9 फ़र॰ 2023

हमने मानवता के तट पर दुश्मन का भी सम्मान किया: #टर्की_सहायता

हम ने मानवता के तट पर दुश्मन का भी सम्मान किया..!
( विशेष संदर्भ: टर्की सीरिया भूकंप और भारतीय संवेदनाएं)

   स्वर्गीय घनश्याम चौरसिया बादल ने  गीत रचा था जिसमें भरत की महिमा का गुणगान किया गया था। जो मुझे अब तक कंठस्थ है. बादल जी ने एक गीत लिखा था जब हम बहुत कम उम्र के हुआ करते थे शायद सन उन्नीस सौ 70 की बात है।
यहां तीर्थ तुल्य माता होती
पति को परमेश्वर होते हैं।
यह नदियों पेड़ पहाड़ों में
हर रूप में ईश्वर होते हैं।।
हम एकलव्य के वंशज हैं
दे काट अंगूठा दान किया।
हमने मानवता के तट पर
दुश्मन का भी सम्मान किया।।
दुनिया समझे पागलपन है
या समझे की नादानी है।।
यह देश हमारा है यारों
भारत की यही कहानी है।।
   इतना पुराना गीत आज तक जेहन में अक्सर गूंजता है । आपको स्मरण होगा कि जब सिकंदर बीमार हो गया था तो पोरस की  अनुमति से सिकंदर का इलाज भारत के एक वैद्य ने किया था।
आपको यह भी तो याद होगा न-" हिटलर के सताए मासूम यहूदी परिवार जब भारत आए तो भारत में उन्हें संरक्षण दिया आत्मसात किया।
   भारत के सूत्र वाक्य सनातन से उद्धृत किए जा सकते हैं। उनमें सर्व प्रचलित और हमेशा चर्चाओं में आता है यह वाक्य जिसमें लिखा है- "सर्वे जना सुखिनो भवंतु..!" और भारत विश्व बंधुत्व का सबसे बड़ा पोषक राष्ट्र है।
   यह सच है कि सांप्रदायिकता की मोह जाल में फंसा अर्दोगोन जिस पाकिस्तान का पक्का मित्र कहलाता है उसी पाकिस्तान के राजनेता और राजनीतिक प्रशासन टर्की के लिए कुछ भी ना कर सका। इधर ग्लोबमास्टर में भरकर सहायता सामग्री पहुंच चुकी। कहा जाता है कि पाकिस्तान ने अपने एयर स्पेस से ग्लोबमास्टर को रास्ता तक नहीं दिया।
   मानवता के बीए संघर्ष करने वाली प्रगतिशील आवाजें भी मौन है इन ज्ञानियों के मस्तिष्क में टर्की के हित के संबंध में ना तो कोई संवेदना है ना ही किसी तरह की रचना देखने को मिली। भारत का यह कदम बेशक मानवता की संरक्षण और वैश्विक एकात्मता के भावात्मक स्वरूप को रेखांकित करता है। मैं यहां किसी सत्ता का गुणगान नहीं कर रहा हूं परंतु वैचारिक रूप से मजबूत भारत को नमन करने का इससे बेहतर अवसर कब मिलेगा?
स्वेट मार्टिन ने अपनी पुस्तक अवसर बीता जाए  में कहा था -"अवसर नहीं जीतना चाहिए सही अवसर पर सही निर्णय लेना चाहिए। सही अवसर मिलते ही हमारे किए गए कार्य एक अच्छा परिणाम देते हैं। यह व्यक्तिगत रूप में जितना शेती सूत्र वाक्य है उतना ही राष्ट्रीय परिपेक्ष में महत्वपूर्ण साबित हो चुका है। जबलपुर के स्वर्गीय कवि की इन पंक्तियों को याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। साहित्यकार कितना विजनरी हो सकता है इसका अनुमान आप जरूर लगा लेंगे। साइबेरिया और रसिया के प्रवासी पंछियों को आपने हजारों हजार किलोमीटर की दूरी से भारत आते देखा ही है। वेल ग्वारीघाट मां नर्मदा के तट पर प्रयागराज की गंगा तट पर ही नहीं बल्कि भारत के कई और ऐसे स्थानों पर अपनी मातृभूमि में प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न होने पर भारत की शरण लेते हैं। यहूदियों ने भी यही सोचा होगा। गुजरात के एक राजा ने जिन्हें संरक्षण दिया।
   अगर कहा जाए तो भारतीय राज्य व्यवस्था में संवेदना ओं का सम्मिश्रण टर्की को पहुंचाई गई सहायता के रूप में 2023 के दौर में दिखा।
भारत ने टर्की के लिए कितना किया और कितना किया जाना है यह एक अलग मुद्दा है इस पर बहुत से सवाल उठ भी सकते हैं परंतु पीड़ित मानवता के हित में काम करने वाला भारत वैश्विक धरातल पर दुश्मन देश मैं रहने वाले नागरिकों की रक्षा के लिए हमेशा से तत्पर रहता है।
    संप्रदायिकता से ऊपर मानवता का यह दृश्य देखकर मुझे विंस्टन चर्चिल एक राक्षस की तरह दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने बंगाल के अकाल में ब्रिटिश कॉलोनी भारत के बारे में शर्मनाक टिप्पणियां की थी। वह हमारे पूज्य बापू से व्यक्तिगत घृणा करता था। ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल भारत के लिए महात्मा गांधी के लिए भारत के लोगों के लिए जो भाव रखता था वह जगजाहिर है।
विषय अंतर न होते हुए फिर से हम अपने मुद्दे पर आते हैं तो देखते हैं कि सिंधु जल बंटवारा संधि आपसे कुछ दिनों में समाप्त होने जा रही है। परंतु मानसिक रूप से दिवालिया पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की जनता के लिए सिंधु जल बंटवारे में तयशुदा शर्तें आंशिक फेरबदल के साथ यथावत रहेंगी ऐसा मेरा मानना है।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!