद्ध सेकुलर आजाद बलूचिस्तान की परिकल्पना कर रहे हैं।
बलूचिस्तान मुक्ति आंदोलन आधार नागरिक स्वतंत्रता एवं जन्मभूमि में उपलब्ध संसाधनों का स्थानीय नागरिकों के हक का आंदोलन भी है। बलूच नागरिक एक्टिविस्ट और अन्य संगठन चाहते हैं कि वह पाकिस्तान से जितना जल्द हो सके मुक्ति पा ली और इसके लिए वे अंतरराष्ट्रीय दबाव की पृष्ठभूमि तैयार करना चाहते हैं। परंतु विश्व का हर एक देश बड़ी समस्या पर बात नहीं करता है यह उनका दर्द है।
मानव अधिकारों पर अतिक्रमण करता पाकिस्तान ना तो बलूच जनता को स्वीकार है और ना ही सिंधु देश के एक्टिविस्ट इसे स्वीकारते हैं।
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!